दिल्ली HC जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर अनगिनत अधजले नोट: FIR क्यों नहीं?

Zulfam Tomar
10 Min Read
जस्टिस वर्मा मामले पर बोले अमित शाह, बिना CJI की अनुमति के FIR नहीं हो सकती
Judge Yashwant Varma:
जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश हैं, जो हाल ही में एक बड़े विवाद के कारण सुर्खियों में आए हैं। उनका जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बीकॉम (ऑनर्स) और मध्य प्रदेश के रेवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। अपने करियर में उन्होंने श्रम और औद्योगिक कानून, कॉर्पोरेट कानून, कराधान जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की। 2014 में वे इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज बने और लगभग सात साल वहां सेवा देने के बाद 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट में स्थानांतरित हुए। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए, जैसे कि चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में सुनवाई

विवाद और अब तक क्या हुआ:

दरअसल, जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जज हैं. इससे पहले वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज थे। जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम उस समय चर्चा में आया जब 14 मार्च 2025 को रात करीब 11.35 बजे उनके लुटियंस नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगी। उस समय वे और उनकी पत्नी दिल्ली में नहीं थे, बल्कि मध्य प्रदेश की यात्रा पर थे। उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड को बुलाया, और आग बुझाने के दौरान स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में अधजले नोटों की बोरियां मिलने की बात सामने आई। लुटियंस दिल्ली स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने के बाद कथित तौर पर नकदी मिली थी। इसके बाद दमकल अधिकारियों को मौके पर पहुंचना पड़ा था। पहलेे अधिकारी मना करतेे रहे कि कोई कैश नहींं मिला लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर वीडियो रिलीज होने के बाद सबके बयान बदल गए। इसके बाद न्यायिक गलियारे में हड़कंप मच गया।  इस घटना ने सवाल उठाए कि इतनी नकदी कहां से आई और क्या यह अवैध स्रोतों से जुड़ी थी। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने कभी स्टोर रूम में कैश रखा था। उनका दावा है कि यह उनकी छवि खराब करने की साजिश है।

जस्टिस यशवंत वर्मा case: के खिलाफ लगे आरोपों में अभी अब तक की क्या क्या हुआ:

  1. सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत संज्ञान लिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने तीन जजों की एक इन-हाउस जांच समिति गठित की, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं। इस समिति ने 25 मार्च को जस्टिस वर्मा के आवास का दौरा किया और स्टोर रूम का मुआयना किया।
  2. न्यायिक कार्य वापस लिया: CJI के निर्देश पर जस्टिस वर्मा से तत्काल प्रभाव से सभी न्यायिक जिम्मेदारियां वापस ले ली गईं। दिल्ली हाई कोर्ट ने नया रोस्टर जारी कर उनके मामले दूसरी बेंच को सौंप दिए।
  3. ट्रांसफर का प्रस्ताव: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली से उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट, वापस भेजने की सिफारिश की। हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इसका कड़ा विरोध किया, इसे “कूड़ेदान में भेजने” जैसा बताते हुए आपत्ति जताई और उनके खिलाफ महाभियोग की मांग की।
  4. FIR की मांग और सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग थी। यह याचिका वकील मैथ्यू नेदुम्पारा ने दाखिल की थी, जिसमें कहा गया कि मामले की जांच पुलिस को सौंपी जानी चाहिए। हालांकि, 28 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।
  5. कानूनी सलाह और जांच: जस्टिस वर्मा ने अपनी रक्षा के लिए वरिष्ठ वकीलों सिद्धार्थ अग्रवाल, मेनका गुरुस्वामी, अरुंधति काटजू और तारा नरूला से कानूनी सलाह ली। जांच समिति जल्द ही उनसे पूछताछ कर सकती है, और दिल्ली पुलिस ने स्टोर रूम को सील कर दिया है।

वर्तमान स्थिति:

