राजस्थान SI भर्ती घोटाला 2021: देखिये सिस्टम आपके भविष्य के साथ किस तरह से खिलवाड़ कर रहा है, अब तक की पूरी कहानी

Zulfam Tomar
13 Min Read
Rajasthan police sub-inspectors SI recruitment 2021 scam
राजस्थान पुलिस सब-इंस्पेक्टर (SI) भर्ती परीक्षा 2021 एक ऐसी घटना बन गई, जिसने न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश में सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिए। यह परीक्षा, जो राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) द्वारा आयोजित की गई थी, 857 सब-इंस्पेक्टर पदों के लिए थी। लेकिन पेपर लीक, डमी उम्मीदवारों और भ्रष्टाचार के आरोपों ने इसे घोटाले की शक्ल दे दी। आइए, इस मामले को समझते हैं।

परीक्षा का आयोजन
  • कब हुई: 13, 14 और 15 सितंबर 2021 को।
  • कहाँ हुई: राजस्थान के 11 जिलों में 802 परीक्षा केंद्रों पर।
  • कितने उम्मीदवार: कुल 7,97,030 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया, जिनमें से लगभग 3,80,000 परीक्षा में शामिल हुए।
  • उद्देश्य: 857 सब-इंस्पेक्टर और प्लाटून कमांडर पदों पर भर्ती।
परीक्षा तीन चरणों में हुई थी, और परिणाम आने के बाद चयनित उम्मीदवारों को प्रशिक्षण के लिए राजस्थान पुलिस अकादमी (RPA) भेजा गया। लेकिन इसके बाद जो खुलासे हुए, उन्होंने सबको चौंका दिया।

घोटाले का खुलासा
2021 की इस भर्ती में अनियमितताओं के आरोप लगने शुरू हुए। राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) ने जांच शुरू की, और कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए:
  1. पेपर लीक:
    • परीक्षा से पहले ही प्रश्नपत्र लीक हो गए थे।
    • मुख्य मास्टरमाइंड जगदीश विश्नोई नाम का शख्स था, जो पिछले 19 सालों से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक करने में शामिल रहा।
    • SOG के अनुसार, विश्नोई ने अपने गैंग के साथ मिलकर पेपर को कई उम्मीदवारों तक पहुँचाया। इसमें यूनिक भाम्बू (पंकज चौधरी), हर्षवर्धन सिंह मीणा जैसे लोग शामिल थे।
    • कुछ परीक्षा केंद्रों के अधीक्षकों को भी रिश्वत दी गई, जैसे राजेश खंडेलवाल को 10 लाख रुपये दिए गए।

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      आरोप है कि प्रश्न पत्र के लिए 20-20 लाख रुपए दिए

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  2. डमी उम्मीदवार:
    • कई मूल अभ्यर्थियों की जगह डमी उम्मीदवारों ने परीक्षा दी।
    • जांच में पता चला कि कुछ चयनित SI असल में परीक्षा में बैठे ही नहीं थे। डमी टेस्ट में ये लोग मूल प्रश्नपत्र हल नहीं कर पाए।
    • उदाहरण के लिए, एक महिला उम्मीदवार की जगह पुरुष ने परीक्षा दी और वह चयनित होकर प्रशिक्षण ले रही थी।
  3. RPSC की भूमिका:
    • RPSC के पूर्व सदस्य रामूराम रायका पर अपनी बेटी शोभा और बेटे देवेश को पेपर लीक करने का आरोप लगा।
    • एक अन्य अधिकारी बीएल कटारा भी इस साजिश में शामिल था।
    • इन आरोपों ने RPSC की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए।
  4. टॉपर भी संदिग्ध:
    • परीक्षा का टॉपर नरेश खिलेरी भी जांच के दायरे में आया। SOG ने उसे हिरासत में लिया और पूछताछ की।

