भ्रष्टाचार उजागर करने पर पत्रकार के खिलाफ झूठा केस, पीलीभीत में पत्रकार दंपती ने की लाइव आत्महत्या की कोशिश, प्रशासन में मची हलचल

घटना का संक्षिप्त विवरण: पीलीभीत, उत्तर प्रदेश में, एक पत्रकार ने निर्माण कार्य में घटिया ईंटों की खबर छापी, जिसके बाद एसडीएम नगेंद्र पांडे और नगर पंचायत अध्यक्ष श्याम बिहारी भोजवाल ने उनके खिलाफ रंगदारी का झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया। प्रताड़ना से तंग आकर दंपत्ति ने 29 मई 2025 को लाइव वीडियो में जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की। जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। तो प्रशासन में हडकम मच गया

आपका भारत टाइम्स
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Pilibhit Journalist Poison Attempt: Reporter, Wife Blame .. UP Shocker: Pilibhit journalist and wife consume poison on camera, accuse SDM, contractor, and panchayat head of harassment and threats.

विस्तृत रिपोर्ट

Pilibhit journalist Suicide Case drank poison with wife : पीलीभीत, उत्तर प्रदेश में 29 मई 2025 को एक दुखद घटना सामने आई, जहां पत्रकार इसरार अहमद और उनकी पत्नी मिराज ने लाइव वीडियो में जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की। इस घटना ने भ्रष्टाचार, प्रशासनिक दुरुपयोग और प्रेस की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को एक बार फिर उजागर किया है। इस रिपोर्ट में घटना के सभी पहलुओं, वर्तमान स्थिति, और इससे जुड़े व्यापक सवालों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।

घटना का विवरण

इसरार अहमद, जो “दैनिक केसरीया हिंदुस्तान” अखबार के लिए काम करते हैं, ने बरखेड़ा नगर पंचायत में निर्माण कार्य में घटिया ईंटों के इस्तेमाल की खबर प्रकाशित की थी।

इसरार ने अपने वायरल वीडियो में बताया कि उन्होंने बरखेड़ा नगर पंचायत में सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार और घटिया सामग्री के इस्तेमाल की खबर छापी थी, जिसकी शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंची थी। इसके बाद, 19 मई 2025 को ठेकेदार मोइन हुसैन ने उनके खिलाफ रंगदारी का झूठा मुकदमा दर्ज करवाया, जिसमें दावा किया गया कि इसरार ने 15,000 रुपये की मांग की और नकारात्मक खबर छापने की धमकी दी। इसरार ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि यह सब उनकी खबर जिसमे भ्रष्टाचार को उजागर किया उसका का बदला लिया गया। उन्होंने एसडीएम नगेंद्र पांडे और नगर पंचायत अध्यक्ष श्याम बिहारी भोजवाल पर भी उनकी पत्नी के साथ अनुचित व्यवहार और लगातार उत्पीड़न का आरोप लगाया। वीडियो में इसरार ने कहा, “हम इतने मजबूर हो गए हैं कि हमारे पास जहर पीने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा। योगी जी, हमें इंसाफ चाहिए।”FIR KI COPY

रिपोर्ट्स के अनुसार, इसरार और उसकी पत्नी मिराज ने जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। तो प्रशासन में हडकम मच गया यह मामला न केवल भ्रष्टाचार की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर दबाव डाला जा रहा है।

वर्तमान स्थिति और स्वास्थ्य अपडेट

वर्तमान में, इसरार अहमद की स्थिति खतरे से बाहर है, लेकिन उनकी पत्नी मिराज की हालत गंभीर बनी हुई है। दोनों को पीलीभीत के जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है, और मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) ने उनकी देखभाल के लिए सर्वोत्तम उपचार का आश्वासन दिया है। समाचार स्रोतों और एक्स पोस्ट्स के अनुसार, इसरार को अब खतरे से बाहर माना जा रहा है, लेकिन मिराज की गंभीर स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है।

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जांच और प्रशासनिक कार्रवाई

पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। बिसालपुर सर्कल ऑफिसर प्रतीक दहिया ने कहा है कि पुलिस सभी कोणों से जांच कर रही है, और जांच के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, अभी तक एसडीएम नगेंद्र पांडे और नगर पंचायत अध्यक्ष श्याम बिहारी भोजवाल के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की खबर नहीं है। समुदाय और प्रेस स्वतंत्रता के समर्थक इस मामले में अधिकारियों की भूमिका की गहन जांच की मांग कर रहे हैं।

