पति ने जबरन अप्राकृतिक सेक्स किया, पत्नी की मौत; लेकिन हाईकोर्ट ने कहा अपराध नहीं……

"शादी का लाइसेंस या जबरदस्ती का हक? वैवाहिक बलात्कार पर बड़ी बहस!"

Zulfam Tomar
15 Min Read
Highlights
  • पूरा मामला क्या था?
  • हाईकोर्ट ने पति को किस आधार पर दोषमुक्त किया?
  • क्यों किसी महिला से रेप पर कड़ी सजा है, लेकिन पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने पर नहीं?
  • इस फैसले से समाज और महिलाओं पर क्या असर पड़ेगा?
  • मैरिटल रेप पर सरकार और कानून का क्या रुख है?
  • अगर कोई महिला ऐसे हालात में फंसी हो, तो उसके पास क्या विकल्प हैं?

पत्नी के साथ पति जबरदस्ती अप्राकृतिक सेक्स करना, भले ही उसकी मौत भी हो जाए, लेकिन कानून के मुताबिक इसे अपराध नहीं माना जाएगा। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सोमवार को दिए एक फैसले में इसी धारणा को दोहराया। यह मामला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक रूप से भी काफी गंभीर है।

सोचिए, अगर कोई अनजान आदमी किसी महिला के साथ जबरदस्ती करे, तो उसे रेप माना जाता है और कड़ी सजा भी मिलती है। लेकिन अगर वही काम एक पति अपनी पत्नी के साथ करे, तो उसे रेप नहीं माना जाता! आखिर क्यों?

यही सवाल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद उठ रहा है। कोर्ट ने एक पति को दोषमुक्त कर दिया, जिसने अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती अप्राकृतिक संबंध बनाए थे, जिससे पत्नी की मौत हो गई। इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं

आज के इस एक्सप्लेनर में हम समझेंगे—

Contents
क्या है पूरा मामला?घटना का विवरणपुलिस कार्रवाई और कोर्ट का पहला फैसलाहाईकोर्ट में अपील और फैसलाछत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पति को किस आधार पर दोषमुक्त किया?हाईकोर्ट के फैसले का तर्कमैरिटल रेप: क्या शादी का मतलब पत्नी की सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाना है?क्या कानून पति को यह अधिकार देता है?जब किसी महिला से रेप पर सख्त सजा है, तो पत्नी से रेप पर क्यों नहीं?IPC और नए कानून BNS में क्या कहा गया है?इस फैसले का समाज और महिलाओं पर क्या असर पड़ेगा?कानूनी विशेषज्ञों की रायमैरिटल रेप को अपराध बनाने पर सरकार का क्या रुख है?अगर कोई महिला इस स्थिति में हो, तो उसके पास क्या विकल्प हैं?तलाक का अधिकार (Hindu Marriage Act, 1955) अबॉर्शन (गर्भपात) का अधिकार (MTP Act, 1971)

क्या है पूरा मामला?

बिलासपुर की एक महिला, जिसे पहले से ही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं, ने अपने पति पर जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया।

घटना का विवरण

  • 11 दिसंबर 2017 को बिलासपुर के सरकारी महारानी अस्पताल में एक महिला को भर्ती कराया गया।
  • महिला के प्राइवेट पार्ट्स पर गंभीर चोटें थीं और ब्लीडिंग हो रही थी
  • डॉक्टरों को मामला संदिग्ध लगा, तो पुलिस को सूचित किया गया।
  • महिला ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट को बताया कि उसका 40 वर्षीय पति गोरखनाथ शर्मा उसकी मर्जी के बिना जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता था
  • महिला को पहले से बवासीर की समस्या थी, जिससे उसे ब्लीडिंग और दर्द होता था। इसके बावजूद पति अप्राकृतिक संबंध बनाता रहा।
  • महिला ने बयान देने के कुछ समय बाद ही दम तोड़ दिया।

पुलिस कार्रवाई और कोर्ट का पहला फैसला

  • पुलिस ने गोरखनाथ शर्मा के खिलाफ IPC की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या), 376 (बलात्कार), और 377 (अप्राकृतिक सेक्स) के तहत मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया।
  • 11 फरवरी 2019 को जगदलपुर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने गोरखनाथ शर्मा को 10 साल की सजा सुनाई।

हाईकोर्ट में अपील और फैसला

  • पति ने इस फैसले को बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी
  • 10 फरवरी 2025 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने आरोपी पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पति को किस आधार पर दोषमुक्त किया?

