IAS अभिषेक प्रकाश: नौकरी की आड़ में भ्रष्टाचार का साम्राज्य – संपत्ति, घोटाले और बेईमानी की पूरी कहानी

Zulfam Tomar
13 Min Read

 नौकरी या शाही का सपना?

IAS Abhishek Prakash: जब कोई युवा IAS या सरकारी नौकरी का सपना देखता है, तो हम सोचते हैं और वो ख़ुद भी बोलता है कि वह देश की सेवा करना चाहता है लेकिन जब वही अधिकारी अपने पद की ताकत को भ्रष्टाचार का हथियार बना लेता है, तो सवाल उठता है – क्या लोग सरकारी नौकरी इसलिए चाहते हैं ताकि वे “नौकरशाही” को सचमुच “नौकरी के जरिए शाही” बना सकें? आये दिन कोई न कोई भ्रष्टाचार में डूबे अधिकारी की ख़बर सामने आती है और ये हम अपने आप देख सकते है जब आप कोई सरकारी काम करवाने जाते है  तो आप कभी न कभी इस भ्रष्टाचार का सामना करते ही है ,उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ IAS अधिकारी अभिषेक प्रकाश की कहानी इस सवाल का कड़वा जवाब है। 700 बीघा जमीन, लखनऊ में आलीशान बंगले, ब्रह्मोस मिसाइल फैक्ट्री के नाम पर 20 करोड़ का घोटाला, और सोलर प्रोजेक्ट के लिए 5% कमीशन की डिमांड – यह उस नौकरशाह की हकीकत है, जिसने हर पोस्टिंग को संपत्ति का ढेर बनाने का मौका समझा। लेकिन यह सिर्फ अभिषेक की कहानी नहीं, बल्कि उस सिस्टम की गंदगी  है, जहाँ नौकरी सेवा का माध्यम नहीं, बल्कि शाही साम्राज्य खड़ा करने का जरिया बन गई है। और सबसे बड़ा सवाल – क्या हमारी सरकारें अब इन अधिकारियों और नेताओं की संपत्ति की निष्पक्ष जाँच करेंगी, या यह सब दिखावा ही रहेगा?

नौकरी का असली मकसद: सेवा या लूट? Who is Abhishek Prakash?

अभिषेक प्रकाश  2006 बैच के IAS हैं। जन्मभूमि बिहार, IIT  Roorkee से पढ़ाई, UPSC में सफलता, और फिर देश के सबसे बड़े राज्य में नौकरी। लेकिन क्या यह सब देश सेवा के लिए था? नहीं। 20 मार्च, 2025 को उनका निलंबन इस बात का सबूत है कि उनकी नौकरी का मकसद सेवा नहीं, बल्कि शाही ठाठ-बाट था।
  • बिजनेसमैन विश्वजीत दत्ता ने अपनी कंपनी SEAL सोलर P6 प्राइवेट लिमिटेड के लिए सोलर यूनिट लगाने का आवेदन किया।
  • अभिषेक ने अपने बिचौलिए निकांत जैन को डील करने भेजा। निकांत ने प्रोजेक्ट की कुल लागत का 5% कमीशन माँगा।
  • विश्वजीत ने मना किया, तो 12 मार्च, 2025 की मूल्यांकन समिति की बैठक में फाइल को “पुनर्मूल्यांकन” के लिए रोक दिया गया।

 जब पैसा नहीं मिला, तो फाइल रोक दी गई। यह डील उनके करीबी निकांत जैन के जरिए हुई, जिसे STF ने गिरफ्तार किया। बिजनेसमैन विश्वजीत दत्ता ने इसकी शिकायत सीएम योगी से की। सीएम ने मामले की STF से जांच कराई थी। इसके बाद एक्शन लिया। मुख्यमंत्री योगी की सख्ती से अभिषेक सस्पेंड हुए, लेकिन सवाल वही है – क्या वे अकेले हैं? क्या सरकारी नौकरी इसलिए लुभाती है क्योंकि यह पद की ताकत देती है, जिससे अधिकारी अपने साम्राज्य का सपना पूरा कर सकें? यह नौकरशाह मतलब नौकरी को मेहनत और सब्र का रास्ता नहीं मानता था, बल्कि इसे लूट का शॉर्टकट समझता था।