“अमृत काल” पर सवाल
पूर्व मुख्यमंत्री व SP प्रमुख अखिलेश यादव ने  कहा कि यह घटना उस समय हुई है जब सरकार “आज़ादी का अमृत काल” (2022-2047) के तहत भारत को समृद्ध और विकसित राष्ट्र बनाने का दावा कर रही है। लेकिन जब एक पत्रकार को भ्रष्टाचार उजागर करने की सजा में इतनी प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है कि उसे जहर खाना पड़ रहा है, तो यह सवाल उठता है कि यह “अमृत काल” कितना वास्तविक है? भ्रष्टाचार और प्रशासनिक दुरुपयोग की यह घटना सरकार के दावों को खोखला साबित करती है।akhilesh yadav wife akhilesh yadav education akhilesh yadav net worth अखिलेश यादव wife akhilesh yadav party akhilesh yadav news in hindi अखिलेश यादव daughter akhilesh yadav myneta akhilesh yadav wife name pilibhit in hindi pilibhit news pilibhit news in hindi akhilesh yadav on israr pilibhit Akhilesh Yadav
“एनकाउंटर सरकार” और बुलडोजर की मांग
उत्तर प्रदेश की cm योगी सरकार की अपनी “एनकाउंटर” और बुलडोजर नीति के लिए जानी जाती है, जो अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रतीक है। जनता अब सवाल उठा रही है कि जब आत्महत्या के लिए उकसाने वाले लोग सामने हैं, तो सरकार का बुलडोजर इन भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कब चलेगा? इसरार और मिराज का वीडियो और उनके आरोप पर्याप्त सबूत हैं, फिर भी कार्रवाई में देरी जनता के गुस्से को और भड़का रही है। कुछ लोग ये भी लिख रहे है कि पत्रकार मुसलमान है इसलिए इस तरह टॉर्चर किया गया 
राजनीतिक टिप्पणी और ईमानदारी का सवाल
घटना के बाद कई लोगों ने सरकार, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), पर ईमानदारी को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है। “ईमानदार कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!” जैसे नारे सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं। यह मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो गया है, और विपक्षी दलों ने इसे सरकार के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। 

पीलीभीत की यह घटना भ्रष्टाचार और प्रशासनिक दुरुपयोग का एक भयावह उदाहरण है, जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सच बोलने वालों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाती है। इसरार और मिराज की आत्महत्या की कोशिश ने समाज के सामने एक कड़वा सच ला दिया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत कितनी भारी हो सकती है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस मामले में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई करेगी, या यह भी एक और अनसुलझा मामला बनकर रह जाएगा? 
पीलीभीत पत्रकार उत्पीड़न मामले से जुड़े हालिया मामले: भ्रष्टाचार उजागर करने पर पत्रकारों पर हमले और कानूनी उत्पीड़न

