हिंडनबर्ग और अडाणी केस: माधबी पुरी बुच, SEBI, और विवादों की कहानी
कहानी शुरू होती है जनवरी 2023 से, जब अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी ग्रुप पर एक विस्फोटक रिपोर्ट जारी की। हिंडनबर्ग ने दावा किया कि अडाणी ग्रुप ने ऑफशोर फंड्स (विदेशी कंपनियों के जरिए निवेश) का इस्तेमाल करके अपने शेयरों की कीमतें बढ़ाईं। यह एक तरह का हेरफेर था, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग और शेयर प्राइस मैनिपुलेशन कहा गया। हिंडनबर्ग ने इसे “कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला” करार दिया।
इस रिपोर्ट के बाद अडाणी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई। गौतम अडाणी की नेटवर्थ और उनकी कंपनियों का मार्केट वैल्यू 140 बिलियन डॉलर से ज्यादा घट गया। अडाणी ग्रुप ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि यह उनके खिलाफ दुर्भावनापूर्ण हमला है।
भारत की सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिका डाली गयी जिसके बाद SC ने इस मामले की जांच का जिम्मा SEBI को सौंपा। SEBI को 14 अगस्त 2023 तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट की बनाई एक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी, और बाद में 3 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने SEBI को दो लंबित मामलों की जांच तीन महीने में पूरी करने को कहा। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इस मामले को CBI या SIT को ट्रांसफर करने की जरूरत नहीं है।
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शिक्षा: दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से गणित में ग्रेजुएशन और IIM अहमदाबाद से MBA।
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करियर: 1989 में ICICI बैंक से शुरुआत, 2007-2009 तक एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, 2009-2011 तक ICICI सिक्योरिटीज की CEO। 2011 में सिंगापुर जाकर ग्रेटर पैसिफिक कैपिटल में काम किया। 2017 में SEBI की पूर्णकालिक सदस्य बनीं।
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ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी: माधबी और उनके पति धवल बुच ने IPE-Plus Fund 1 और ग्लोबल डायनामिक अपॉर्च्युनिटी फंड जैसे ऑफशोर फंड्स में अपना बहुत सारा पैसा लगाया था। ये वही फंड्स थे, जिनका इस्तेमाल कथित तौर पर अडाणी ग्रुप ने अपने शेयरों की कीमतें बढ़ाने के लिए किया। इन फंड्स में गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी का भी निवेश था।
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कंसल्टिंग फर्म से कमाई: माधबी की सिंगापुर स्थित कंपनी अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड में उनकी 99% हिस्सेदारी थी। हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि इस कंपनी ने जब माधबी पुरी बुच SEBI की चीफ़ बनी उनके कार्यकाल के दौरान भी कमाई की, जो नियमों का उल्लंघन हो सकता है।
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ब्लैकस्टोन से संबंध: धवल बुच 2019 में ब्लैकस्टोन के सीनियर सलाहकार बने। हिंडनबर्ग ने दावा किया कि माधबी ने SEBI चीफ के तौर पर रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REITs) को बढ़ावा दिया, जिससे ब्लैकस्टोन को फायदा हुआ। यह हितों का टकराव हो सकता है।
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ICICI बैंक से सैलरी: हिंडनबर्ग और बाद में कांग्रेस ने दावा किया कि माधबी ने SEBI में रहते हुए ICICI बैंक से सैलरी और कर्मचारी स्टॉक ऑप्शन (ESOP) के जरिए अनुचित लाभ लिया।
इसे आप ऐसे समझये : हिंडनबर्ग ने कहा कि माधबी और उनके पति ने अडाणी से जुड़े फंड्स में पैसा लगाया, अपनी कंपनी से गलत तरीके से कमाई की, और ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों को फायदा पहुंचाया। यह सब SEBI चीफ के तौर पर उनके काम को संदिग्ध बनाता है। इसको शोर्ट में बताते है
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अडाणी ग्रुप में निवेश: कहा गया कि माधबी और उनके पति ने अडाणी ग्रुप से जुड़े एक विदेशी फंड में बहुत सारा पैसा लगाया था।
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कंसल्टेंसी फीस के नाम पर लेन-देन: आरोप था कि उन्होंने M&M और ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों से सलाह देने के नाम पर गलत तरीके से पैसे लिए।