जहाँ पोस्टिंग, वहाँ साम्राज्य: संपत्ति का खेल

अभिषेक प्रकाश की कहानी सुनें, तो लगता है कि उनकी हर पोस्टिंग एक नया साम्राज्य बनाने का मौका थी। लखीमपुर खीरी और बरेली में 700 बीघा जमीन उनके परिवार और फर्जी कंपनियों के नाम पर खरीदी गई। लखनऊ में आशियाना, अंसल, और अन्य पॉश इलाकों में बंगले और कोठियाँ खड़ी की गईं। यह सब एक IAS की सैलरी से संभव था क्या? कभी नहीं। यह भ्रष्टाचार की कमाई थी। बरेली में 400 बीघा जमीन पर स्टांप ड्यूटी चोरी, लखीमपुर में टेंडर हेरफेर, और लखनऊ में डिफेंस कॉरिडोर घोटाले की काली कमाई ने उन्हें यह सब दिया। हर जिले में वे नौकरी करने नहीं, बल्कि शाही ठाठ-बाट का साम्राज्य खड़ा करने गए। यह नौकरशाही का वह काला सच है, जो हर ईमानदार नागरिक को झकझोर देता है। क्या सरकारी नौकरी सेवा का रास्ता नहीं, बल्कि संपत्ति का साम्राज्य बनाने का जरिया बन गई है?
लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) के उपाध्यक्ष के पद पर रहते हुए अभिषेक प्रकाश पर कई बिल्डरों को अनुचित लाभ पहुँचाने और अपनी मर्जी से सीलिंग व लाइसेंस देने के गंभीर आरोप लगे हैं। सूत्रों की मानें, तो LDA के VC के तौर पर उन्होंने कुछ अवैध निर्माण ढहाने का दिखावा तो किया, पर अपने नजदीकी बिल्डरों को फायदा पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आशियाना सहित कई क्षेत्रों में उनके पसंदीदा बिल्डरों को लाइसेंस आसानी से जारी किए गए। इसके अलावा, LDA के अधिकारियों के साथ साँठ-गाँठ कर कई बिल्डरों की फाइलों को जानबूझकर लटकाने और उनसे मोटी रकम वसूलने के भी इल्जाम हैं।

घोटालों का शहंशाह: 20 करोड़ की लूट

लखनऊ में डिफेंस कॉरिडोर का घोटाला अभिषेक प्रकाश के भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा नमूना है। 2020-2022 में, जब वे लखनऊ के DM थे, ब्रह्मोस मिसाइल यूनिट के लिए भटगाँव में जमीन अधिग्रहण हुआ। 45.18 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए, लेकिन 20 करोड़ की हेराफेरी कर ली गई। फर्जी दस्तावेज बनाए गए, ग्राम समाज की जमीन को बेचने योग्य बनाया गया, और फर्जी मालिकों को मुआवजा बाँट दिया गया। एक महिला, रामकली, को 6 लाख में जमीन बेचने को मजबूर किया गया, और उसी जमीन से राम सजीवन ने 71.28 लाख हड़प लिए। यह सब अभिषेक की निगरानी में हुआ। जाँच रिपोर्ट उन्हें जिम्मेदार ठहराती है। यह नौकरशाह देश की सुरक्षा से जुड़े प्रोजेक्ट को भी लूटने से नहीं चूका। क्या ऐसे लोग सरकारी नौकरी इसलिए करते हैं ताकि वे अपने पद की आड़ में शाही साम्राज्य खड़ा कर सकें?
भ्रष्टाचार का नेटवर्क: हर कदम पर बेईमानी

अभिषेक प्रकाश का भ्रष्टाचार सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक पूरा नेटवर्क था।

  • डिफेंस कॉरिडोर: 20 करोड़ की लूट।
  • LDA में धाँधली: बिल्डरों को फायदा, अवैध लाइसेंस।
  • अलीगढ़, लखीमपुर, हमीरपुर: जमीन घोटाले, खनन माफिया से साठगाँठ।
  • इन्वेस्ट यूपी: निवेशकों की फाइलें रोकीं, अयोध्या-वाराणसी प्रोजेक्ट्स लटकाए।
  • संपत्ति का ढेर: 700 बीघा जमीन, लखनऊ में बंगले।
  • लाइजनिंग सिंडिकेट: निकांत जैन और लकी जाफरी के साथ मिलकर कमीशन का खेल।

नौकरी से शाही तक: कार्यकाल का काला इतिहास

  • लखीमपुर खीरी (DM, 2011-2012): टेंडरों में खेल।
  • बरेली (DM, 2012-2014): 400 बीघा जमीन घोटाला।
  • अलीगढ़ (DM, 2014-2015): जमीन की कालाबाजारी।
  • हमीरपुर (DM, 2018-2019): खनन माफिया का साथ।
  • लखनऊ (DM, 2019-2022): डिफेंस और LDA घोटाले।
  • इन्वेस्ट यूपी (CEO, 2022-2025): निवेशकों से लूट।
    हर पद पर उन्होंने नौकरी को शाही बनाने का रास्ता चुना। क्या यह वही नौकरशाही है जिसे हम देश का आधार मानते हैं?कौन-कौन जांच के दायरे में

    निकांत जैन – IAS अधिकारियों के लिए लाइजनिंग करता था, निवेशकों से डील करता था।

    लकी जाफरी – सिंडिकेट का हिस्सा, घोटालों में शामिल।

    फार्मा कॉलेज संचालक – ED की जांच में 100 करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले में नाम।

