US-China Trade War :चीन ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए नए टैक्स के खिलाफ आखिरी तक लड़ने का वादा कर दिया। दरअसल ट्रम्प ने चीन से आने वाले सभी सामानों पर टैक्स दोगुना करके 20% कर दिया है। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी सामानों पर टैक्स लगाए हैं और कड़े शब्दों में अपना विरोध जताया है। चीन ने अमेरिकी खेती के सामान, जैसे चिकन, मक्का, कपास और गेहूं पर 15% टैक्स लगाए हैं और कुछ अमेरिकी कंपनियों को अपनी काली सूची में डाल दिया है। आपको बता दे कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी चुनावी सभाओ से लेकर राष्टपति की पद की सपथ लेने के बाद ये बोल रहे है कि हम जैसे को तैसा टैरिफ लगायेंगे उन्होंने इसकी अधिकारिक घोषणा भी कर दी भारत, चीन, ब्राजील, यूरोपीय संघ, मेक्सिको और कनाडा सहित कई देशों पर जवाबी टैरिफ (रेसिप्रोकल टैरिफ) लगाने की घोषणा की है। ट्रंप ने कहा कि ये देश अमेरिकी उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाते हैं, जो अनुचित है। उन्होंने विशेष रूप से भारत का उल्लेख करते हुए भी कहा कि भारत अमेरिकी ऑटोमोबाइल उत्पादों पर 100% से अधिक टैरिफ वसूलता है…
भारत ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उम्मीद है कि भारत सरकार वर्तमान में चल रही व्यापार वार्ताओं के माध्यम से इन टैरिफ से बचने की कोशिश कर सकता है3। भारत की वर्तमान सरकार उम्मीद आशा कर रही है कि व्यापार समझौतों के जरिए इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
लेकिन भारत ने हाल ही में अपने बजट 2025 में कुछ वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती की है। इस कटौती में लग्जरी कारों पर टैरिफ को 125% से घटाकर 70% कर दिया गया है, जबकि मोटरसाइकिलों के आयात पर टैरिफ को 50% से घटाकर 40% कर दिया गया है1। भारत की वर्तमान मोदी NDA सरकार का कहना है कि यह कटौती भारत की घरेलू मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें अर्धनिर्मित (SKD) और पूरी तरह से टुकड़ों में आयातित (CKD) बाइक्स पर भी टैरिफ कम किया गया है1।
भारत ने यह कटौती कई कारणों से की है:
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: यह कटौती अमेरिका के साथ बेहतर व्यापारिक संबंध बनाने के लिए की गई है, खासकर प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले2। भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता हो जिससे दोनों को फायदा हो।
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: टैरिफ कटौती से भारत में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी, खासकर ऑटोमोबाइल सेक्टर में1। इससे SKD और CKD बाइक्स को भारत में असेंबल करने में मदद मिलेगी।
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: भारत अपने उद्योगों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कच्चे माल पर टैरिफ कम करने पर विचार कर रहा है3। इससे भारतीय उत्पादों की वैश्विक बाजार में पहुंच बढ़ेगी। ऐसा वर्तमान मोदी NDA सरकार का कहना है
लेकिन चीन ने इसका कड़ा विरोध किया और आर-पार की लड़ाई की चेतावनी दे दी चीन ने कहा हम हर तरह से तैयार है चीन के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर सख्त बयान देते हुए कहा,
“हम पर दबाव डालने या धमकाने से कोई फायदा नहीं होगा। अगर अमेरिका हमसे युद्ध करना चाहता है, चाहे किसी भी तरह का युद्ध हो तो हम अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं।”
अमेरिका-चीन टैक्स लड़ाई में नई तेजी
