दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: दिल्ली में AAP की हार और BJP की जीत – क्या यह सिर्फ चुनाव था या गहरी कूटनीति का नतीजा?

Zulfam Tomar
21 Min Read

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में BJP को 48 सीटें मिलीं और आम आदमी पार्टी (AAP) को करारी हार का सामना करना पड़ा। मीडिया में इसकी कई वजहें बताई जा रही हैं—केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप, दिल्ली में बढ़ता असंतोष, बीजेपी की रणनीति, मोदी लहर, हिंदुत्व की राजनीति वगैरह। लेकिन अगर राजनीति को गहराई से समझने वाले लोगों की मानें, तो यह सिर्फ एक चुनावी हार-जीत की कहानी नहीं है, बल्कि एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है।

BJP और RSS का लक्ष्य सिर्फ दिल्ली जीतना नहीं था, बल्कि कांग्रेस को खत्म करने की लंबी रणनीति का यह एक और कदम था। यह रणनीति नई नहीं है, बल्कि यह सत्ता और कूटनीति का वह खेल है, जिसे विरोधी के खिलाफ़ सदियों से अपनाया जाता रहा है— जिसमें प्रत्यक्ष मुकाबले से बचते हुए तीसरी ताकत को आगे बढ़ाकर असली विरोधी को कमजोर किया जाता है।अगर आप किसी को सीधे नहीं हरा सकते, तो उसे अंदर से कमजोर करो,उसे बाहार से कमजोर करो , उसके वोट काटो और फिर अपनी जीत सुनिश्चित करो।

आइए, इसे बारीकी से समझते हैं।

राहुल गांधी की बगावत से कांग्रेस के पतन तक – BJP की रणनीति, AAP का खेल और कॉरपोरेट मीडिया की भूमिका

साल 2010-11, किसान लगातार भूमि अधिग्रहण कानून की मांग कर रहे थे इसको लेकर उत्तर प्रदेश में

Contents
राहुल गांधी की बगावत से कांग्रेस के पतन तक – BJP की रणनीति, AAP का खेल और कॉरपोरेट मीडिया की भूमिकाक्या हुआ था भट्टा-पारसौल में?राहुल गांधी का संघर्षक्यों खास था ये आंदोलन?जब राहुल गांधी का “लैंड एक्विजिशन बिल” (भूमि अधिग्रहण विधेयक) वीटो   और कॉर्पोरेट की नाराजगी मोल ली राहुल गांधी Vs कॉर्पोरेट – असली लड़ाई कहां से शुरू हुई?कैसे कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला गया?कॉरपोरेट मीडिया की भूमिका – राहुल गांधी को “हीरो” से “पप्पू” बनाने तककोर्प्रोरेट ,BJP और RSS की योजना – कांग्रेस को अंदर से कमजोर करने की रणनीतिBJP की मास्टरस्ट्रोक रणनीति – कांग्रेस को खत्म करने का प्लान1. कांग्रेस के भीतर फूट डालनाकांग्रेस का असली पतन – जब सत्ता के नशे में जनता से दूरी बन गईBJP-RSS को कांग्रेस के कमजोर होने से क्या फायदा हुआ?AAP का जन्म – कांग्रेस को खत्म करने की पहली चालAAP को मजबूत करने की BJP की रणनीतिबीजेपी का “कांग्रेस मुक्त भारत” प्लानAAP को खत्म करने की दूसरी चाल – जब BJP को लगा कि अब वक्त आ गया है1. भ्रष्टाचार के आरोप और मीडिया ट्रायल2. नेताओं की खरीद-फरोख्त और पार्टी में बगावत3. राष्ट्रविरोधी छवि बनाने की कोशिश2025 का दिल्ली चुनाव – BJP की रणनीति का आखिरी चरणबिहार में PK (प्रशांत किशोर) की भूमिका:BJP की रणनीति:क्या बिहार में भी वही रणनीति चलेगी?क्यों BJP और RSS कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं?कांग्रेस को खत्म करने की रणनीति क्यों?

भट्टा-पारसौल आंदोलन: जब राहुल गांधी किसानों के साथ खड़े हुए

साल 2011 में भट्टा-पारसौल (ग्रेटर नोएडा) में किसानों और पुलिस के बीच ज़बरदस्त झड़प हुई। मामला था ज़मीन अधिग्रहण का। किसान अपनी ज़मीन सरकार को देने के खिलाफ थे, लेकिन जबरदस्ती अधिग्रहण की कोशिश हुई, तो हालात बेकाबू हो गए।

क्या हुआ था भट्टा-पारसौल में?