    STF की जांच अभी जारी है, कई और खुलासे हो सकते हैं।

निकंत जैन का आपराधिक इतिहास

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, बिचौलिया निकंत जैन का धोखाधड़ी और वित्तीय अपराधों से भरा एक लंबा इतिहास रहा है। उसके खिलाफ मेरठ, लखनऊ और एटा में कई मुकदमे दर्ज हैं और कुछ अभी भी लंबित हैं। 

नौकरशाही और राजनीति: एक ही गंदगी, अलग-अलग चेहरे

अभिषेक प्रकाश अकेले नहीं हैं। नोएडा में इन्वेस्टर्स को जमीन आवंटन के मामलों में अनियमितताओं के चलते औद्योगिक विकास विभाग में लगातार बड़े प्रशासनिक भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। 14 दिसंबर 2024 को औद्योगिक विकास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव अनिल सागर को पिक एंड चूज पॉलिसी अपनाकर कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के आरोप में हटाया गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए सरकार को उनके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।

अब, IAS अभिषेक प्रकाश पर भी जमीन आवंटन और प्रोजेक्ट मंजूरी के नाम पर रिश्वत मांगने के गंभीर आरोप लगे हैं, जिसके चलते उन्हें निलंबित कर दिया गया है। सवा तीन महीने के भीतर औद्योगिक विकास विभाग के शीर्ष अधिकारियों पर यह दूसरी बड़ी कार्रवाई है, जिससे विभाग में फैले भ्रष्टाचार की परतें उजागर हो गई हैं।

मुख्य सचिव के करीबी रहे अनिल सागर और अभिषेक प्रकाश

सूत्रों के मुताबिक, अनिल सागर और अभिषेक प्रकाश को सरकार में मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह का करीबी माना जाता था। इन दोनों की औद्योगिक विकास विभाग में तैनाती भी मुख्य सचिव की सिफारिश पर हुई थी। बता दें कि मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास विभाग के अध्यक्ष भी हैं और उनके अधीन ही औद्योगिक विकास विभाग और इन्वेस्ट यूपी कार्यरत हैं।

 यहाँ सवाल उठता है -क्या मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह भी इस मामले में शामिल है ? क्या नौकरशाही और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू बन गए हैं? कुछ अधिकारी और नेता ईमानदारी से काम करते हैं, मगर ज्यादातर पद की ताकत को अपने साम्राज्य के लिए इस्तेमाल करते हैं। नौकरशाही में बेईमान अधिकारी और राजनीति में भ्रष्ट नेता – दोनों देश को खोखला कर रहे हैं। क्या लोग इसलिए नौकरी और सत्ता चाहते हैं ताकि वे शाही जिंदगी जी सकें?

क्या होगी निष्पक्ष जाँच?
अभिषेक प्रकाश को निलंबित कर राजस्व परिषद से जोड़ा गया है। उनकी संपत्ति और कार्यकाल की विजिलेंस जाँच होगी। लेकिन क्या यह काफी है? क्या सरकारें सचमुच अधिकारियों और नेताओं की संपत्ति की निष्पक्ष जाँच करेंगी? 700 बीघा जमीन, बंगले, और 20 करोड़ के घोटाले के सबूत सामने हैं, फिर भी कई बार ऐसे मामले ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह सिस्टम का हिस्सा है – बेईमानों को बचाने की कोशिश होती है। लेकिन जब तक संपत्ति की निष्पक्ष जाँच नहीं होगी, तब तक यह भ्रष्टाचार का साम्राज्य खत्म नहीं होगा। क्या हमारी सरकारें इस गंदगी को साफ करने की हिम्मत दिखाएँगी?
नौकरी या शाही – जनता तय करे
अभिषेक प्रकाश की कहानी हर उस नागरिक को झकझोरती है जो देश से प्यार करता है। यह सवाल उठाती है कि क्या सरकारी नौकरी सेवा का रास्ता नहीं, बल्कि शाही साम्राज्य खड़ा करने का जरिया बन गई है? क्या लोग नौकरी इसलिए चाहते हैं ताकि वे पद की आड़ में लूट मचा सकें? कुछ IAS ईमानदार हैं, मगर बेईमानों की भीड़ उन्हें दबा देती है। ठीक वैसे ही जैसे राजनीति में कुछ नेता जनता के लिए जीते हैं, पर ज्यादातर सत्ता और पैसे के पीछे भागते हैं। अब वक्त है कि जनता जागे और सरकार से माँग करे – हर अधिकारी और नेता की संपत्ति की निष्पक्ष जाँच हो। क्या आप ऐसे नौकरशाहों और नेताओं को माफ करेंगे, जो नौकरी और सत्ता को लूट का धंधा बना लें? यह सवाल आपसे है, और जवाब भी आपको देना है।
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