हाईकोर्ट ने तीन मुख्य तर्क दिए—

  1. IPC की धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा) के अपवाद के तहत पत्नी के साथ यौन संबंध बलात्कार नहीं माना जाता।
  2. अप्राकृतिक यौन संबंध (धारा 377) के लिए पत्नी की सहमति जरूरी नहीं मानी गई।
  3. गैर-इरादतन हत्या (धारा 304) के तहत सबूतों की कमी बताई गई।

हाईकोर्ट के फैसले का तर्क

  • जस्टिस व्यास ने कहा कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ज्यादा है, तो पति द्वारा बनाए गए संबंध बलात्कार की श्रेणी में नहीं आएंगे।यानी अगर पति जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो ये रेप की कैटेगरी में नहीं आएगा।
  • हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि बिना किसी मेडिकल एविडेंस यह साबित नहीं किया जा सकता कि अप्राकृतिक यौन संबंध के कारण ही महिला की मौत हुई
  • पति को धारा 304, 376 और 377 से दोषमुक्त कर दिया गया

मैरिटल रेप: क्या शादी का मतलब पत्नी की सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाना है?

भारत में मैरिटल रेप को लेकर बहस तेज हो गई है। हाल ही में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पति द्वारा पत्नी के साथ जबरदस्ती किए गए संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता। इस फैसले के बाद यह सवाल खड़ा हो गया कि क्या शादी के बाद पत्नी की सहमति का कोई मतलब नहीं रह जाता?

इस पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी दुबे का कहना है कि भारतीय संस्कृति में विवाह को पुरुष और महिला की यौन इच्छाओं की पूर्ति का आधार माना गया है। उनके अनुसार, अगर पति अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा रखता है, तो यह उसके अधिकार के तहत आता है और पत्नी इससे इनकार नहीं कर सकती, फिर चाहे पति किसी भी तरीके से शारीरिक संबंध बनाए।

क्या कानून पति को यह अधिकार देता है?

अश्विनी दुबे के अनुसार, भारतीय कानून में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों को एक निजी मामला माना जाता है, जिसमें कानून दखल नहीं दे सकता।

“अगर पति और पत्नी बंद कमरे में किसी भी तरह से शारीरिक संबंध बना रहे हैं, तो यह कानून के दायरे से बाहर है। वैवाहिक जीवन में दोनों को इसकी आजादी है।”

इस बयान से यह सवाल उठता है कि क्या पत्नी की इच्छा या सहमति की कोई अहमियत नहीं है?
अगर विवाह प्रेम और विश्वास का रिश्ता है, तो क्या महिला की इच्छा के खिलाफ संबंध बनाना सही कहा जा सकता है?Marital rape

जब किसी महिला से रेप पर सख्त सजा है, तो पत्नी से रेप पर क्यों नहीं?

IPC और नए कानून BNS में क्या कहा गया है?

  • IPC की धारा 375 और 376 के तहत किसी महिला से बलात्कार करने पर कड़ी सजा मिलती है।
  • लेकिन इसी धारा में मैरिटल रेप को अपवाद माना गया है, यानी पति-पत्नी के बीच जबरन संबंध को अपराध नहीं माना जाएगा
  • 1 जुलाई 2024 से लागू हुए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में भी यही स्थिति बनी हुई है।
  • नए कानून में IPC की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) को पूरी तरह हटा दिया गया है, जिससे इस तरह के मामलों में कार्रवाई और मुश्किल हो गई है।

इस फैसले का समाज और महिलाओं पर क्या असर पड़ेगा?

  • महिलाओं की “बॉडी ऑटोनॉमी” (शारीरिक स्वतंत्रता) पर असर पड़ेगा, क्योंकि यह फैसला पति के अधिकार को ज्यादा प्राथमिकता देता है
  • कानूनी स्थिति और कमजोर हो सकती है, क्योंकि इससे अन्य मामलों में भी पतियों को कानूनी सुरक्षा मिल सकती है।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में न्याय मिलना और मुश्किल हो सकता है।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

  • सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने इस पर कहा कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ जाता है और इसे बदला जाना चाहिए
  • महिला अधिकार संगठनों का कहना है कि पति का यह अधिकार, पत्नी की स्वायत्तता को पूरी तरह खत्म कर देता है

मैरिटल रेप को अपराध बनाने पर सरकार का क्या रुख है?

  • दुनिया के 100+ देशों में मैरिटल रेप अपराध माना जाता है।
  • भारत उन 49 देशों में शामिल है, जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता
  • 2017 में मोदी सरकार ने मैरिटल रेप कानून में बदलाव का विरोध किया था
  • सरकार का तर्क रहा है कि मैरिटल रेप कानून बनने से विवाह की संस्था कमजोर हो जाएगी और पत्नियां इसका दुरुपयोग कर सकती हैं
  • शादी के बाद पत्नी और पति के बीच यौन संबंध “निजी मामला” (Private Matter) है।

    • सरकार और कोर्ट का इसमें दखल नहीं होना चाहिए।
    • घर के अंदर क्या हो रहा है,पति पत्नी किस तरह से अपने यौन संबंध बना रहे है इसका कोई सबूत भी नहीं होता, क्योंकि वहां कैमरे नहीं लगा सकते ।
  • पति-पत्नी का रिश्ता “संस्था” (Institution) माना जाता है।

    • अगर पति-पत्नी के बीच सेक्स को रेप कह दिया गया, तो हजारों महिलाएं अपने पतियों पर अपने निजी दुश्मनी के लिए केस कर देंगी, जिससे विवाह की संस्था ही कमजोर हो जाएगी।
  • भारत का समाज और संस्कृति।

    • भारतीय समाज में शादी को एक अनुबंध (Contract) माना जाता है, जहां पत्नी का काम पति की इच्छाएं पूरी करना है।
    • कई लोगों को लगता है कि शादी के बाद सेक्स पर पत्नी का कोई “ना” नहीं होता।

अगर कोई महिला इस स्थिति में हो, तो उसके पास क्या विकल्प हैं?

