क्या दोषी सांसदों और विधायकों पर हमेशा के लिए चुनावी प्रतिबंध लगना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब
Criminal Politicians Ban
भारतीय राजनीति में अपराधीकरण एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। लंबे समय से मांग उठ रही है कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों पर चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। अब इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है और केंद्र सरकार तथा चुनाव आयोग से तीन हफ्तों में जवाब मांगा है। यह मामला राजनीति के शुद्धिकरण और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की संवैधानिकता से जुड़ा हुआ है। आपको बता दें इससे पहले 2020 में, केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने या किसी राजनीतिक दल का गठन करने या उसका पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध के विचार को खारिज कर दिया था। आइए विस्तार से जानते हैं कि यह याचिका क्या है, इसके पीछे के तर्क क्या हैं और इस पर सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका और उसकी मांगें
यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई है। याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 को चुनौती दी गई है, जो वर्तमान में आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों को सजा पूरी करने के बाद छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से रोकती है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह नियम राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा देता है, क्योंकि एक बार सजा पूरी करने के बाद दोषी राजनेता फिर से चुनाव लड़ सकते हैं और संसद या विधानसभा में वापस आ सकते हैं।
याचिका में मुख्य रूप से निम्नलिखित मांगें की गई हैं:
- दोषी सांसदों और विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने का प्रतिबंध लगाया जाए।
- सरकारी कर्मचारियों की तरह जनप्रतिनिधियों को भी दोषसिद्धि के बाद अयोग्य घोषित किया जाए।
- राजनीति में स्वच्छता और अपराधीकरण को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाएं।
वर्तमान कानूनी स्थिति क्या कहती है?
भारतीय संविधान के तहत, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1), 8(2) और 8(3) के अनुसार, यदि कोई सांसद या विधायक किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सजा मिलती है, तो वह सजा पूरी होने के बाद छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाता है।
हालांकि, याचिकाकर्ता का कहना है कि यह नियम पर्याप्त नहीं है क्योंकि दोषी नेता चुनावी राजनीति में वापस आ सकते हैं। सरकारी कर्मचारियों को यदि किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है और वे दोबारा उस पद पर नहीं आ सकते। ऐसे में, जनप्रतिनिधियों के लिए भी समान नियम लागू होने चाहिए।
राजनीति में अपराधीकरण की गंभीरता
भारत में राजनीति का अपराधीकरण कोई नया मुद्दा नहीं है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार:
भारत में राजनीति का अपराधीकरण एक गंभीर और बढ़ता हुआ मुद्दा है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनावों में चुने गए 543 सांसदों में से 251 (46%) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जबकि 171 (31%) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार और अपहरण शामिल हैं।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में चुने गए 43% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे।
- इनमें से 29% सांसदों पर गंभीर अपराध जैसे हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार और अपहरण के मामले थे।
- पिछले दो दशकों में राजनीति में आपराधिक तत्वों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
पिछले चुनावों की तुलना में यह आंकड़ा चिंताजनक रूप से बढ़ा है। 2014 में, 185 (34%) सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले थे, 2009 में 162 (30%), और 2004 में 125 (23%) सांसदों पर ऐसे मामले दर्ज थे। इससे स्पष्ट होता है कि पिछले दो दशकों में राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
नेता अपराध करें तो उन्हें छूट क्यों?
भारत में राजनीति का अपराधीकरण कोई नई बात नहीं है। मौजूदा कानून के तहत, अगर कोई नेता किसी गंभीर अपराध में दोषी पाया जाता है, तो उसे सिर्फ 6 साल के लिए चुनाव लड़ने से रोका जाता है। यानी, 6 साल बाद वह फिर से चुनाव लड़ सकता है, सत्ता का हिस्सा बन सकता है और देश की नीतियां तय कर सकता है। अब सवाल ये उठता है कि जब एक सरकारी कर्मचारी किसी अपराध में दोषी पाए जाने पर जीवनभर के लिए बर्खास्त हो सकता है, तो नेताओं के लिए ये नियम क्यों नहीं लागू होता?
