हरियाणा में MBBS परीक्षा से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसमें 41 लोगों पर FIR दर्ज करने की सिफारिश की गई है। इनमें 24 MBBS स्टूडेंट्स हैं और 17 लोग यूनिवर्सिटी के कर्मचारी। ये मामला रोहतक स्थित पंडित बीडी शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय से जुड़ा है, जहां परीक्षा में धांधली का आरोप लगा है।
परीक्षा नियंत्रक पर भी गिरी गाज
इस मामले में सबसे बड़ा एक्शन परीक्षा नियंत्रक (COE) डॉ. अमरीश भगोल के खिलाफ हुआ है, जिन्हें तुरंत उनके पद से हटा दिया गया है। इसके अलावा, 6 नियमित कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है और छह आउटसोर्स कर्मचारियों की सेवाएं खत्म कर दी गई हैं।
पहले भी हो चुकी थी कार्रवाई
यह घोटाला पिछले महीने से सुर्खियों में था। तब 2 नियमित कर्मचारियों रोशन लाल और रोहित को सस्पेंड किया गया था और तीन आउटसोर्स कर्मचारी – दीपक, इंदु बजाज और रीतू की सेवाएं खत्म कर दी गई थीं। यह कार्रवाई कुलपति डॉ. एचके अग्रवाल के निर्देश पर हुई थी, जब तीन सदस्यीय जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी।
कैसे खुला पूरा मामला?
इस घोटाले का खुलासा खुद एक MBBS स्टूडेंट ने किया। उसने यूनिवर्सिटी प्रशासन को बताया कि कुछ छात्र परीक्षा खत्म होने के बाद बाहर जाकर अपनी आंसर शीट दोबारा लिख रहे थे। ये सब पैसे लेकर किया जा रहा था, जिसमें हर विषय के लिए 3 से 5 लाख रुपये तक लिए गए थे।
वीडियो भी सामने आया
शिकायत के साथ एक वीडियो भी दिया गया था, जिसमें स्टूडेंट्स बिस्तर और कुर्सियों पर बैठकर उत्तर पुस्तिकाएं दोबारा लिखते नजर आ रहे थे। कहा जा रहा है कि इसमें यूनिवर्सिटी का एक कर्मचारी भी शामिल था, जो पूरी प्रक्रिया की निगरानी कर रहा था।
इरेजेबल इंक पेन से लिखे गए थे आंसर
शिकायत में ये भी बताया गया कि स्टूडेंट्स ने एग्जाम के दौरान इरेजेबल इंक पेन का इस्तेमाल किया। बाद में, हेयर ड्रायर की मदद से पुराने आंसर मिटाकर किताबों से देखकर नए उत्तर लिखे गए।
जांच कमेटी बनी, फिर एक्शन हुआ
इस पूरे मामले की जांच के लिए करनाल के कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के निदेशक डॉ. एम.के. गर्ग की अगुवाई में तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी ने एक महीने के अंदर रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें गड़बड़ी की पुष्टि हुई।
कैसे किया जाता था MBBS एग्जाम में फ्रॉड?