👉 7 मई 2011 को पुलिस और किसानों के बीच ज़बरदस्त संघर्ष हुआ।
👉 इस झड़प में दो किसानों और दो पुलिसवालों की मौत हो गई।
👉 किसानों का आरोप था कि सरकार उनकी ज़मीन जबरदस्ती छीन रही थी, और मुआवज़ा भी बहुत कम मिल रहा था
👉 उस समय यूपी में मायावती की सरकार थी, और प्रशासन ने मामले को दबाने की कोशिश की।

राहुल गांधी का संघर्ष

👉 राहुल गांधी ने इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया और भट्टा-पारसौल गाँव पहुंच गए
👉 उन्होंने किसानों की बात सुनी, उनके साथ धरने पर बैठे और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला
👉 पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन इससे आंदोलन और तेज़ हो गया
👉 इस घटना के बाद राहुल गांधी की छवि एक जुझारू नेता के रूप में बनी

क्यों खास था ये आंदोलन?

✅ राहुल गांधी की पहली बड़ी जमीनी लड़ाई थी।
✅ किसानों का मुद्दा पूरे देश में सुर्खियों में आ गया।
✅ भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की मांग तेज़ हुई।

इस संघर्ष के बाद भूमि अधिग्रहण कानून 2013 आया, जिसमें किसानों की सहमति और उचित मुआवज़े की बात शामिल की गई। इस तरह, भट्टा-पारसौल आंदोलन ने भारत में ज़मीन अधिग्रहण के नियमों को बदलने की दिशा में अहम भूमिका निभाई।

राहुल गांधी ने अपनी सरकार पर दबाव बनाया उस समय यूपीए-2 (UPA-2) की सरकार थी, और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल (Land Acquisition Bill) लाने की कोशिश की,

यह कांग्रेस के अंदर बढ़ते नेतृत्व संकट का पहला बड़ा संकेत था। और मिडिया में कांग्रेस के अंदरूनी कमजोरी उजागर हो गई—कांग्रेस के भीतर कोई स्पष्ट नेतृत्व नहीं था ऐसा छपने लगा

इसी दौरान, कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गई।

  • 2G घोटाला
  • कोयला घोटाला
  • कॉमनवेल्थ घोटाला

इन मामलों ने कांग्रेस की छवि को पूरी तरह खराब कर दिया, और जनता में एंटी-कांग्रेस माहौल बनने लगा।

जब राहुल गांधी का “लैंड एक्विजिशन बिल” (भूमि अधिग्रहण विधेयक) वीटो   और कॉर्पोरेट की नाराजगी मोल ली 

राहुल गांधी Vs कॉर्पोरेट – असली लड़ाई कहां से शुरू हुई?

यह कहानी शुरू होती है 2013 से, जब राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार  पर दबाव बनाकर  “लैंड एक्विजिशन बिल” (भूमि अधिग्रहण विधेयक) को संसद में पेश करा दिया था।

  • यह कदम कॉर्पोरेट घरानों  को नाराज करने वाला माना गया। और उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर भी की
  • कांग्रेस के भीतर भी इस पर घमासान छिड़ गया कई वरिष्ठ मंत्रियों भी नाराज हो गये 

राहुल गांधी का यह कदम

लेकिन इस फैसले ने देश के बड़े बिजनेस हाउस को नाराज कर दिया। यहीं से शुरू हुई कांग्रेस के खिलाफ सबसे संगठित और सबसे बड़ी रणनीति।


कैसे कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला गया?

राहुल गांधी के इस कदम के बाद

  • कॉर्पोरेट लॉबी पूरी तरह BJP के पक्ष में आ गई।
  • मीडिया हाउस, जो पहले कांग्रेस के समर्थन में थे, अचानक BJP की तारीफ करने लगे।

यहीं से शुरू हुआ “नरेंद्र मोदी को हीरो” और “राहुल गांधी को पप्पू” बनाने का खेल।


कॉरपोरेट मीडिया की भूमिका – राहुल गांधी को “हीरो” से “पप्पू” बनाने तक

कॉर्पोरेट्स ने जब BJP का साथ दिया, तो मीडिया ने राहुल गांधी के खिलाफ जमकर अभियान चलाया।

  • पहले वही मीडिया राहुल को हीरो दिखा रही थी।
  • अब वही मीडिया उन्हें “पप्पू” कहने लगी।मीडिया ने मोदी की एक “इमोशनल कहानी” बनाई—
    • गरीब परिवार में जन्म
    • रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाला बच्चा
    • कड़ी मेहनत से देश का सबसे ताकतवर नेता बनने का सफर और भी पता नही क्या क्या ये सब आप सबने देखा

