मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन: 17 फरवरी को होगी अहम बैठक, 18 फरवरी को रिटायर होंगे राजीव कुमार
भारत के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त Chief Election Commissioner (CEC) के चयन को लेकर 17 फरवरी को एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और नेता विपक्ष राहुल गांधी शामिल होंगे। वजह साफ है—18 फरवरी को मौजूदा CEC राजीव कुमार रिटायर हो रहे हैं और इससे पहले नए चुनाव आयुक्त के नाम पर मुहर लगनी है।
कौन होगा अगला CEC?
परंपरा के अनुसार, चुनाव आयोग में सबसे सीनियर चुनाव आयुक्त को CEC के रूप में प्रमोट किया जाता रहा है। इस वक्त ज्ञानेश कुमार सबसे सीनियर हैं, जिनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि उन्हें यह जिम्मेदारी मिल सकती है। वहीं, दूसरे चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू भी इस दौड़ में शामिल हो सकते हैं।
चूंकि ज्ञानेश कुमार के CEC बनने की स्थिति में एक चुनाव आयुक्त की सीट खाली हो जाएगी, इसलिए एक नए चुनाव आयुक्त की भी नियुक्ति की संभावना है।
राजीव कुमार का कार्यकाल और उनका रिटायरमेंट प्लान
राजीव कुमार बिहार/झारखंड कैडर के 1984 बैच के IAS अधिकारी रहे हैं। 15th मई 2022 में उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाला। उनके कार्यकाल में 2024 के लोकसभा चुनाव, जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव, राष्ट्रपति चुनाव, और 2023 में हुए कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव शामिल रहे।
जनवरी 2025 में दिल्ली चुनाव की घोषणा के दौरान उन्होंने अपने रिटायरमेंट प्लान का भी जिक्र किया था। उनका कहना था कि वह हिमालय जाना चाहते हैं, खुद को ‘डिटॉक्सीफाई’ करेंगे और मीडिया की चकाचौंध से दूर रहेंगे। साथ ही, उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने की इच्छा भी जताई थी।
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 साल या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक सीमित होता है।
चुनाव आयोग पर उठे सवाल और आरोप
राजीव कुमार के कार्यकाल के दौरान चुनाव आयोग पर विपक्षी दलों ने कई बार पक्षपात के आरोप लगाए। खासतौर पर, चुनाव आयोग पर यह आरोप लगा कि वह सत्तारूढ़ भाजपा का पक्ष लेता है। इसके अलावा, ईवीएम (EVM) को लेकर भी सवाल खड़े हुए। विपक्षी दलों का दावा था कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है, हालांकि चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि मशीनें कई न्यायिक जांचों में सफल रही हैं।
चुनाव आयोग तब भी विवादों में रहा, जब दिल्ली चुनाव से कुछ दिन पहले आम आदमी पार्टी (AAP) संयोजक अरविंद केजरीवाल ने चुनाव आयोग पर भाजपा के सामने ‘आत्मसमर्पण’ करने का आरोप लगाया। उन्होंने दिल्ली चुनाव में पार्टी की हार के लिए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की मिलीभगत को जिम्मेदार ठहराया, हालांकि राजीव कुमार ने इन आरोपों का खंडन किया।
चुनाव आयोग पर हाल ही में कई आरोप लगे हैं, खासकर विपक्षी दलों की ओर से। इनमें कुछ प्रमुख आरोप ये रहे:
- विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP), ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ बीजेपी के पक्ष में काम कर रहा है।
- दिल्ली चुनाव से पहले AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने चुनाव आयोग पर बीजेपी के सामने आत्मसमर्पण करने का आरोप लगाया।
- कुछ विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग की कार्रवाई सत्तारूढ़ दल के लिए फायदेमंद होती है, जबकि विपक्षी दलों के मामलों में सख्ती दिखाई जाती है।
2. वोटर टर्नआउट के आंकड़े जारी करने में देरी
- हालिया चुनावों में यह देखने को मिला कि मतदान खत्म होने के कई घंटों बाद तक आयोग ने वोटर टर्नआउट के आंकड़े जारी नहीं किए।
- दिल्ली विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में देर से आंकड़े जारी करने को लेकर चुनाव आयोग की आलोचना हुई।
- विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह जानबूझकर किया गया ताकि सत्तारूढ़ दल को अपनी रणनीति तय करने का समय मिल सके।
3. EVM की विश्वसनीयता पर सवाल
- कई विपक्षी नेताओं और पार्टियों ने EVM (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।
- कांग्रेस, AAP और समाजवादी पार्टी सहित कई दलों ने आरोप लगाया कि EVM में हेरफेर की जा सकती है और इन्हें हैक किया जा सकता है।
- चुनाव आयोग ने बार-बार इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि EVM पूरी तरह सुरक्षित हैं और इनमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।
4. चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल
- सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की नियुक्तियों से जुड़े कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की गई हैं।
- आरोप लगाया गया कि CEC (मुख्य चुनाव आयुक्त) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है और इसमें सरकार का ज्यादा हस्तक्षेप होता है।
- विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कमजोर करने के लिए नया कानून पास किया, जिसमें CJI (मुख्य न्यायाधीश) को सिलेक्शन पैनल से बाहर कर दिया गया।
5. चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप
- पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में चुनाव के दौरान गड़बड़ियों के आरोप लगे।
- कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में मतदाता सूची में धांधली के आरोप लगाए।
- चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया: चुनाव आयोग ने कहा कि वह इस मामले में पूरे तथ्यों के साथ जवाब देगा और उचित कार्रवाई करेगा।
- कुछ जगहों पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामले सामने आए, लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग ने सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की।
बंगाल चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने आयोग पर बीजेपी के दबाव में काम करने का आरोप लगाया था।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने हाल ही में मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव के दौरान चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, “यह भाजपा का चुनाव लड़ने का तरीका है। चुनाव आयोग मर गया है, सफेद कपड़ा हमें भेंट करना पड़ेगा।”
अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा और प्रशासन ने मिल्कीपुर उपचुनाव में फर्जी वोटिंग और धांधली की। उन्होंने कहा कि पुलिस-प्रशासन का रवैया अलोकतांत्रिक रहा, समाजवादी पार्टी के बूथ एजेंटों को डराया-धमकाया गया, और भाजपा ने बेईमानी के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन और बीएलओ ने कई बूथों पर फर्जी मतदान कराया, भाजपा के समर्थकों ने फर्जी वोटिंग की, और बूथ संख्या 158 पर एसडीएम ने खुद बूथ कैप्चरिंग की शिकायत चुनाव आयोग से की।
6. विपक्षी दलों की शिकायतों को नजरअंदाज करने का आरोप
- कई विपक्षी दलों का कहना है कि वे जब चुनाव आयोग से किसी मुद्दे पर शिकायत करते हैं, तो उनकी शिकायतों पर जल्दी कार्रवाई नहीं होती।
- वहीं, सत्तारूढ़ दल की शिकायतों पर त्वरित प्रतिक्रिया दी जाती है।
ये तमाम आरोप चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं। हालांकि, चुनाव आयोग हर बार कहता आया है कि वह पूरी तरह निष्पक्ष तरीके से काम कर रहा है और किसी भी राजनीतिक दल के दबाव में नहीं है।
CEC और EC की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
इस बीच, CEC – Chief Election Commissioner (मुख्य चुनाव आयुक्त) और EC – Election Commission (चुनाव आयोग) की नियुक्ति से जुड़े एक अहम मामले पर सुप्रीम कोर्ट 19 फरवरी को सुनवाई करने वाला है। यह मामला ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023’ की संवैधानिकता से जुड़ा है।
दरअसल, पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 को फैसला सुनाया था कि CEC और EC की नियुक्ति के लिए एक पैनल बनाया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) शामिल होंगे। लेकिन दिसंबर 2023 में केंद्र सरकार ने एक नया कानून पारित किया, जिसमें CJI को इस पैनल से हटा दिया गया। अब इस पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे।
विपक्षी दलों ने इस नए कानून का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। कांग्रेस की कार्यकर्ता जया ठाकुर ने इसे चुनौती देते हुए कहा कि यह कानून निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के खिलाफ है। उनका कहना है कि इससे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सरकार का नियंत्रण बढ़ जाएगा और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया कमजोर होगी।
भारत में चुनाव आयोग का ढांचा और बदलाव
संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार, भारत में चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा एक या अधिक चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। यह संख्या तय करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास है।
आजादी के बाद शुरुआत में सिर्फ एक ही मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे। लेकिन 16 अक्टूबर 1989 को राजीव गांधी सरकार ने दो और चुनाव आयुक्त नियुक्त किए, जिससे चुनाव आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय बन गया।
हालांकि, 2 जनवरी 1990 को वीपी सिंह सरकार ने नियमों में बदलाव करके चुनाव आयोग को फिर से एक-सदस्यीय निकाय बना दिया। बाद में, 1 अक्टूबर 1993 को पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने एक अध्यादेश लाकर दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को मंजूरी दी। तब से अब तक चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
आगे क्या होगा?
अब सबकी निगाहें 17 फरवरी की बैठक और 18 फरवरी को होने वाली CEC की नियुक्ति पर टिकी हैं। क्या ज्ञानेश कुमार को यह जिम्मेदारी मिलेगी, या फिर कोई नया नाम सामने आएगा? साथ ही, 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई भी अहम होगी, क्योंकि यह CEC और EC की नियुक्ति प्रक्रिया के भविष्य को तय कर सकती है।