  1. तलाक का अधिकार

    • तलाक का अधिकार (Hindu Marriage Act, 1955)

      शादीशुदा महिला को पति की सहमति के बिना भी तलाक लेने का अधिकार है, अगर उसे प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है।

      📜 कानूनी आधार: हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13
      ✅ यदि पति शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना दे रहा हो
      ✅ यदि पति ने अवैध संबंध बनाए हों
      ✅ यदि पति ने लंबे समय से पत्नी को छोड़ रखा हो
      ✅ यदि पति में नपुंसकता जैसी समस्या हो

       तलाक के बाद: पति तलाकशुदा पत्नी से यौन संबंध नहीं बना सकता

  2. अबॉर्शन का अधिकार

    • अबॉर्शन (गर्भपात) का अधिकार (MTP Act, 1971)

      शादीशुदा महिला को बिना पति की अनुमति के भी गर्भपात कराने का अधिकार है।

      📜 मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971
      ✅ 24 हफ्ते तक बिना किसी की अनुमति के गर्भपात कराया जा सकता है
      ✅ 24 हफ्ते के बाद भी कुछ विशेष परिस्थितियों में गर्भपात संभव है
      ✅ पति या ससुराल की सहमति आवश्यक नहीं है

       मतलब? अगर किसी महिला को गर्भ धारण करना उचित न लगे, तो वह अपने फैसले से अबॉर्शन कर सकती है।

  3. घरेलू हिंसा कानून

    • घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत पत्नी पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती है।

हाल ही में, वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप) के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट सामने आई है। 2022 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के लिए दायर याचिकाओं पर विभाजित निर्णय दिया था। इस मामले में, न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के पक्ष में निर्णय दिया, जबकि न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने इसके खिलाफ निर्णय दिया। इस विभाजित निर्णय के कारण मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 18-49 वर्ष की आयु की 30% महिलाओं ने अपने पति द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है। हालांकि, वैवाहिक बलात्कार को कानूनी रूप से अपराध न मानने के कारण, ऐसे मामलों की सही संख्या का अनुमान लगाना कठिन है। महिला अधिकार संगठनों और कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में न रखना महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। वे तर्क देते हैं कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हनन करता है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र की ‘महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर समिति’ (CEDAW) ने भी भारत सरकार को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की सिफारिश की है

इन घटनाओं ने वैवाहिक बलात्कार के कानूनी मान्यता और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस को और तेज कर दिया है। वर्तमान में, यह मामला न्यायिक और विधायी दोनों स्तरों पर विचाराधीन है, और इसके परिणामस्वरूप भविष्य में कानून में संभावित बदलाव की उम्मीद की जा रही है।

हाल के वर्षों में, कुछ कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग के कारण निर्दोष व्यक्तियों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़े हैं, जिनमें आत्महत्या जैसे दुखद घटनाएं भी शामिल हैं। ऐसे ही एक मामले में, जौनपुर के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी और उसके परिवार द्वारा दहेज उत्पीड़न के झूठे आरोपों से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। अतुल ने 24 पन्नों का सुसाइड नोट और एक वीडियो छोड़ा, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी, सास, साले और पत्नी के चाचा पर उत्पीड़न और झूठे मुकदमे दर्ज कराने का आरोप लगाया।…..Read more

भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, जो महिलाओं को दहेज उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाई गई है, के दुरुपयोग के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा है कि इस प्रावधान का कुछ मामलों में गलत इस्तेमाल हो रहा है, जिससे निर्दोष व्यक्तियों को नुकसान पहुंच रहा है। Live Law Hindi

इन घटनाओं ने कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग और इसके परिणामस्वरूप होने वाली त्रासदियों पर गंभीर चर्चा को जन्म दिया है। यह आवश्यक है कि कानूनों का उचित और न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित किया जाए, ताकि वास्तविक पीड़ितों को न्याय मिल सके और निर्दोष व्यक्तियों को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट में अभी इस मुद्दे पर सुनवाई होनी बाकी है, लेकिन तब तक कानून का यही स्वरूप रहेगा।

भारत में महिला सशक्तीकरण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए क्या  इस कानून में बदलाव जरूरी है ?, आप क्या सोचते है इस बारे में

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