फिलहाल, इन-हाउस जांच चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की एक रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा का जवाब सार्वजनिक किया है, जिसमें वे आरोपों से इनकार करते हैं। जांच के नतीजों के आधार पर उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई तय होगी, जिसमें ट्रांसफर, निलंबन या अन्य कदम शामिल हो सकते हैं। मामला अभी अनसुलझा है, और यह भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही के सवालों को उठा रहा है। आगे क्या होगा यह तो निष्पक्ष जांच होने के बाद ही पता चल पाएगा 

लेकिन इससे पहले आप भी जान लीजिए कि जजों पर FIR कब और कैसे हो सकती हैं ,उसका प्रोसीजर क्या है

भारत में किसी जज (न्यायाधीश) के खिलाफ FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज करना संभव है, लेकिन यह सामान्य परिस्थितियों से अलग और जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि जजों को संविधान के तहत कुछ विशेष संरक्षण प्राप्त हैं। यह संरक्षण उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए दिया गया है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:

क्या जज के खिलाफ FIR हो सकती है?

हां, जज के खिलाफ FIR दर्ज की जा सकती है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें और प्रक्रियाएं हैं:

न्यायिक कार्यों से संबंधित संरक्षण: अगर कोई आरोप जज के न्यायिक कर्तव्यों (जैसे फैसले सुनाना) से जुड़ा है, तो संविधान के अनुच्छेद 124(4) और जजेस (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1985 के तहत उन्हें सुरक्षा मिलती है। इसका मतलब है कि उनके फैसलों या कोर्ट में की गई कार्रवाइयों के लिए उन पर सीधे मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

गैर-न्यायिक कार्यों के लिए: अगर आरोप जज के व्यक्तिगत व्यवहार या गैर-न्यायिक गतिविधियों (जैसे भ्रष्टाचार, आपराधिक कृत्य) से संबंधित हैं, तो उनके खिलाफ FIR दर्ज की जा सकती है। हालांकि, इसके लिए उच्च स्तर की मंजूरी जरूरी होती है।

FIR दर्ज करने की प्रक्रिया:

जज के खिलाफ FIR दर्ज करने का प्रक्रिया इस प्रकार है:

जजों पर FIR करने के लिए उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट की अनुमति की जरूरी?:

अगर जज हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश है, तो उसके खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई (FIR सहित) शुरू करने से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की सहमति लेनी पड़ती है। यह प्रक्रिया जज की स्थिति और स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए अपनाई जाती है।

उदाहरण: जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस जांच शुरू की, लेकिन अभी तक FIR दर्ज करने की अनुमति नहीं दी गई है।

शिकायत की जांच:

पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच की जाती है, जो आमतौर पर न्यायपालिका के आंतरिक तंत्र (जैसे इन-हाउस कमेटी) द्वारा की जाती है। अगर जांच में प्रथम दृष्टया अपराध का सबूत मिलता है, तो आगे की कार्रवाई की सिफारिश की जा सकती है।

यह जांच यह तय करती है कि मामला पुलिस को सौंपा जाए या नहीं।

जजों पर FIR दर्ज करना:

अगर CJI या हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मंजूरी देते हैं, तो पुलिस सामान्य प्रक्रिया के तहत FIR दर्ज कर सकती है (धारा 154, CrPC के तहत)।

लेकिन जज के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले सबूतों का मजबूत आधार होना जरूरी है, क्योंकि यह संवेदनशील मामला होता है।

महाभियोग की संभावना:

अगर अपराध गंभीर है (जैसे भ्रष्टाचार या पद का दुरुपयोग), तो FIR के साथ-साथ महाभियोग (Impeachment) की प्रक्रिया भी शुरू हो सकती है। इसके लिए संसद में प्रस्ताव लाना पड़ता है, जिसे लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है (अनुच्छेद 124(4))।

जज के खिलाफ FIR संभव है, लेकिन यह सीधे पुलिस थाने में जाकर दर्ज नहीं हो सकती। इसके लिए पहले न्यायपालिका के उच्च अधिकारियों की मंजूरी और प्रारंभिक जांच जरूरी है। यह प्रक्रिया जजों की स्वतंत्रता को संतुलित करने और गलत आरोपों से बचाने के लिए बनाई गई है।

आप इसके बारे में क्या सोचते हैं? कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं

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