अब तक की कार्रवाई
  • गिरफ्तारियाँ:
    • SOG ने 40 से ज्यादा लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की, जिसमें 17 चयनित ट्रेनी SI शामिल थे।
    • मार्च 2024 में 14 ट्रेनी SI और 16 अन्य अभियुक्त गिरफ्तार हुए।
    • अगस्त 2024 में 5 और ट्रेनी SI (3 पुरुष, 2 महिलाएँ) हिरासत में लिए गए।
    • कुल मिलाकर SOG ने अब तक करीब 50 ट्रेनी SI को गिरफ्तार किया है, जिनमें से 25 को हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है।
  • डमी टेस्ट:
    • SOG ने चयनित SI का डमी टेस्ट करवाया, जिसमें मूल परीक्षा के सवाल दोबारा हल करने को कहा गया।
    • 17 ट्रेनी SI इसमें फेल हुए, जिससे धांधली की पुष्टि हुई।
  • चार्जशीट:
    • SOG ने आरोपियों के खिलाफ 2369 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की,
  • हाईकोर्ट का हस्तक्षेप:
    • जनवरी 2025 में राजस्थान हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई जब ट्रेनी SI को फील्ड ट्रेनिंग पर भेजा गया था।
9 जनवरी, 2025 को तय हुई सुनवाई में राजस्थान हाईकोर्ट ने सब-इंस्पेक्टर (SI) भर्ती 2021 मामले में राज्य सरकार को बड़ा निर्देश दिया है। कोर्ट ने सरकार को 2 महीने का समय दिया है ताकि वह इस भर्ती से जुड़ा कोई भी अंतिम फैसला ले सके। हालांकि, इस दौरान चयनित ट्रेनी SI की फील्ड पोस्टिंग पर रोक जारी रहेगी। कोर्ट ने सरकार को स्वतंत्रता दी है कि वह अपनी मर्जी से कोई भी निर्णय ले सकती है, लेकिन निर्णय के बाद उसे अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश करनी होगी। इस मामले की अगली सुनवाई अब 2 मई, 2025 को होगी।

सरकार ने माँगा था 4 महीने का वक्त
गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने इस मामले में अंतिम निर्णय के लिए 4 महीने का समय माँगा था। सरकार का तर्क था कि मामला जटिल है और इसमें कई पक्षों पर विचार करना जरूरी है। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि “4 महीने का समय बहुत ज्यादा है। दो महीने में निर्णय लिया जा सकता है। फिर भी, हम सरकार को 3 महीने देने को तैयार थे।” अंततः कोर्ट ने 2 महीने की समयसीमा तय की।
क्या चाहते हैं याचिकाकर्ता?
इस मामले में तीन मुख्य पक्ष हैं:
  1. याचिकाकर्ता: ये लोग भर्ती को पूरी तरह रद्द करने की माँग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG), पुलिस मुख्यालय, अटॉर्नी जनरल (AG), और कैबिनेट सब-कमेटी पहले ही भर्ती रद्द करने की सिफारिश कर चुके हैं। पेपर लीक और धांधली के सबूतों के आधार पर वे इसे अन्यायपूर्ण मानते हैं।
  2. ट्रेनी SI: दूसरी ओर, प्रशिक्षण ले रहे सब-इंस्पेक्टरों का कहना है कि वे बेकसूर हैं। उनका दावा है कि “पेपर लीक में हमारी कोई संलिप्तता नहीं है। हमने इस नौकरी के लिए दूसरी सरकारी नौकरियाँ छोड़ी हैं। अगर भर्ती रद्द हुई तो हमारे साथ अन्याय होगा।”
  3. सरकार: राज्य सरकार अभी तक फैसले को टालती रही है, लेकिन अब हाईकोर्ट के दबाव में उसे निर्णय लेना होगा।

मंत्री की संलिप्तता:

  • कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने दावा किया कि एक पूर्व मंत्री इस घोटाले में शामिल था, हालाँकि नाम स्पष्ट नहीं किया गया।

वर्तमान स्थिति (7 अप्रैल, 2025 तक)
  • जांच जारी: SOG और कोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है। SOG ने भर्ती रद्द करने की सिफारिश की है।
  • प्रदर्शन: युवा इस भर्ती को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। वहीं, ट्रेनी SI के परिजन इसका विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि सभी दोषी नहीं हैं।
  • नॉर्मलाइजेशन विवाद: कुछ लोगों का दावा है कि नॉर्मलाइजेशन (अंकों को समायोजित करने की प्रक्रिया) भी गैरकानूनी थी, क्योंकि इसका जिक्र न तो विज्ञापन में था और न ही नियमों में।
  • संभावना: अगर पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले की तरह सुप्रीम कोर्ट का फैसला यहाँ लागू हुआ, तो पूरी भर्ती रद्द हो सकती है।