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किराए के नाम पर पैसे लेना: यह दावा था कि उन्होंने वॉकहार्ट कंपनी से किराए के बहाने पैसे लिए।
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ICICI बैंक से गलत फायदा: 2017 से 2024 के बीच ICICI बैंक के कर्मचारी स्टॉक ऑप्शन (ESOP) बेचकर अनुचित तरीके से मुनाफा कमाया।
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खुद को अलग दिखाने का दिखावा: कहा गया कि M&M और ब्लैकस्टोन से जुड़े मामलों में उन्होंने खुद को इनसे अलग दिखाने की कोशिश की, जो सिर्फ दिखावा था।
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ऑफशोर फंड्स: उनका निवेश 2015 में सिंगापुर में एक निजी नागरिक के तौर पर किया गया था, जब माधबी SEBI से नहीं जुड़ी थीं। यह फंड अडाणी ग्रुप की कंपनियों में निवेश नहीं करता था।
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अगोरा एडवाइजरी: माधबी ने कहा कि उनकी कंपनी की जानकारी SEBI को दी गई थी, और SEBI चीफ बनने से पहले उन्होंने अपने शेयर धवल के नाम ट्रांसफर कर दिए थे।
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पारदर्शिता: उन्होंने कहा कि उनकी वित्तीय स्थिति एक “खुली किताब” है, और वे सभी दस्तावेज जांच के लिए देने को तैयार हैं।
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ICICI बैंक से सैलरी: कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने 2 सितंबर 2024 को दावा किया कि माधबी ने 2017 से 2024 तक SEBI में रहते हुए ICICI बैंक से 17 करोड़ रुपये की सैलरी ली। यह SEBI के नियमों का उल्लंघन था, क्योंकि SEBI के प्रमुख को दूसरी जगह से कमाई नहीं करनी चाहिए। ICICI बैंक ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह केवल रिटायरमेंट बेनिफिट्स थे।
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महिंद्रा से पैसा: 10 सितंबर 2024 को कांग्रेस ने आरोप लगाया कि धवल बुच को 2019-2021 के बीच महिंद्रा एंड महिंद्रा (M&M) से 4.78 करोड़ रुपये मिले, जब SEBI इस कंपनी की जांच कर रही थी।
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अगोरा से कमाई: कांग्रेस ने दावा किया कि माधबी की कंपनी अगोरा ने SEBI में उनके कार्यकाल के दौरान 2.95 करोड़ रुपये कमाए, जिसमें 88% हिस्सा M&M से आया। यह हितों का टकराव था।
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TMC की शिकायत: TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने माधबी के खिलाफ लोकपाल में शिकायत दर्ज की। उन्होंने मांग की कि इस मामले की जांच ED या CBI को सौंपी जाए।
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नियुक्ति पर सवाल: कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया कि माधबी को SEBI चीफ बनाने वाली कैबिनेट कमेटी में PM नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह शामिल थे। क्या उनकी नियुक्ति में अडाणी का प्रभाव था?
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माधबी या धवल बुच के साथ उनका कोई व्यावसायिक संबंध नहीं है।
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हिंडनबर्ग ने पुराने और निराधार आरोपों को दोहराया, जो सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है।
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यह उनकी छवि खराब करने की साजिश है।
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IPE-Plus Fund 1: हिंडनबर्ग ने दावा किया कि माधबी और धवल ने 5 जून 2015 को सिंगापुर में इस फंड में निवेश किया। इस फंड में विनोद अडाणी का भी पैसा था। यह फंड मॉरीशस और बरमूडा में रजिस्टर्ड था, जो टैक्स हेवन माने जाते हैं।
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अनिल आहूजा का कनेक्शन: यह फंड धवल के बचपन के दोस्त अनिल आहूजा चलाते थे। हिंडनबर्ग ने इसे अडाणी से जोड़ा, लेकिन माधबी ने कहा कि यह निवेश उनके निजी फैसले का हिस्सा था।
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हितों का टकराव: हिंडनबर्ग का कहना था कि SEBI अडाणी की जांच कर रही थी, लेकिन माधबी ने कोई सख्त कार्रवाई नहीं की, क्योंकि उनका पैसा भी उसी फंड में था।
लोकपाल ने अपने फैसले में क्या कहा ? : मई 2025 में लोकपाल ने माधबी को क्लीन चिट दे दी। लोकपाल ने कहा कि हिंडनबर्ग और विपक्ष के आरोप “अनुमानों और कल्पनाओं” पर आधारित हैं, और कोई ठोस सबूत नहीं है।