देश में 5000 से ज्यादा आपराधिक मामले मौजूदा और पूर्व सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित हैं। इनमें हत्या, भ्रष्टाचार, दंगे, घोटाले जैसे गंभीर आरोप भी शामिल हैं। इसके बावजूद, ये नेता राजनीतिक दलों के अध्यक्ष बन सकते हैं, चुनाव प्रचार कर सकते हैं और जनता के वोटों से फिर से सत्ता में आ सकते हैं। यानी हजारों ऐसे नेता हैं, जिन पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं, लेकिन वे फिर भी राजनीति में सक्रिय हैं। कुछ तो राष्ट्रीय स्तर के बड़े दलों के अध्यक्ष भी बने बैठे हैं।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा। अदालत ने साफ कहा कि चुनाव आयोग को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है और कोई ठोस समाधान निकालना चाहिए। वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कोर्ट में तर्क दिया कि राजनीति का अपराधीकरण खत्म करने के लिए सिर्फ 6 साल का बैन काफी नहीं है, बल्कि दोषी नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि राजनीति से अपराधियों को हटाना बेहद जरूरी है, लेकिन इसका समाधान अधूरा नहीं होना चाहिए, वरना जनता को लगेगा कि उनके साथ धोखा हो रहा है। इसीलिए, कोर्ट अब इस मामले पर व्यापक फैसला देने की तैयारी कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और संभावित परिणाम
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है और केंद्र सरकार तथा चुनाव आयोग से तीन हफ्तों में जवाब मांगा है। अब मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च 2025 को होगी। कोर्ट ने इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से भी सहायता मांगी है। सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने टिप्पणी की कि:
“एक सरकारी कर्मचारी यदि किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो उसे जीवनभर के लिए नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता है। लेकिन एक दोषी सांसद या विधायक फिर से चुनाव लड़ सकता है और मंत्री भी बन सकता है। क्या यह समानता के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है?”
यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका के पक्ष में फैसला देता है, तो भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। इससे राजनीति में स्वच्छता आएगी और जनता के बीच लोकतंत्र में विश्वास बढ़ेगा। हालांकि, यह भी संभव है कि अदालत इस मामले को संसद के क्षेत्राधिकार में बताते हुए सरकार को इस पर कानून बनाने का निर्देश दे।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई है।
- भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां सार्वजनिक रूप से अपराधीकरण के खिलाफ बयान देती रही हैं, लेकिन उनके कई उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- छोटी और क्षेत्रीय पार्टियां इस फैसले का विरोध कर सकती हैं क्योंकि उनके कई बड़े नेता आपराधिक मामलों में लिप्त रहे हैं।
- चुनाव आयोग भी पहले इस तरह के प्रतिबंध की सिफारिश कर चुका है, लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार की सहमति जरूरी होगी।
भारत में राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। यदि सुप्रीम कोर्ट दोषी सांसदों और विधायकों पर चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंध लगाने का फैसला सुनाता है, तो इससे भारतीय राजनीति को स्वच्छ बनाने में मदद मिलेगी। हालांकि, इसके लिए संसद और राजनीतिक दलों को भी आगे आकर ठोस कदम उठाने होंगे।
सबसे बड़ा सवाल क्या सुप्रीम कोर्ट दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाएगा?
- अगर एक सरकारी कर्मचारी दोषी पाए जाने पर सरकारी सेवा से हटाया जा सकता है, तो नेता चुनाव क्यों लड़ सकते हैं?
- क्या सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सख्त फैसला लेकर राजनीति को अपराधियों से मुक्त करेगा?
अब सवाल यह है कि क्या जनता इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार है? क्या राजनेता इसे लागू होने देंगे? आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारतीय लोकतंत्र के भविष्य को नया मोड़ दे सकता है।
आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं? क्या दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए? हमें अपनी राय कमेंट में बताएं।