india us trade dispute trump threats india government silence : भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों को लेकर लगातार चर्चाओ का बाजार गर्म हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को धमकाने ,अपमान करने वाली भाषा शैली इस्तेमाल कर रहे है, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से इस पर कोई कड़ा जवाब देखने को नहीं मिला है। PM मोदी के अमेरिका दौरे से पहले ही भारत सरकार ने कई व्यापारिक टैरिफ (शुल्क) अपने बजट 2025 -26 में कम कर दिए थे, जिसके बावजूद ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से भारत की आलोचना की और आरोप लगाए।
भारत पर ट्रंप के आरोप और मोदी सरकार की प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर व्यापारिक शुल्कों को लेकर तीखी टिप्पणियां कीं। उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ (प्रतिस्पर्धात्मक शुल्क) लगाएगा, जिससे भारत को हर साल करीब ₹60,000 करोड़ का आर्थिक नुकसान हो सकता है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जिससे कई सवाल खड़े हुए हैं।
भारत के प्रधानमंत्री को ट्रंप अक्सर अपना दोस्त बताते हैं। और वैसे ही PM मोदी भी ट्रम्प को अपना दोस्त बताते है ‘हाउडी मोदी 2019’ कार्यक्रम में मोदी ने खुले तौर पर ट्रंप का समर्थन किया था और नारा दिया था “अबकी बार, ट्रंप सरकार”। यह पहली बार था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने किसी विदेशी नेता के चुनाव प्रचार में इस तरह सार्वजनिक समर्थन दिया। इसके जवाब में pm मोदी ने भी गुजरात में ‘नमस्ते ट्रंप’ नामक कार्यक्रम आयोजित किया था।
हालांकि, इसके बाद भी डोनाल्ड ट्रंप ने अपने 2.0 कार्यकाल में भारत के प्रति कड़े रुख अपनाए। ट्रंप ने भारत पर आरोप लगाया कि अमेरिका ने भारत को 21 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता दी, जिसका उपयोग भारत में मतदान प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए किया गया। इस गंभीर आरोप के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया ।
व्यक्तिगत रिश्ते बनाम राष्ट्रीय सम्मान
ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ही ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाने और ब्रिक्स मर चुका है की बात कही और PM मोदी हँसते रहे और अब जबकि श्री पीयूष गोयल भारत सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री वहा द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर बातचीत करने के लिए मौजूद हैं यहां तक कह दिया कि उन्होंने भारत की ‘पोल खोल’ दी है इस तरह की भाषा शेली का इस्तेमाल किया। ट्रंप ने दावा किया है कि भारत ने अमेरिकी आयात पर टैरिफ में कटौती करने पर सहमति जताई है, लेकिन भारत सरकार ने इस दावे की पुष्टि नहीं की है इस पर भी प्रधानमंत्री मोदी चुप ही रहे, जिससे कई लोगों में नाराजगी देखी गई। सवाल यह उठता है कि क्या किसी व्यक्ति का हित देश के हित से बड़ा हो सकता है? ट्रंप की टिप्पणियों ने भारत में राजनीतिक हलचल मचा दी है, जहां विपक्षी दलों ने सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं. भारत सरकार ने हालांकि यह स्पष्ट किया है कि वे व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और टैरिफ एवं गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने पर काम कर रहे हैं
जबकि यूक्रेन, फ्रांस, कनाडा, ब्राजील जैसे देश ट्रंप की नीतियों का खुलकर विरोध कर रहे हैं, वहीं भारत जैसे बड़े देश के प्रधानमंत्री की चुप्पी को लेकर लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। और विपक्ष ने भी अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसे देश का अपमान बतया
भारत के नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार पर सवाल
हाल ही में अमेरिका ने इसी साल 2025 में 3 बार करके अभी तक 332 भारतीय नागरिकों को जबरन अपने विमान में बिठाकर भारत डिपोर्ट कर दिया। इन नागरिकों को जंजीरों में बांधकर अमृतसर पहुंचाया गया। हैरानी की बात यह है कि इसी दौरान अमेरिका ने नेपाल के नागरिकों को सम्मानपूर्वक उनके देश भेजा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारत जैसे विशाल देश के नागरिकों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया गया और प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर भी कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी।
भारत का विशाल बाजार और आर्थिक प्रभाव
भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है और 150+ करोड़ की विशाल आबादी के साथ उसका वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। इसके बावजूद भारत की सरकार की चुप्पी कई लोगों को असहज कर रही है।
अन्य देशों की मुखर प्रतिक्रिया
जहां एक ओर चीन ने ट्रंप को खुली चेतावनी दे दी कि यदि अमेरिका युद्ध चाहता है, चाहे वह आर्थिक हो या सैन्य, चीन अंत तक लड़ने को तैयार है, वहीं भारत की ओर से कोई कड़ा रुख देखने को नहीं मिला।
निष्कर्ष पर विचार का विषय
प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी को लेकर कई राजनीतिक और सामाजिक वर्गों में चर्चा का माहौल है। सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी का व्यक्तिगत रिश्ता राष्ट्रीय सम्मान से बड़ा हो सकता है? इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी भी वैश्विक दबाव के आगे घुटने नहीं टेके। भारत के इतिहास में ऐसे कई मौके आए जब अमेरिका ने भारत को धमकाने या दबाव में लाने की कोशिश की, लेकिन भारत ने हर बार अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए साहसिक फैसले लिए। खासतौर पर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध समय, 1974 के पोखरण परमाणु परीक्षण और 1998 के पोखरण-2 परमाणु परीक्षण ऐसे उदाहरण हैं जब भारत ने अमेरिका की धमकियों के बावजूद अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि रखा। और भारत का रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका को नजरअंदाज कर व्यापार जारी रखना: राष्ट्रीय हित में लिया गया फैसला
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, तब भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए रूस के साथ व्यापार जारी रखा। उस समय भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से कच्चे तेल और अन्य जरूरी वस्तुओं का आयात किया। भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में सस्ता कच्चा तेल आयात करना जारी रखा।
- भारत ने रूस से व्यापार बढ़ाकर अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की।
- भारत को रूस से तेल आयात करने पर 50% तक सस्ता कच्चा तेल मिला, जिससे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर नियंत्रण बना रहा।
- भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर साफ शब्दों में कहा कि वह अपनी अर्थव्यवस्था और जनता के हितों के खिलाफ कोई निर्णय नहीं लेगा।
अब सवाल यह है कि क्या भारत सरकार को अमेरिकी दबाव के सामने चुप रहना चाहिए या देशहित में खुलकर प्रतिक्रिया देनी चाहिए?
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