हालिया समान मामले (2019-2025)
1. पवन कुमार जायसवाल, उत्तर प्रदेश (2019)
  • घटना: पत्रकार पवन कुमार जायसवाल ने उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्कूल के मध्याह्न भोजन योजना में भ्रष्टाचार को उजागर किया था। उन्होंने एक वीडियो में दिखाया कि स्कूल में बच्चों को केवल रोटी और नमक परोसा जा रहा था, जबकि योजना के तहत पौष्टिक भोजन देना अनिवार्य था।
  • उत्पीड़न: इसके जवाब में, स्थानीय प्रशासन ने जायसवाल के खिलाफ चार आपराधिक मुकदमे दर्ज किए, जिसमें मानहानि और धोखाधड़ी जैसे आरोप शामिल थे। उनकी गिरफ्तारी का डर बना रहा, और उनके स्रोत (एक स्थानीय व्यक्ति) को गिरफ्तार कर लिया गया। जायसवाल ने कहा कि वह और उनका परिवार डर में जी रहे हैं।
  • पैटर्न: भ्रष्टाचार उजागर करने पर पत्रकार के खिलाफ झूठे मुकदमे और धमकियां, जैसा कि पीलीभीत मामले में देखा गया।
2. महेश लंगा, गुजरात (2024-2025)
  • घटना: द हिंदू के पत्रकार महेश लंगा को गुजरात पुलिस ने 2024 में कथित जीएसटी घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया। इसके बाद, जनवरी 2025 में उनके खिलाफ एक और मामला दर्ज किया गया, जिसमें उन पर एक रियल एस्टेट एजेंट से 40 लाख रुपये की उगाही का आरोप लगाया गया।
  • उत्पीड़न: लंगा पर मनी लॉन्ड्रिंग और आधिकारिक दस्तावेज रखने के आरोप लगाए गए। द हिंदू के संपादक ने इसे “अस्वीकार्य” बताया और कहा कि यह पत्रकारिता को दबाने का प्रयास है। लंगा को जमानत भी नहीं दी गई, और उन्हें चार दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया।
  • पैटर्न: भ्रष्टाचार या संवेदनशील मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ आर्थिक अपराधों के झूठे मामले दर्ज करना, जैसा कि पीलीभीत में रंगदारी के मामले में हुआ।
3. सिद्दीक कप्पन, उत्तर प्रदेश (2020-2022)
  • घटना: पत्रकार सिद्दीक कप्पन को अक्टूबर 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की खबर कवर करने जाते समय गिरफ्तार किया गया।
  • उत्पीड़न: कप्पन पर आतंकवाद, राजद्रोह, और समुदायों के बीच दुश्मनी फैलाने के आरोप लगाए गए, जिसमें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) का इस्तेमाल किया गया। उन्हें दो साल तक जेल में रखा गया, और जमानत मिलने के बाद भी पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत फिर से हिरासत में लिया गया।
  • पैटर्न: संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों, विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के, के खिलाफ कठोर कानूनों का दुरुपयोग। पीलीभीत मामले में भी इसरार और मिराज, जो मुस्लिम हैं, को इसी तरह निशाना बनाया गया।
4. दिलवार हुसैन मोजुमदार, असम (मार्च 2025)
  • घटना: असम के द क्रॉसकरंट के पत्रकार दिलवार हुसैन मोजुमदार को मार्च 2025 में असम को-ऑपरेटिव अपेक्स बैंक में कथित वित्तीय कदाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को कवर करने के लिए गिरफ्तार किया गया।
  • उत्पीड़न: मोजुमदार पर आपराधिक आरोप लगाए गए, और उनकी गिरफ्तारी को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया गया। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने इसकी निंदा की और इसे पत्रकारों को चुप कराने का प्रयास बताया।
  • पैटर्न: भ्रष्टाचार या वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करने पर पत्रकारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई, जैसा कि पीलीभीत में इसरार के खिलाफ रंगदारी का मामला दर्ज किया गया।
  • स्रोत: CPJ: India Archives

5. राघवेंद्र बाजपेयी, उत्तर प्रदेश (मार्च 2025)
  • घटना: उत्तर प्रदेश के पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी को मार्च 2025 में गोली मारकर हत्या कर दी गई। वह भ्रष्टाचार और संगठित अपराध से संबंधित खबरों पर काम कर रहे थे।
  • उत्पीड़न: उनकी हत्या को उनके पत्रकारीय कार्य से जोड़ा गया, और CPJ ने मांग की कि जांच में यह पता लगाया जाए कि क्या यह हत्या उनकी रिपोर्टिंग का परिणाम थी।
  • पैटर्न: भ्रष्टाचार उजागर करने वाले पत्रकारों पर शारीरिक हमले और हत्या, जो पीलीभीत मामले में आत्महत्या की कोशिश तक ले जाने वाले उत्पीड़न से मिलता-जुलता है।
  • स्रोत: CPJ: India Archives

6. मुकेश चंद्राकर, छत्तीसगढ़ (जनवरी 2025)
  • घटना: स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर की जनवरी 2025 में छत्तीसगढ़ में हत्या कर दी गई। उनकी लाश एक सेप्टिक टैंक में मिली। वह भ्रष्टाचार और स्थानीय मुद्दों पर काम कर रहे थे।
  • उत्पीड़न: उनकी हत्या को उनके पत्रकारीय कार्य से जोड़ा गया, और CPJ ने इसे पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती हिंसा का उदाहरण बताया।
  • पैटर्न: भ्रष्टाचार पर काम करने वाले पत्रकारों की हत्या और उत्पीड़न, जो पीलीभीत मामले में देखे गए दबाव और धमकियों से समानता रखता है।
  • स्रोत: CPJ: India Archives

