दिल्ली पुलिस का रसूखी खेल: 3 से 10 साल हो गये एक ही जगह तैनात 10,647 कर्मचारी, RTI से हुआ बड़ा खुलासा

प्रशासनिक सुस्ती या प्रभाव और रसूख

Zulfam Tomar
7 Min Read
दिल्ली पुलिस में ट्रांसफर नीति की विफलता: RTI से खुलासा – 10,647 कर्मचारी सालों से एक ही जगह पर तैनात
दिल्ली पुलिस, जो देश की राजधानी में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी संभालती है, अपनी ही ट्रांसफर नीति को लागू करने में असफल साबित हो रही है। हाल ही में एक सूचना के अधिकार (RTI) के जवाब में सामने आए आंकड़ों ने चौंकाने वाली हकीकत उजागर की है। दिल्ली पुलिस के करीब 10,647 कर्मचारी पिछले 3 साल से लेकर 10 साल या उससे भी अधिक समय तक एक ही थाने, जिले या यूनिट में जमे हुए हैं। यह स्थिति उस नीति के खिलाफ है, जो भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को रोकने के लिए अधिकतम 3 साल की तैनाती का नियम निर्धारित करती है। यह खुलासा न केवल प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि पुलिस व्यवस्था की पारदर्शिता और प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाता है।

RTI का खुलासा: आंकड़े क्या कहते हैं?

पब्लिक प्रोटेक्शन मूवमेंट ऑर्गेनाइजेशन के निदेशक जीशान हैदर द्वारा दायर RTI में दिल्ली पुलिस से यह पूछा गया था कि कितने कर्मचारी 3, 5, 7 या 10 साल से एक ही जगह पर तैनात हैं और उनका ट्रांसफर क्यों नहीं हुआ। जवाब में दिल्ली पुलिस ने जो आंकड़े दिए, वे निम्नलिखित हैं:
  • कुल संख्या: 10,647 पुलिसकर्मी 3 साल से अधिक समय से एक ही जगह पर कार्यरत हैं।
  • विवरण:
    • 6,244 कर्मचारी 3 साल से अधिक समय से।
    • 4,430 कर्मचारी 5 साल, 7 साल, 10 साल या उससे भी ज्यादा समय से।
  • सबसे प्रभावित यूनिट्स:
    1. सुरक्षा मुख्यालय चाणक्यपुरी: 2,907 कर्मचारी।
    2. पुलिस नियंत्रण कक्ष (PCR): 1,086 कर्मचारी।
    3. नागरिक अभिरक्षा वाहिनी: 792 कर्मचारी।

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ये आंकड़े मार्च 2025 तक की स्थिति को दर्शाते हैं और नवभारत टाइम्स जैसे समाचार स्रोतों में भी प्रकाशित हुए हैं।
ट्रांसफर नीति का उद्देश्य और उसका उल्लंघन
दिल्ली पुलिस की ट्रांसफर नीति का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना और पुलिसकर्मियों के बीच जवाबदेही सुनिश्चित करना है। लंबे समय तक एक ही जगह पर तैनाती से कर्मचारी स्थानीय प्रभावशाली लोगों, अपराधियों या अन्य तत्वों के साथ अनुचित संबंध बना सकते हैं, जिससे रिश्वतखोरी और गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। इसीलिए नीति में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कोई भी पुलिसकर्मी एक थाने या यूनिट में 3 साल से अधिक नहीं रह सकता।
हालांकि, RTI के आंकड़े बताते हैं कि यह नीति बड़े पैमाने पर लागू नहीं हो रही। 10,647 कर्मचारियों का एक ही जगह पर लंबे समय तक बने रहना यह सवाल उठाता है कि क्या प्रशासन इस नियम को जानबूझकर नजरअंदाज कर रहा है या इसमें कोई व्यवस्थागत खामी है।
प्रमुख प्रभावित क्षेत्र और संभावित कारण
  • सुरक्षा मुख्यालय चाणक्यपुरी: यहाँ सबसे अधिक 2,907 कर्मचारी 3 से 10 साल तक तैनात हैं। यह यूनिट VIP सुरक्षा से जुड़ी है, जिसके कारण संभवतः कर्मचारियों को यहाँ रखने में प्राथमिकता दी जा रही हो।
  • पुलिस नियंत्रण कक्ष: 1,086 कर्मचारी यहाँ लंबे समय से हैं। यह आपातकालीन सेवाओं का केंद्र है, जहाँ अनुभवी कर्मियों की जरूरत पड़ती है।
  • नागरिक अभिरक्षा वाहिनी: 792 कर्मचारी यहाँ जमे हैं, जो संभवतः विशेष कार्यों के लिए स्थिरता की मांग के कारण हो सकता है।
शोध के आधार पर कुछ संभावित कारण सामने आते हैं:
  1. प्रशासनिक सुस्ती: ट्रांसफर प्रक्रिया में देरी या योजना का अभाव।
  2. प्रभाव और दबाव: कुछ कर्मचारी प्रभावशाली लोगों के समर्थन से अपनी तैनाती बरकरार रख सकते हैं।
  3. कर्मचारी की कमी: दिल्ली पुलिस में पहले से ही स्टाफ की कमी की शिकायतें रही हैं, जिसके कारण ट्रांसफर को टाला जा सकता है।
इससे होने वाले नुकसान
लंबे समय तक एक ही जगह पर तैनाती के कई जोखिम हैं:
  • भ्रष्टाचार का खतरा: स्थानीय रसूख बढ़ने से पुलिसकर्मी गैरकानूनी गठजोड़ बना सकते हैं।
  • कामकाज में ढिलाई: एक ही जगह पर लंबे समय तक रहने से उत्साह और नवाचार में कमी आ सकती है।
  • जनता का भरोसा टूटना: अगर भ्रष्टाचार या पक्षपात की घटनाएँ बढ़ती हैं, तो जनता का पुलिस पर विश्वास कम होगा।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

पुलिस सुधारों पर काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रांसफर नीति का सख्ती से पालन न होना व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है। कुछ का यह भी कहना है कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में पुलिस पर काम का बोझ इतना है कि ट्रांसफर जैसी प्रक्रियाएँ प्राथमिकता से बाहर हो जाती हैं। हालांकि, यह समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि इसे और गहरा करता है।
सवाल और समाधान की दिशा
  • प्रशासन क्यों चुप है?: क्या उच्च अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं, या वे इसे नजरअंदाज कर रहे हैं?
  • ट्रांसफर में देरी के पीछे क्या?: क्या यह नीतिगत विफलता है या व्यक्तिगत लाभ का मामला?
इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
  1. सख्त निगरानी: ट्रांसफर नीति के पालन के लिए एक स्वतंत्र निगरानी समिति बनाई जाए।
  2. डिजिटल सिस्टम: ट्रांसफर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ऑनलाइन ट्रैकिंग सिस्टम लागू हो।
  3. जवाबदेही: नियम तोड़ने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
RTI से हुआ यह खुलासा दिल्ली पुलिस के लिए एक बड़ा अलार्म है। अगर ट्रांसफर नीति को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, तो भ्रष्टाचार और अक्षमता की जड़ें और मजबूत होंगी। यह न केवल पुलिस प्रशासन के लिए, बल्कि दिल्ली की जनता के लिए भी चिंता का विषय है, जो अपनी सुरक्षा के लिए इस व्यवस्था पर निर्भर है। अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली पुलिस इस खुलासे को गंभीरता से लेगी और सुधार की दिशा में कदम उठाएगी, या यह आंकड़े केवल चर्चा तक सीमित रह जाएंगे? इसका जवाब आने वाले समय में ही मिलेगा।
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