उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के हाटा इलाके में स्थित मदनी मस्जिद पर जब 9 फरवरी 2025 को बुलडोजर चला, तो विवाद खड़ा हो गया। मामला इतना बड़ा हो गया कि सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, जहां यूपी सरकार के अधिकारियों को 12 फरवरी 2025 को अवमानना का नोटिस जारी कर दिया गया।
सरकार और विपक्ष आमने-सामने हैं—
- सरकार का कहना है कि यह सरकारी जमीन पर बना अवैध निर्माण था।
- विपक्ष का आरोप है कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
आइए पूरे मामले को क्रमवार तरीके से समझते हैं – कब, क्या हुआ, कौन क्या कह रहा है और आगे क्या हो सकता है?
क्या हुआ? कैसे शुरू हुआ विवाद?
9 फरवरी 2025 को कुशीनगर जिला प्रशासन ने 26 वर्ष पुरानी मदनी मस्जिद का कुछ हिस्सा गिराने की कार्रवाई की। सुबह 10 बजे से शुरू हुआ विध्वंस कार्य, जिसमें 7 जेसीबी और दो पोकलैंड मशीनों का इस्तेमाल किया गया, इस दौरान 13 थानों की 120 से अधिक पुलिस फोर्स मौजूद थी। 4 नगर पंचायत और 2 नगर पालिकाओं की जेसीबी मशीनें लगाई गईं। एसडीएम और सीओ कसया के नेतृत्व में कुल 9 मशीनों से कार्रवाई की ये देर शाम तक जारी रहा। बुलडोजर की कार्रवाई से मस्जिद की सभी दीवारों पर बड़ी दरारें पड़ गईं, जिससे बची हुई इमारत के ढहने का खतरा पैदा हो गया।

- प्रशासन ने बताया कि, मस्जिद का 14 फीट का एक हिस्सा ग्राम समाज (सरकारी) जमीन और थाने की भूमि पर अवैध रूप से बना था।
प्रशासन ने अपनी कार्रवाई को ‘मस्जिद के अवैध हिस्से का शांतिपूर्ण विध्वंस’ बताया है। इस घटना के बाद राजनीतिक हंगामा शुरू हो गया।
प्रशासन का पक्ष: “अवैध कब्जा था, हटाना जरूरी था”
यूपी सरकार और प्रशासन का कहना है कि मदनी मस्जिद का कुछ हिस्सा सरकारी जमीन पर बना था।
- नगरपालिका परिषद से इसका नक्शा पास नहीं था।
- हिंदूवादी नेता रामबचन सिंह ने मुख्यमंत्री से शिकायत की थी, जिसके बाद प्रशासन ने जांच की और कार्रवाई की।
- प्रशासन का कहना है कि यह सरकारी भूमि पर अवैध अतिक्रमण था, इसलिए इसे हटाया गया।
मस्जिद का दक्षिणी हिस्सा नक्शे से 14 फीट अधिक था। L आकार में बने इस हिस्से में 11 अवैध पिलर थे। आठ घंटे की कार्रवाई में सात जेसीबी, एक पोकलैंड और एक हैमर मशीन से इन पिलरों को गिराया गया।
मदनी मस्जिद कमेटी के ज़िम्मेदार /प्रमुख हाजी हामिद खान ने प्रशासन की कार्रवाई को एकतरफा बताते हुए कहा कि मस्जिद को झूठ के आधार पर ढहाया गया है। उन्होंने कहा कि मस्जिद पंजीकृत भूमि पर स्थित है और इसका निर्माण नगर पालिका की परमिसन से किया गया था हमने कोई भी अवैध अतिक्रमण नही किया‘ बिना उचित प्रक्रिया के मस्जिद को तोड़फोड़ दिया ‘
मस्जिद से जुड़े लोगों ने आरोप लगाया है कि उन्हें ‘अनधिकृत’ निर्माण को हटाने के संबंध में नगरपालिका से कोई नोटिस या निर्देश नहीं मिला।
उन्होंने बताया कि प्रशासन अचानक जेसीबी मशीन लेकर पहुंचा। उसी समय दीवार पर नोटिस चिपकाया गया, फोटो खींची गई और फिर उसे हटा दिया गया। कार्रवाई शुरू करने से पहले मस्जिद में लगे सीसीटीवी कैमरे के तार काट दिए गए। कार्रवाई पूरी होने के बाद नगर पालिका कार्यालय के खंभे के पास नया सीसीटीवी कैमरा लगाया गया।
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— ABTNews24 (@abt_news24) February 25, 2025
साल 1992 में खरीदी गई जमीन पर 1999 में शुरू हुए मस्जिद के निर्माण में बेसमेंट समेत 4 मंजिला इमारत में कुल 90 पिलर बनाए गए थे। मस्जिद की ऊंचाई जमीन से 50 फीट है। कार्रवाई के दौरान सुरक्षा के मद्देनजर मस्जिद के 500 मीटर के दायरे को पुलिस ने घेर लिया। आसपास की दुकानें बंद करा दी गईं।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के अधिकारियों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कुशीनगर एसपी संतोष मिश्रा, डीएम विशाल भरद्वाज, एसडीएम हाटा योगेश्वर सिंह, ईओ हाटा मीनू सिंह, सीओ कसया कुंदन सिंह और कोतवाल हाटा शुशील कुमार शुक्ला को अवमानना नोटिस जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लिया संज्ञान?