मार्च 2025 की शुरुआत में ट्रम्प ने सभी चीनी सामानों पर टैक्स बढ़ाकर 20% कर दिया। पहले यह टैक्स 10% था। ट्रम्प ने कहा कि यह कदम हमने इसलिए भी उठाया क्योंकि चीन अमेरिका में अवैध ड्रग्स (फेंटानाइल) की तस्करी रोकने में नाकाम रहा है। लेकिन चीन ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि असली समस्या अमेरिका के अंदर ही है। चीन ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि फेंटानाइल की समस्या अमेरिका की अपनी है और अमेरिका चीन पर टैक्स लगाकर उसे धमका रहा है।
china vows to ‘fight till the end’ against us tariffs
ट्रंप का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब चीन अपनी सालाना “दो सत्र” बड़ी राजनीतिक सभा की तैयारी कर रहा है। इस सभा में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वैश्विक चुनौतियों का सामना करने की चीन की क्षमता दिखाना चाहते हैं। ताकत दिखाना चाहते हैं। चीन ने अमेरिका के इस फैसले का सख्त जवाब दिया है। उन्होंने कुछ अमेरिकी सामानों पर 15% तक का टैक्स लगाया है, जो 10 मार्च, 2025 से लागू होगा। इसके अलावा, चीन ने एक दर्जन अमेरिकी कंपनियों पर विशेष पाबंदियां लगाई हैं और विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका के खिलाफ शिकायत दर्ज की है।
चीन ने क्या कदम उठाए हैं
चीन ने सोच-समझकर अमेरिका के कुछ खास व्यापारों को निशाना बनाया है। ट्रम्प के टैक्स बढ़ाने के बाद, चीन ने अमेरिका से आने वाले चिकन, मक्का, कपास और गेहूं पर 15% टैक्स लगाया है। इसके अलावा, उन्होंने अमेरिकी समुद्री खाद्य पदार्थ, बीफ, डेयरी, फल और सब्जियां, सुअर का मांस, सोयाबीन और अन्य अनाज पर 10% टैक्स लगाया है। ये टैक्स उन इलाकों के किसानों को नुकसान पहुंचाएंगे जहां के लोग आमतौर पर ट्रम्प का समर्थन करते हैं।
टैक्स के अलावा, चीन ने अमेरिका की 15 कंपनियों को अपनी “ब्लैकलिस्ट” में डाल दिया है। इसका मतलब है कि ये कंपनियां अब चीन से जरूरी तकनीकी सामान नहीं खरीद पाएंगी। साथ ही, 10 अन्य अमेरिकी कंपनियों को भी “अविश्वसनीय संस्थाओं” की सूची में डाला गया है, जिससे उनके व्यापार पर असर पड़ेगा।, जिससे चीनी कंपनियां इन अमेरिकी कंपनियों को कुछ तकनीक नहीं बेच सकेंगी। ये कंपनियां चीन में आयात या निर्यात का काम नहीं कर पाएंगी और अमेरिका में नया निवेश नहीं कर सकेंगी। इसका एक उदाहरण अमेरिकी मेडिकल कंपनी इलुमिना है, जिसके उत्पादों पर चीन में अब पाबंदी लगा दी है।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने साफ कहा है कि “दबाव, धमकी और धौंस चीन से बात करने का सही तरीका नहीं है। ज्यादा से ज्यादा दबाव डालने की कोशिश एक बड़ी गलती है”। अमेरिका में चीनी दूतावास ने कहा, “अगर अमेरिका युद्ध चाहता है, चाहे वह टैक्स युद्ध हो, व्यापार युद्ध हो या कोई अन्य युद्ध, हम आखिरी तक लड़ने के लिए तैयार हैं”। The rhetoric accompanying these measures has been equally forceful. Lin Jian, spokesperson for China’s Foreign Ministry, stated unequivocally that “pressure, coercion, and threats are not effective methods to engage with China. Attempting to apply maximum pressure is a significant miscalculation”1. This sentiment was echoed by the Chinese Embassy in the United States, which declared, “If war is what the US wants, be it a tariff war, a trade war or any other type of war, we’re ready to fight till the end”2. These statements underscore China’s determination to project strength and resilience in the face of American economic pressure.