प्रमुख आँकड़े
  • पकड़े गए ट्रेनी SI: 50 से अधिक।
  • पेपर खरीद की कीमत: 20-22 लाख रुपये प्रति उम्मीदवार।
  • चयनित संदिग्धों की संख्या: 250 से ज्यादा होने का अनुमान।
  • महिला SI संदिग्ध: 6 शामिल।
स्कैम का सिलसिला: कहाँ तक चलेगा?
राजस्थान SI भर्ती घोटाला 2021 कोई अकेली घटना नहीं है। चाहे किसी स्कूल में दाखिला लेना हो या सरकारी नौकरी का एग्जाम, हर प्रक्रिया में स्कैम की खबरें आम हो चुकी हैं। कुछ मामले सामने आ जाते हैं, जैसे यह SI भर्ती का पेपर लीक, लेकिन बाकी अनगिनत घोटाले अंधेरे में दबे रहते हैं। सवाल यह है कि यह खिलवाड़ कब तक चलता रहेगा? लाखों युवा दिन-रात मेहनत करते हैं, सपने देखते हैं, लेकिन जब नतीजे सामने आते हैं, तो पता चलता है कि उनकी मेहनत को कुछ लोग अपने फायदे के लिए बेच चुके हैं।
कानून बने, फिर भी कमी क्यों?
इस तरह के घोटालों को रोकने के लिए सरकार ने सख्त कानून भी बनाए हैं। पेपर लीक और भर्ती में धांधली के लिए सजा का प्रावधान है। मगर क्या ये कानून सचमुच काम कर रहे हैं? हर बार जांच शुरू होती है, कमेटियाँ बनती हैं, रिपोर्ट्स तैयार होती हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। राजस्थान SI मामले में SOG ने 50 से ज्यादा ट्रेनी SI को पकड़ा, चार्जशीट दाखिल की, फिर भी भर्ती का फैसला अब तक अधर में लटका है। कानून होने के बावजूद कमी इसलिए नहीं आ रही, क्योंकि इस खेल में बड़े-बड़े लोग शामिल होते हैं। जब मामला गरमाता है, तो ये लोग आसानी से पल्ला झाड़ लेते हैं, और जाँच का बोझ निचले स्तर के लोगों पर डाल दिया जाता है।
बड़े लोग और छोटी मछलियाँ
SI भर्ती घोटाले में भी यही देखने को मिला। मास्टरमाइंड जगदीश विश्नोई जैसे लोग तो पकड़े गए, लेकिन क्या असली किंगपिन तक पहुँच हुई? RPSC के पूर्व सदस्य रामूराम रायका और बीएल कटारा पर आरोप लगे, कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने एक पूर्व मंत्री पर उँगली उठाई, मगर इन बड़े नामों का क्या हुआ? ज्यादातर मामलों में छोटे स्तर के दलाल, डमी कैंडिडेट्स या परीक्षा केंद्र के कर्मचारी पकड़े जाते हैं, जबकि असली साजिश रचने वाले बच निकलते हैं। यह सिस्टम की सबसे बड़ी विडंबना है कि जाँच चलती रहती है, लेकिन सजा तक बात कम ही पहुँचती है।
युवाओं का भविष्य दाँव पर
इस भर्ती में 7 लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने फॉर्म भरा लगभग 3,80,000 परीक्षा में शामिल हुए इनमें से ज्यादातर ने सालों तक तैयारी की, परिवार का पैसा और समय लगाया। लेकिन पेपर लीक और डमी कैंडिडेट्स की वजह से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया। ट्रेनी SI कहते हैं कि वे बेकसूर हैं और भर्ती रद्द होने से उनका नुकसान होगा। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता कहते हैं कि धांधली हुई है, तो पूरी भर्ती रद्द होनी चाहिए। दोनों पक्षों के बीच फंसा सिस्टम यह तय ही नहीं कर पा रहा कि सही क्या है। नतीजा? युवाओं का भविष्य अनिश्चितता की भेंट चढ़ रहा है।
कब आएगा बदलाव?
जब तक भर्ती प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और सुरक्षित नहीं बनाया जाता, तब तक ऐसे घोटाले रुकने वाले नहीं। तकनीक का इस्तेमाल, कड़े नियम, और जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई ही इसका हल हो सकती है। लेकिन सबसे जरूरी है बड़े लोगों को जवाबदेह बनाना। अगर हर बार सिर्फ छोटी मछलियाँ पकड़ी जाएँगी और मगरमच्छ बचते रहेंगे, तो यह सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा। हाईकोर्ट ने सरकार को 2 महीने का समय दिया है, लेकिन क्या यह समय सचमुच बदलाव लाएगा, या फिर एक और रिपोर्ट फाइलों में दब जाएगी?
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