मदनी मस्जिद पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
- याचिकाकर्ता के वकील हुजेफा अहमदी ने दलील दी कि मस्जिद निजी भूमि पर बनी थी और इसे 1999 में नगर निगम से स्वीकृति मिली थी।
- अहमदी ने बताया कि 20 साल पहले हाईकोर्ट ने भी इस निर्माण को वैध ठहराया था।
- उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर 2024 को आदेश दिया था कि किसी भी धार्मिक स्थल को बिना उचित प्रक्रिया के ध्वस्त नहीं किया जाएगा।
- यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश की घोर अवमानना है।
12 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के अधिकारियों को अवमानना का नोटिस जारी किया और आदेश दिया कि आगे कोई तोड़फोड़ नहीं होगी।
बीजेपी सांसद विजय दुबे का बयान: “बुलडोजर कार्रवाई सही”
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद बीजेपी सांसद विजय दुबे का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे कह रहे हैं:
- “यह मस्जिद सरकारी जमीन पर बनी थी, पिछली सरकारों ने इसे अनदेखा किया। इसे हटाना जरूरी था।”
- “नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्जा नहीं किया जा सकता।”
उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिससे विवाद और बढ़ गया।
समाजवादी पार्टी का जवाब: “सरकार दंगा भड़काना चाहती थी”
11 फरवरी 2025 को समाजवादी पार्टी का 18 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल घटनास्थल पर पहुंचा।
विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव ने सरकार पर जमकर हमला बोला:
- “सरकार की मंशा थी कि कुशीनगर में दंगा भड़के, लेकिन मुस्लिम समाज ने समझदारी दिखाई और ऐसा नहीं होने दिया।”
- “यूपी सरकार न हाईकोर्ट के आदेश मानती है, न सुप्रीम कोर्ट के।”
- “सरकार संविधान के हिसाब से नहीं, बल्कि तानाशाही तरीके से चल रही है।”
- “इस मुद्दे को मैं विधान परिषद में उठाऊंगा।”
क्या यह सिर्फ जमीन का मामला है या राजनीति?
इस पूरे विवाद में दो प्रमुख सवाल उठते हैं:
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क्या प्रशासन की कार्रवाई वाकई कानून के मुताबिक थी?
- अगर यह वाकई सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा था, तो जो कानून प्रकिया है, सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन है उनका उल्लंघन क्यों किया गया कम से 15 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए था। वो क्यू नही दिया गया
- लेकिन अगर मस्जिद की जमीन वैध थी, तो मस्जिद तोड़ने की कारवाई क्यों की गयी
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क्या यह एक राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है?