परीक्षा घोटाले में स्टूडेंट्स को पास कराने के लिए एक सुनियोजित तरीका अपनाया जाता था। इसमें कर्मचारियों और स्टूडेंट्स के बीच डील होती थी, जिसके तहत एक स्पेशल पेन का इस्तेमाल किया जाता था।
1. स्पेशल पेन का खेल
- इस पेन की स्याही लिखने के बाद सूख जाती थी।
- जिन छात्रों ने डील की होती थी, वे इसी पेन से अपने आंसर शीट लिखते थे।
- एग्जाम खत्म होने के बाद उत्तर पुस्तिकाओं को सेंटर से बाहर भेज दिया जाता था।
2. उत्तर पुस्तिकाओं की हेराफेरी
- बाहर भेजी गई आंसर शीट से हेयर ड्रायर की मदद से स्याही मिटाई जाती थी।
- इसके बाद उत्तर पुस्तिकाओं पर सही जवाब लिखे जाते थे।
- फिर इन्हें दोबारा परीक्षा सेंटर में भेज दिया जाता था, ताकि किसी को शक न हो।
3. सिर्फ MBBS ही नहीं, NEET और FMGE में भी घोटाला
- जांच में सामने आया कि कर्मचारी सिर्फ MBBS ही नहीं, बल्कि NEET-UG और फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम (FMGE) में भी पैसे लेकर स्टूडेंट्स की मदद करते थे।
- स्टूडेंट्स से पैसे कैश और ऑनलाइन बैंकिंग दोनों तरीकों से लिए जाते थे।
- जांच में दो कर्मचारियों के बैंक खातों में ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के सबूत भी मिले हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह खेल बड़े पैमाने पर चल रहा था।
कमेटी से जुड़े सूत्रों के अनुसार, इस घोटाले में एक बेहद सुनियोजित तरीके से इस खेल को अंजाम दिया जाता था। इसमें कर्मचारियों और कुछ बाहरी लोगों की मिलीभगत से छात्रों की आंसर शीट को बदला जाता था।
आंसर शीट का पहला पन्ना बदला जाता था
- घोटाले में शामिल कर्मचारी उत्तर पुस्तिका (Answer Sheet) का पहला पन्ना हटाकर उसे दूसरी शीट में सिल देते थे।
- इस पहले पन्ने पर छात्र का नाम, रोल नंबर और बारकोड मौजूद होता था, जिससे आंसर शीट की पहचान होती है।
- नया जोड़ा गया पन्ना असली प्रतीत होता था, जिससे धांधली पकड़ में नहीं आती थी।
स्टूडेंट की जगह कोई और लिखता था आंसर
- दूसरी शीट या तो खुद छात्र ने लिखी होती थी या फिर उसकी तरफ से किसी और ने आंसर शीट तैयार की होती थी।
- इससे उन छात्रों को फायदा मिलता था, जो खुद परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते थे।
किन कर्मचारियों पर हुई कार्रवाई?
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जिन नियमित कर्मचारियों को निलंबित किया, उनमें जय प्रकाश, कपिल देव, नवदीप, संदीप, अनिल और संजीव शामिल हैं। वहीं, जिन आउटसोर्स कर्मचारियों को हटाया गया, उनके नाम हैं – रोहतास, सुनील, नसीब, प्रदीप, गुरमीत और जय भगवान।
जो पकड़े गए, वो तो सामने आ गए, लेकिन जो बच गए?
अब सोचिए, ये तो वो लोग हैं जो पकड़े गए, जिनकी पहचान हो गई और जिनके खिलाफ एक्शन लिया जा रहा है। लेकिन जो इस पूरे खेल में पर्दे के पीछे थे, उनका क्या? वो कौन हैं जो इतनी सफाई से सिस्टम को मैनेज कर रहे थे कि परीक्षा में बैठने वाले ही नहीं, बल्कि परीक्षा करवाने वाले भी इसमें शामिल हो गए? क्या सच में घोटाले की जड़ यहीं खत्म हो जाती है, या फिर ये सिर्फ ऊपरी परत है और असली खेल अब भी परदे के पीछे चल रहा है?
एडमिशन से लेकर नौकरियों तक, हर जगह यही खेल
असल बात तो ये है कि ये सिर्फ एक यूनिवर्सिटी की कहानी नहीं है। देशभर में एडमिशन से लेकर नौकरियों के एग्जाम तक,चाहे छोटी नौकरी हो या बड़ी नौकरी हर जगह यही खेल चल रहा है। पैसे देकर सीट खरीदना, परीक्षा में पास करवाना, इंटरव्यू क्लियर करवाना – ये सब कोई नई बात नहीं रह गई। फर्क बस इतना है कि कभी-कभी कोई स्टूडेंट हिम्मत करके सच उजागर कर देता है, वरना आम आदमी को तो बस सिस्टम के इस खेल का शिकार ही बनना पड़ता है।सालों साल आम नौजवान रात दिन एग्जाम की तैयारी कर रहे होते है लेकिन यहाँ चुपके से पैसो के दम पर नौकरी और एडमिशन हो जाते है मेहनत कोई और करता है, लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसके पास पैसे और पहुंच होती है। यह भी पढ़े : इतिहास पर गर्व, धर्म के रक्षक ,बेरोजगार, पारिवारिक दबाव और नेताओं के झूठे वादों के बीच फंसा युवा – आखिर कब तक?