पुरानी लड़ाई का इतिहास
यह टैक्स लड़ाई 2018 से चल रही है। उस साल ट्रम्प ने चीन के सामानों पर पहली बार टैक्स लगाए थे, जिसके बाद चीन ने भी जवाबी कार्रवाई की थी। इस लड़ाई में कभी थोड़ी शांति होती थी और फिर से तेज हो जाती थी।
मई 2018 में, चीन ने अमेरिका से और सामान खरीदने का वादा किया था, जिससे ट्रम्प के वित्त मंत्री स्टीवन म्नुचिन ने कहा था कि “हम व्यापार युद्ध को रोक रहे हैं”। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं चली। 15 जून, 2018 को ट्रम्प ने 50 अरब डॉलर के चीनी सामानों पर 25% टैक्स लगा दिया, जिससे चीन ने अमेरिका पर व्यापार युद्ध शुरू करने का आरोप लगाया। 2018 के दौरान दोनों देशों ने एक-दूसरे के सामानों पर और टैक्स लगाए।
इस लड़ाई से दोनों देशों को नुकसान हुआ है। 2019 के अंत तक, अमेरिका ने चीनी सामानों पर लगभग 350 अरब डॉलर के टैक्स लगा दिए थे, जबकि चीन ने अमेरिकी सामानों पर लगभग 100 अरब डॉलर के टैक्स लगाए थे। नवंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि “चीन पर अमेरिकी टैक्स दोनों देशों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।” इससे अमेरिका में सामान बनाने वालों की लागत बढ़ गई, ग्राहकों को ज्यादा दाम चुकाने पड़े, और किसानों को परेशानी हुई, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो गई।
आर्थिक असर और व्यापार युद्ध का बड़ा प्रभाव
यह नई लड़ाई ऐसे समय में हो रही है जब चीन दुनिया का सबसे बड़ा सामान बनाने वाला / विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) केंद्र बन चुका है। 2024 में,चीन का दुनिया के साथ व्यापार में अधिशेष (यानी निर्यात और आयात के बीच का अंतर) 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया, मतलब उसको 1 ट्रिलियन डॉलर का फायदा हुआ। चीन ने 3.5 ट्रिलियन डॉलर का सामान बाहर भेजा और 2.5 ट्रिलियन डॉलर का सामान खरीदा। जिसका मतलब है कि उसने बहुत अधिक सामान बेचा और कम खरीदा। 1970 के दशक के बाद से चीन अपनी सस्ती लेबर और सरकारी निवेश की मदद से दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है। सबसे बड़ा सामान बनाने वाला देश बन गया है।
पिछली टैक्स लड़ाई से दोनों देशों को बड़ा नुकसान हुआ था। मूडीज एनालिटिक्स के अनुसार, अगस्त 2019 तक, अमेरिका में 300,000 नौकरियां या तो खो गईं या नहीं बनीं, खासकर सामान बनाने, गोदाम, वितरण और दुकान के क्षेत्रों में। सितंबर 2019 तक, अमेरिकी निर्माता कंपनियां इस लड़ाई से पैदा हुई अनिश्चितता के कारण निवेश कम कर रही थीं और नई भर्तियां नहीं कर रही थीं। 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका ने ट्रम्प के टैक्स के कारण 245,000 नौकरियां खो दीं।
अमेरिकी खरीदारों पर भी बड़ा असर पड़ा। मई 2019 में गोल्डमैन सैक्स की जांच में पाया गया कि टैक्स लगे नौ तरह के सामानों की कीमतें बहुत बढ़ गई थीं, जबकि बाकी सभी सामानों की कीमतें घट रही थीं। कंज्यूमर टेक्नोलॉजी एसोसिएशन के अनुसार, चीनी सामानों पर 60 प्रतिशत टैक्स से लैपटॉप और टैबलेट की कीमत 46 प्रतिशत तक और स्मार्टफोन की कीमत 26 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। नेशनल रिटेल फेडरेशन ने अनुमान लगाया कि ग्राहकों को टैक्स वाले उपकरणों के लिए 6.4-10.9 अरब डॉलर अतिरिक्त देने पड़ेंगे।
नई टैक्स लड़ाई से ये आर्थिक समस्याएं और बढ़ सकती हैं। कैपिटल इकोनॉमिक्स में चीन अर्थशास्त्र के प्रमुख जूलियन इवांस-प्रिचार्ड ने कहा कि चीन का जवाब यह संदेश देने के लिए है कि “वे दबाव में नहीं आएंगे, लेकिन साथ ही अपने जवाब को ऐसे संतुलित कर रहे हैं कि स्थिति और न बिगड़े”। इससे पता चलता है कि चीन इस लड़ाई में रणनीतिक सोच रखता है और समझता है कि दोनों देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं, फिर भी वह अपने हितों की रक्षा करना चाहता है।