- कुछ लोगों का मानना है कि इस मुद्दे को चुनावी फायदे के लिए उछाला जा रहा है।
- विपक्ष सरकार पर धार्मिक ध्रुवीकरण (polarization) का आरोप लगा रहा है।
- सरकार का कहना है कि यह सिर्फ अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई थी।
बताया गया कि मस्जिद के ध्वस्त होने से दो हफ़्ते पहले, 25 जनवरी को, नगरपालिका के बुलडोज़र ने 20 साल पहले बनी चारदीवारी को गिरा दिया था। उसी दिन, हाटा पुलिस ने मस्जिद समिति के सचिव साकिर अली के साथ-साथ जाफ़र, ज़ाकिर और अन्य के खिलाफ़ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 319 (2), 318 (4), 338, 336, 340 (2) और 329 (3) के साथ-साथ सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 2 और 3 के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की।
इस FIR में मस्जिद समिति के सदस्यों पर जाली दस्तावेज तैयार करने, अवैध रूप से भूमि पर कब्जा करने तथा आधिकारिक निर्देशों की अवहेलना करते हुए आपराधिक उद्देश्यों के लिए दुकानें, आवास और वाणिज्यिक संरचनाएं बनाने का आरोप लगाया गया है।
FIR में आगे कहा गया है, “…विभिन्न स्रोतों से पता चलता है कि ये लोग कथित तौर पर राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में भाग ले रहे हैं और मदनी मस्जिद के भीतर विभिन्न धर्मों के लोगों को लालच देकर उनको बुलाकर उनका धर्म परिवर्तन करने का प्रयास कर रहे हैं। कथित तौर पर इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उक्त मस्जिद का निर्माण किया जा रहा है। इन परिस्थितियों को देखते हुए और अन्य अज्ञात व्यक्तियों को गुमराह करने के प्रयास में, मूल्यवान सुरक्षा दस्तावेजों को गढ़ा जा रहा है और उन्हें प्रामाणिक करने के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जबकि एक धार्मिक संरचना, मदनी मस्जिद, अवैध कब्जे के माध्यम से बनाई गई है। कथित तौर पर इसमे अतिक्रमण गतिविधियाँ चल रही हैं। इन कार्रवाइयों को लेकर लोगों में काफी आक्रोश है और समुदाय के लोगो में मस्जिद निर्माण के लिए धन कहा से आ रहा है इसको लेकर संदेह है और यह कि क्या यह राष्ट्र-विरोधी संस्थाओं द्वारा प्रदान किया जा रहा है।”
1999से 2002 के बीच बनी मस्जिद
आपको बता दे कि मदनी मस्जिद UP के कुशीनगर हाटा नगर पालिका के वार्ड नंबर 21 में करमहा तिराहा के पास स्थित है। 1988 में स्थानीय निवासी हाजी हामिद खान ने करमहा तिराहा से सटे गाटा संख्या 208 में 29 डेसीमल जमीन अपनी पत्नी अजीमतुन निसा और बेटे जाकिर अली के नाम से खरीदी थी। नगर पालिका द्वारा निर्माण योजना की स्वीकृति के बाद उन्होंने मस्जिद का निर्माण शुरू किया। मदनी मस्जिद के निर्माण की योजना को 25 सितंबर 1999 को नगर पालिका से आधिकारिक मंजूरी मिली।
हालांकि, मस्जिद के निर्माण के शुरू होते ही इस पर चिंताएं उभरने लगीं। 18 अप्रैल, 2000 को नगर पालिका ने स्वीकृत योजनाओं को रद्द कर दिया। जवाब में मस्जिद के प्रशासकों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इसके बाद, 12 अप्रैल, 2006 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 अप्रैल, 2000 से नगर पालिका के आदेश को रद्द कर दिया।
मस्जिद के ज़िम्मेदारो ने कहा है कि मस्जिद का निर्माण स्वीकृत योजनाओं के अनुसार 1999 और 2002 के बीच अंतिम रूप दिया गया था। तब से कोई अतिरिक्त निर्माण कार्य नहीं किया गया, न ही आस-पास की भूमि पर कोई अतिक्रमण किया गया।
मस्जिद नगर पालिका कार्यालय के पीछे स्थित है। इसके अलावा, गाटा संख्या 201 में एक मवेशी शेड, स्थानीय लोगों और एक पुलिस स्टेशन के लिए भूमि का एक क्षेत्र निर्धारित है।
मस्जिद के निर्माण के दौरान, नगरपालिका ने भूमि को संभावित विवादों से बचाने के लिए एक सीमा दीवार का निर्माण किया।
इसके बाद, मस्जिद समिति ने इस चारदीवारी का उपयोग एक टिन शेड बनाने के लिए किया, वहा शौचालय बनाया गया
भाजपा नेता की शिकायत से तोड़ी गयी मस्जिद ?