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अडाणी का प्रभाव: कांग्रेस ने दावा किया कि माधबी को SEBI चीफ बनाने में अडाणी ग्रुप का दबाव हो सकता है। उनकी नियुक्ति की मंजूरी देने वाली कैबिनेट कमेटी में PM मोदी और अमित शाह शामिल थे।
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निष्पक्षता पर सवाल: विपक्ष का कहना था कि माधबी के अडाणी से कथित वित्तीय रिश्तों की वजह से वे अडाणी की जांच में निष्पक्ष नहीं थीं।
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निजी सेक्टर से नियुक्ति: माधबी प्राइवेट सेक्टर से थीं, जो SEBI चीफ के लिए असामान्य था। विपक्ष ने इसे संदिग्ध बताया।
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टॉक्सिक वर्क कल्चर: सितंबर 2024 में SEBI के 500 कर्मचारियों ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर माधबी पर “टॉक्सिक वर्क कल्चर” का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि माधबी मीटिंग्स में चिल्लाती थीं और कर्मचारियों को जलील करती थीं। इस मामले को बाद में सुलझा लिया गया।
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माधबी का इस्तीफा: 28 फरवरी 2025 को माधबी ने SEBI चीफ का पद छोड़ दिया। उनकी जगह केंद्र सरकार ने वित्त सचिव तुहिन कांत पांडे को अगला SEBI प्रमुख नियुक्त किया है। तुहिन अगले 3 साल के लिए इस पद पर रहेंगे।तुहिन कांत पांडे ओडिशा कैडर के 1987 बैच के IAS अधिकारी हैं। वे मोदी 3.0 सरकार में भारत के सबसे व्यस्त सचिवों में से एक हैं। वे फिलहाल केंद्र सरकार में चार महत्वपूर्ण विभागों को संभाल रहे हैं। उन्हें 7 सितंबर 2024 को वित्त सचिव के पद पर नियुक्त किया गया था।
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लोकपाल की क्लीन चिट: 28 मई 2025 को लोकपाल ने माधबी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
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मुंबई कोर्ट की FIR: मार्च 2025 में मुंबई की एक स्पेशल ACB कोर्ट ने माधबी और पांच अन्य लोगों (SEBI और BSE के अधिकारी) के खिलाफ शेयर बाजार धोखाधड़ी के मामले में FIR दर्ज करने का आदेश दिया। लेकिन यह मामला अभी शुरुआती चरण में है।
आप इसे ऐसे समझो कि माधबी पर कई सवाल उठे, लेकिन लोकपाल ने उन्हें बेगुनाह बताया। फिर भी, विवादों के चलते उन्होंने SEBI छोड़ दी, और अब नए चीफ काम संभाल रहे हैं।
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माधबी पुरी बुच (पूर्व SEBI चेयरपर्सन)
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अश्विनी भाटिया (SEBI के पूर्णकालिक सदस्य)
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अनंत नारायण (SEBI के पूर्णकालिक सदस्य)
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कमलेश चंद्र वार्ष्णेय (SEBI के पूर्णकालिक सदस्य)
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प्रमोद अग्रवाल (BSE के चेयरमैन)
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सुंदररामन राममूर्ति (BSE के CEO)
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विनोद अडाणी: गौतम अडाणी के बड़े भाई और अडाणी ग्रुप के एक प्रमुख व्यक्ति। हिंडनबर्ग ने दावा किया कि विनोद अडाणी ने उन ऑफशोर फंड्स में अरबों डॉलर का निवेश किया, जिनमें माधबी और धवल की हिस्सेदारी थी। यह कनेक्शन माधबी और अडाणी के बीच अप्रत्यक्ष लिंक के तौर पर देखा गया।
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अनिल आहूजा: धवल बुच के बचपन के दोस्त और IPE-Plus Fund 1 के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर। हिंडनबर्ग ने दावा किया कि इस फंड में माधबी और धवल का निवेश था, जिसका अडाणी से संबंध था। हालांकि, माधबी ने कहा कि यह निवेश अनिल आहूजा के कहने पर किया गया और इसका अडाणी से कोई लेना-देना नहीं था।
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गौतम अडाणी: अडाणी ग्रुप के चेयरमैन। हिंडनबर्ग ने उन पर आरोप लगाया कि उनके ग्रुप ने ऑफशोर फंड्स के जरिए शेयरों की कीमतें बढ़ाने की कोशिश की। माधबी पर भी अडाणी के पक्ष में काम करने का आरोप था, लेकिन यह सिद्ध नहीं हुआ
ये आदेश एक शिकायत के आधार पर दिया गया, जिसमें शेयर बाजार में अनियमितताओं से निपटने में चूक का आरोप था। कोर्ट ने कहा कि नियमों में चूक और मिलीभगत के प्रारंभिक सबूत हैं, जिसके लिए निष्पक्ष जांच जरूरी है।