7. न्यूज़क्लिक पर छापे, दिल्ली (अक्टूबर 2023)
  • घटना: स्वतंत्र समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक से जुड़े 46 पत्रकारों के घरों पर अक्टूबर 2023 में दिल्ली पुलिस ने छापेमारी की, यह दावा करते हुए कि पोर्टल को चीन से अवैध फंडिंग मिल रही थी।
  • उत्पीड़न: पत्रकारों पर UAPA और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए गए, और उनके उपकरण जब्त किए गए। RSF ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर “प्रकट हमला” बताया।
  • पैटर्न: सरकार की आलोचना या भ्रष्टाचार उजागर करने वाले स्वतंत्र मीडिया के खिलाफ कठोर कानूनों का दुरुपयोग, जैसा कि पीलीभीत में झूठे रंगदारी मामले में हुआ।

समान पैटर्न
इन सभी मामलों में निम्नलिखित समानताएं देखी गई हैं, जो पीलीभीत मामले से जुड़ती हैं:
  1. भ्रष्टाचार उजागर करने पर निशाना: पत्रकारों को भ्रष्टाचार, अवैध गतिविधियों (जैसे अवैध खनन, भूमि हड़पने, मध्याह्न भोजन घोटाला), या प्रशासनिक अनियमितताओं को उजागर करने के लिए निशाना बनाया गया।
  2. झूठे कानूनी मामले: पत्रकारों के खिलाफ रंगदारी, मानहानि, UAPA, राजद्रोह, या आर्थिक अपराध जैसे झूठे मामले दर्ज किए गए, जैसा कि पीलीभीत में इसरार के खिलाफ रंगदारी का मामला दर्ज हुआ।
  3. प्रशासन और स्थानीय शक्ति का गठजोड़: स्थानीय अधिकारी, राजनेता, और प्रभावशाली लोग (जैसे ठेकेदार या माफिया) मिलकर पत्रकारों को चुप कराने के लिए कानूनी और शारीरिक उत्पीड़न करते हैं।
  4. अल्पसंख्यक पत्रकारों पर अतिरिक्त दबाव: कई मामलों में, विशेष रूप से इसरार और सिद्दीक कप्पन जैसे मुस्लिम पत्रकारों को धार्मिक आधार पर अतिरिक्त निशाना बनाया गया।
  5. प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला: ये मामले भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के ह्रास को दर्शाते हैं, जैसा कि 2025 RSF विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत के 151वें स्थान पर होने से स्पष्ट है।

  6. न्याय में देरी और अड़चनें: अधिकांश मामलों में, पत्रकारों के खिलाफ दर्ज FIRs पर जांच धीमी होती है, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई शायद ही होती है, जैसा कि पीलीभीत मामले में अभी तक कोई ठोस कार्रवाई न होने से दिखता है।

व्यापक संदर्भ और आंकड़े
  • रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF): 2014 से 2024 तक भारत में 28 पत्रकारों की हत्या हुई, जिनमें से 13 पर्यावरण और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों पर काम कर रहे थे। ये पत्रकार अवैध खनन, भूमि हड़पने, और माफिया गतिविधियों को उजागर कर रहे थे।

  • कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ): 2010-2020 के बीच 154 पत्रकारों को गिरफ्तार, हिरासत में लिया, या पूछताछ के लिए बुलाया गया। 2020 में ही 67 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 73 बीजेपी शासित राज्यों से थे, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में 29 मामले।,

  • पैटर्न: भ्रष्टाचार, अपराध, और राजनीति पर काम करने वाले पत्रकार सबसे अधिक खतरे में हैं। ग्रामीण और छोटे शहरों में हिंदी या स्थानीय भाषा के पत्रकारों को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है।

  • कश्मीर और अन्य संघर्ष क्षेत्र: जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्रों में पत्रकारों को सेना, पुलिस, और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जो पीलीभीत मामले में स्थानीय प्रशासन के दुरुपयोग से मिलता-जुलता है।,

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