अब समझिए कि पूरा मामला कैसे तूल पकड़ा। असल में, बीजेपी नेता राम बचन सिंह को ये लग रहा था कि मदनी मस्जिद का विस्तार नगर पालिका की जमीन पर कब्जा करके किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि मस्जिद का निर्माण स्वीकृत नक्शे के हिसाब से नहीं हुआ और प्रशासन इस पर आंख मूंदे बैठा रहा।
राम बचन सिंह का कहना है कि वो करीब 20 साल से इस मुद्दे पर शिकायत कर रहे थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। उनका दावा है कि नगर पालिका की जो दीवार थी, वो धीरे-धीरे कमजोर होती गई और उसकी जगह पर टिन शेड डाल दिया गया, जिससे मस्जिद का विस्तार हो गया।
लखनऊ तक पहुंची शिकायत
राम बचन सिंह ने इस मुद्दे को और गंभीरता से उठाने का फैसला किया। 17 दिसंबर को वो लखनऊ पहुंचे ताकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकें। लेकिन मुलाकात नहीं हो पाई। इसके बाद उन्होंने कुशीनगर जिले के सभी छह भाजपा विधायकों को शिकायती पत्र दिया। इन विधायकों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की और मामला उनके सामने रखा।
बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने डीएम को निर्देश दिया कि इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई की जाए। यहीं से मस्जिद पर प्रशासनिक कार्रवाई की नींव पड़ गई।
कौन हैं राम बचन सिंह?
राम बचन सिंह पहले विश्व हिंदू परिषद (VHP) से जुड़े हुए थे और राम जन्मभूमि आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। जब राम मंदिर बनना शुरू हुआ, तो उन्होंने बीजेपी जॉइन कर ली। पिछले नगर पालिका चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, क्योंकि बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। उस चुनाव में समाजवादी पार्टी (SP) के उम्मीदवार रामानंद सिंह ने जीत हासिल की थी और नगर पालिका अध्यक्ष बने थे।
अब जब ये पूरा मामला खुलकर सामने आ गया है, तो इसमें राजनीति भी घुल गई है। बीजेपी नेता इसे अतिक्रमण का मामला बता रहे हैं, तो वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक साजिश करार दे रहा है।
मस्जिद प्रबंधकों को नोटिस भेजा गया, फिर क्या हुआ?
जब मस्जिद से जुड़ा मामला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा, तो कुशीनगर जिला प्रशासन तुरंत हरकत में आ गया। 18 दिसंबर 2024 को हाटा के एसडीएम ने जमीन की पूरी पैमाइश करवाई और जिला प्रशासन को रिपोर्ट सौंप दी। डीएम के आदेश पर राजस्व विभाग ने भी अपनी जांच पूरी की।
माप के बाद क्या हुआ?
जब प्रशासन ने जमीन की पैमाइश करवाई, तो मस्जिद के अधिकारियों ने विवादित टिन शेड को खुद ही हटा दिया। उनका कहना था कि कोई अतिक्रमण नहीं हुआ, बल्कि रिपोर्ट में यह सामने आया कि मदनी मस्जिद को जो 29 दशमलव भूमि आवंटित थी, उसमें से एक दशमलव कम निकली। यानी, जमीन उनकी ही कम थी, न कि ज्यादा।
फिर नोटिस क्यों आया?
21 दिसंबर 2024 को हाटा नगर पालिका की अधिशासी अधिकारी (EO) मीनू सिंह ने मस्जिद प्रबंधकों अजीमतुन निसा और जाकिर अली को पहला नोटिस जारी किया। इसके बाद 8 जनवरी 2025 को दूसरा नोटिस भेजा गया।
नोटिस में क्या कहा गया?
नोटिस में आरोप लगाया गया कि मस्जिद के नाम पर चार मंजिला इमारत और भूमिगत कमरे अवैध रूप से बनाए गए हैं। इसमें नगर पालिका के जूनियर इंजीनियर की 21 दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया गया, जिसमें लिखा था:
“आपने गांधीनगर वार्ड नंबर 21 में नगर निकाय कार्यालय के पीछे, सीढ़ियों के नीचे चार मंजिला मस्जिद और दोनों तरफ भूमिगत कमरे बना लिए हैं। कई बार कहा गया कि निर्माण की योजना और ज़रूरी दस्तावेज उपलब्ध कराएं, लेकिन अब तक कुछ नहीं दिया गया। पहले भी कई बार निर्देश दिया गया कि निर्माण रोकें और दस्तावेज जमा करें, लेकिन निर्माण बिना किसी रोकटोक के जारी रहा।”
कार्रवाई की चेतावनी दी गई?