राजनीतिक पहलू और रणनीति
यह टैक्स लड़ाई ऐसे समय में हो रही है जब चीन अपनी सालाना “दो सत्र” राजनीतिक सभा कर रहा है। इस सभा में शी जिनपिंग और उनके सहयोगी चीन को एक बढ़ती हुई वैश्विक ताकत के रूप में दिखाना चाहते हैं, जो तकनीकी क्षमताओं में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह राजनीतिक माहौल टैक्स लड़ाई को और जटिल बनाता है, क्योंकि चीन के नेताओं को आर्थिक मुद्दों, घरेलू राजनीतिक समर्थन और अंतरराष्ट्रीय छवि के बीच संतुलन बनाना है।
चीन के नंबर 2 नेता, ली किआंग, देश के सालाना आर्थिक विकास और सैन्य खर्च के लक्ष्यों की घोषणा करेंगे और बताएंगे कि बढ़ते अमेरिकी दबाव के बावजूद चीन कैसे आर्थिक रूप से आगे बढ़ेगा और तकनीकी नेता बनेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि एक हफ्ते की राष्ट्रीय पीपुल्स कांग्रेस की बैठकों में कोई बड़ा नीतिगत बदलाव नहीं होगा, क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ही अंतिम फैसले लेती है, और शी कई दशकों में सबसे शक्तिशाली नेता बने हुए हैं।
चीन के नेता इस लड़ाई को चीन के उभार और मजबूती की कहानी के हिस्से के रूप में पेश कर रहे हैं। एक क्यूशी लेख में शी ने कहा, “हमें बाहरी दबावों के सामने सीधे चुनौतियों का सामना करना चाहिए और अपने आत्मविश्वास को मजबूत करना चाहिए”। इसका मतलब है कि चीन खुद को वैश्विक व्यापार नियमों के रक्षक के रूप में दिखा रहा है, जबकि अमेरिका को एकतरफा कार्रवाई करने वाला बता रहा है। चीन के लिए, यह टैक्स लड़ाई एक बड़े संदेश का हिस्सा है कि बढ़ती चुनौतियों के बावजूद, वह आत्मविश्वास से अपने रास्ते पर चल रहा है और दुनिया के व्यापार और व्यवस्था का समर्थक बनने के लिए तैयार है।
दुनिया पर असर और आगे की स्थिति
अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती टैक्स लड़ाई का असर सिर्फ इन दो देशों तक ही सीमित नहीं है। पिछली टैक्स लड़ाई से दूसरे देशों को भी नुकसान हुआ था, हालांकि कुछ देशों को फायदा भी हुआ क्योंकि कंपनियों ने वहां अपना सामान बनाना शुरू कर दिया। इस लड़ाई से शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव भी आया और दुनिया भर की सरकारों को इससे होने वाले आर्थिक नुकसान से निपटने के लिए कदम उठाने पड़े।
कई अमेरिकी कंपनियां पहले ही अपना सामान बनाने का काम एशिया के दूसरे देशों में शिफ्ट कर चुकी हैं, जिससे चिंता है कि टैक्स लड़ाई से अमेरिका-चीन आर्थिक ‘अलगाव’ हो सकता है। नई तनाव के साथ यह प्रवृत्ति और तेज हो सकती है, जिससे दुनिया भर में सामान बनाने और व्यापार के तरीकों में बड़े बदलाव आ सकते हैं। आर्थिक आपसी निर्भरता, जो दशकों से अमेरिका-चीन संबंधों की खासियत रही है, उसे अब राजनीतिक मुद्दों और दुनिया की आर्थिक व्यवस्था के अलग-अलग नजरियों से चुनौती मिल रही है।
आगे की स्थिति कई चीजों पर निर्भर करेगी, जैसे दोनों देशों की घरेलू राजनीति, उनकी अर्थव्यवस्थाओं की मजबूती, और दुनिया के हालात। चीन के अटल रुख से लगता है कि जल्दी समाधान मुश्किल है, खासकर जब दोनों तरफ से कड़े बयान आ रहे हों। “आखिरी तक लड़ने” का वादा बताता है कि चीन के नेता लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं, भले ही वे आर्थिक नुकसान कम करने के लिए अपनी प्रतिक्रिया को संतुलित कर रहे हों।
अमेरिका और चीन के बीच यह व्यापारिक तनाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी असर डाल सकता है। व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह विवाद लंबे समय तक चलता रहा, तो इससे दुनियाभर के व्यापारिक बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है और कई देशों की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
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