नोटिस में साफ कहा गया कि—
- इस नोटिस के बाद तुरंत सभी निर्माण कार्य रोकने होंगे।
- 7 जनवरी 2025 तक मस्जिद के सभी प्रमाण और निर्माण के लिए स्वीकृत मानचित्र समेत ज़रूरी दस्तावेज़ नगर पालिका के दफ्तर में जमा करने होंगे।
- यदि दस्तावेज़ नहीं जमा किए गए या सुनवाई में हाजिर नहीं हुए, तो नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 185 और 186 के तहत कानूनी कार्यवाही शुरू की जाएगी।
मस्जिद का मामला हाई कोर्ट पहुंचा……
जब प्रशासन की सख्ती बढ़ी, तो मस्जिद के प्रतिनिधियों ने राहत के लिए हाई कोर्ट का रुख किया। मस्जिद प्रबंधक अजीमतुन निसा ने याचिका दायर कर कहा कि मस्जिद पूरी तरह से स्वीकृत योजना के मुताबिक बनी है, लेकिन कुछ लोगों की शिकायतों के बाद प्रशासन ने नोटिस जारी कर दिया।
याचिका में यह भी कहा गया कि बिना उचित जांच-पड़ताल किए प्रशासन मस्जिद को गिराने की तैयारी कर सकता है, जिससे बड़ा नुकसान होगा।
हाई कोर्ट का क्या फैसला आया?
8 जनवरी को हाई कोर्ट ने इस मामले में आदेश जारी करते हुए कहा:
- याचिकाकर्ता (मस्जिद प्रबंधक) को 10 दिनों के भीतर अपना जवाब प्रतिवादी (नगरपालिका प्रशासन) को देना होगा।
- नगर पालिका को उनके जवाब की समीक्षा करनी होगी और दो हफ्ते के भीतर फैसला लेना होगा।
- जब तक याचिकाकर्ता की आपत्ति पर निर्णय नहीं आ जाता, तब तक तीन हफ्तों तक कोई तोड़फोड़ नहीं होगी।
मस्जिद प्रबंधन ने क्या किया?
हाई कोर्ट के आदेश के बाद, मस्जिद के प्रतिनिधियों ने 16 जनवरी को नगर पालिका को अपना जवाब सौंप दिया। उन्होंने नगरपालिका को हाई कोर्ट के आदेश की कॉपी समेत सारे जरूरी दस्तावेज भी उपलब्ध कराए।
अपने जवाब में मस्जिद के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया:
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मस्जिद के प्रतिनिधियों ने चार मंजिला इमारत होने के दावे पर सफाई देते हुए कहा कि असल में ऐसा कुछ नहीं है। उनके मुताबिक, स्वीकृत नक्शे के हिसाब से सिर्फ दो छतें बनी हैं। बाहर से देखने पर इमारत ऊँची लग सकती है, क्योंकि बाहरी दीवारों में तीन खिड़कियाँ लंबवत (ऊपर-नीचे) लगाई गई हैं, जिससे ऐसा आभास होता है कि यह चार मंजिला है। लेकिन हकीकत में मस्जिद के अंदर केवल दो ही फ्लोर हैं।
इसके अलावा, जो कहा जा रहा है कि सीढ़ियों के नीचे दोनों तरफ भूमिगत कमरे बनाए गए हैं, वह पूरी तरह गलत और बेबुनियाद है। ऐसा कोई निर्माण किया ही नहीं गया है।
“जब बुलडोजर आए तो हम नगरपालिका के जवाब का इंतजार कर रहे थे”
मस्जिद समिति के वकील सलमान खान ने बताया, “हम तो बस नगरपालिका के जवाब का इंतजार कर रहे थे, लेकिन 9 फरवरी की सुबह अचानक भारी पुलिस बल के साथ प्रशासन के लोग जेसीबी लेकर पहुंच गए और मस्जिद गिराने लगे।” उन्होंने कहा कि पूरी मस्जिद के चारों ओर बैरिकेडिंग कर दी गई, कोई अंदर-बाहर नहीं जा सकता था, और आसपास की दुकानें भी बंद करा दी गईं। शाम तक, सात जेसीबी लगाकर मस्जिद को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया।
वकील सलमान खान ने कहा, “मैं मौके पर पहुंचा और अधिकारियों से पूछा कि यह कार्रवाई किस आदेश के तहत हो रही है, लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। प्रशासन ने जानबूझकर रविवार का दिन चुना ताकि हमें कोर्ट से राहत न मिल सके।”
उन्होंने आगे बताया, “उच्च न्यायालय के निर्देश के मुताबिक, हमें अपना जवाब देने के बाद नगरपालिका से कोई भी कार्रवाई होने पर सूचना मिलनी चाहिए थी, ताकि हम अपनी बात रख सकें और अपील कर सकें। लेकिन प्रशासन ने किसी भी कानूनी प्रक्रिया की परवाह किए बिना मस्जिद गिराने का फैसला कर लिया।”
मस्जिद गिराए जाने के बाद राजनीतिक हलचल
मस्जिद गिराए जाने के बाद 11 फरवरी को समाजवादी पार्टी का 18 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल विधान परिषद पहुंचा। इसका नेतृत्व नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव कर रहे थे। उन्होंने सरकार और प्रशासन पर आरोप लगाया कि इस कार्रवाई के पीछे दंगे भड़काने की मंशा थी।
इसके अलावा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय, पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, और निवर्तमान प्रदेश उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह समेत कई नेता 10, 11 और 12 फरवरी को हाटा पहुंचे और स्थानीय लोगों से मुलाकात की। अजय राय ने प्रशासन की इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताया और कहा, “सरकार बार-बार कोर्ट की हिदायतों को नजरअंदाज कर रही है। क्या सरकार खुद को अदालतों से भी ऊपर समझती है?”
जिला प्रशासन का पक्ष
जिला प्रशासन ने 11 फरवरी को पहली बार इस पूरे मामले पर अपनी सफाई दी। सूचना विभाग की ओर से जारी बयान में डीएम विशाल भारद्वाज ने कहा कि मदनी मस्जिद के लिए 25 सितंबर 1999 को नगर पालिका परिषद, हाटा से मानचित्र की मंजूरी मिली थी। इस नक्शे में गाटा संख्या-208, 7,080.50 वर्ग फीट क्षेत्र में मस्जिद के निर्माण की इजाजत दी गई थी।
लेकिन जब मस्जिद के अवैध निर्माण को लेकर शिकायत मिली, तो 21 दिसंबर 2024 को हाटा नगर परिषद ने एक नोटिस जारी किया और मस्जिद प्रशासन से सफाई मांगी। जवाब में, ज़ाकिर अली ने समय बढ़ाने की मांग की। न्याय के हित में, उन्हें अतिरिक्त समय दिया गया और 8 जनवरी 2025 को एक और नोटिस जारी हुआ।
इसके बाद, हाजी हामिद अली की पत्नी श्रीमती अज़ीमतुन निशा और कुछ अन्य लोगों ने इस कार्रवाई के खिलाफ उच्च न्यायालय में रिट याचिका (संख्या 127/2025) दायर की। कोर्ट ने मस्जिद प्रशासन को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया। 16 जनवरी 2025 को व्यक्तिगत सुनवाई हुई, जिसमें हाटा नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी ने साफ कर दिया कि 6,555 वर्ग फीट का अतिरिक्त निर्माण अवैध है।
23 जनवरी 2025 को आदेश जारी हुआ कि 15 दिन के भीतर अवैध निर्माण हटा लिया जाए। लेकिन मस्जिद प्रशासन ने आदेश का पालन नहीं किया। इसके बाद 9 फरवरी 2025 को नगर पालिका परिषद, हाटा ने शांतिपूर्ण तरीके से मस्जिद के अनधिकृत हिस्से को गिराने की कार्रवाई की।
सोशल मीडिया पर बढ़ा विवाद
इस पूरे मामले के बाद सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया। नेता भी लगातार मौके पर पहुंच रहे हैं। इसी बीच, 11 फरवरी को हाटा पुलिस ने समाजवादी पार्टी के मीडिया सेल के एक पूर्व हैंडल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
एफआईआर में बीएनएस की धारा 353 (2), 196 (1) और सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम, 2008 की धारा 67 लगाई गई है। आरोप है कि सोशल मीडिया पर गलत टिप्पणियां कर अराजकता फैलाने, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने और सामाजिक विभाजन बढ़ाने की कोशिश की गई।
संविधान से चलेगा देश या बुलडोजर से?
इस पूरे मामले ने फिर से वही सवाल खड़ा कर दिया है – क्या यूपी सरकार संविधान से चल रही है या अपनी मनमर्जी से?
- अगर कोई निर्माण अवैध है, तो उसे हटाने की प्रक्रिया भी संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक होनी चाहिए।
- लेकिन अगर सरकार अपने हिसाब से कानून बना और तोड़ रही है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
- क्या यह प्रशासनिक कार्रवाई थी या राजनीति का खेल? इसका जवाब अगली सुनवाई में मिल सकता है।
यूपी में बुलडोजर की राजनीति जारी है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें हस्तक्षेप कर दिया है। आगे क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी।….. अन्य ख़बरों के लिए क्लिक करो