फिर शुरू हुआ फेक न्यूज़ और नैरेटिव वॉर

  • राहुल गांधी को “सीरियस पॉलिटिशियन नहीं” बताया गया।
  • उन पर “विदेश भागने” जैसे आरोप लगाए गए।
  • उनकी हर स्पीच को एडिट करके मजाक बनाया गया।

यह सब BJP और कॉर्पोरेट गठजोड़ का हिस्सा था। और इन सब में सूत्रधार है विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (VIF ) जो पर्दे के पीछे बीजेपी RSS के लिए एक थिंक टैंक का काम 2009 से कर रहा है 

  • वही मीडिया जो राहुल गांधी को कांग्रेस का भविष्य बताती थी, वही अब उन्हें “पप्पू” कहने लगी।
  • राहुल के हर बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाने लगा।
  • सोशल मीडिया पर उनके मजाक उड़ाने वाले मीम्स बनाए गए।
  • बड़े मीडिया हाउसों ने राहुल की छवि को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।

कैसे हुआ यह बदलाव?

  • 2013 में News18 नेटवर्क 18 (CNN-IBN, IBN7) को रिलायंस ने खरीद लिया।
  • 2015 में NDTV को धीरे-धीरे कमजोर किया गया, फिर 2022 में अदाणी ने इसे खरीद लिया।
  • ज़ी न्यूज, रिपब्लिक भारत जैसे चैनल पूरी तरह BJP की लाइन पर चलने लगे।

इसका नतीजा यह हुआ कि राहुल गांधी की छवि जनता के सामने एक मजाक बन गई, और विपक्ष कमजोर होने लगा। “पप्पू।” यह शब्द एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, जिससे उनकी गंभीरता को खत्म किया जाए।

इस रणनीति के तहत तीन बड़े कदम उठाए गए:

  1. मीडिया के जरिए राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाया गया। उनके भाषणों के छोटे-छोटे क्लिप काटकर उन्हें बेवकूफ दिखाने की कोशिश हुई।
  2. सोशल मीडिया पर प्रोपेगैंडा फैलाया गया। बड़े-बड़े सोशल मीडिया अकाउंट्स और IT सेल ने राहुल गांधी की कमजोर छवि बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
  3. कांग्रेस को “परिवारवादी पार्टी” साबित करने की कोशिश हुई। बार-बार यह कहा गया कि कांग्रेस सिर्फ एक परिवार की पार्टी है और इसमें लोकतंत्र नहीं है।

इन सभी प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि जनता के एक बड़े वर्ग ने राहुल गांधी को गंभीरता से लेना बंद कर दिया। इससे कांग्रेस कमजोर होती गई और BJP मजबूत। लेकिन यह BJP की रणनीति का सिर्फ पहला भाग था।

कोर्प्रोरेट ,BJP और RSS की योजना – कांग्रेस को अंदर से कमजोर करने की रणनीति

BJP और RSS ने समझ लिया कि कांग्रेस को सीधे हराना मुश्किल होगा। इसे खत्म करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई गई—”तीसरी ताकत” को आगे बढ़ाना।

BJP की मास्टरस्ट्रोक रणनीति – कांग्रेस को खत्म करने का प्लान

RSS और BJP की रणनीति कई स्तरों पर काम कर रही थी—

1. कांग्रेस के भीतर फूट डालना

  • कांग्रेस के पुराने नेता गुटबाजी में बंट गए।
  • G-23 (वो नेता जिन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी) को मीडिया में प्रमोट किया गया।

कांग्रेस के अंदर से ही राहुल गांधी को कमजोर किया गया।

कांग्रेस का असली पतन – जब सत्ता के नशे में जनता से दूरी बन गई

कांग्रेस की हार सिर्फ बाहरी हमलों की वजह से नहीं हुई।
कई अंदरूनी वजहें भी थीं, जो छोटे-छोटे थे, लेकिन मिलकर एक बड़ी तबाही ले आए।

  1. नेताओं का घमंड – कांग्रेस नेता खुद को सत्ता का मालिक समझने लगे।
  2. जनता से कनेक्शन खत्म – कांग्रेस के नेता जमीन से कटते गए।
  3. RSS-BJP का रणनीतिक हमला – कांग्रेस लगातार निशाने पर रही।

कॉर्पोरेट मीडिया का असर – पूरा मीडिया भाजपा के पक्ष में चला गया।

मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि कांग्रेस को कोई बाहरी ताकत नहीं हरा सकती थी, बल्कि कांग्रेस ने खुद कांग्रेस को हराया है।

कांग्रेस में कई कमियां रही हैं

 

यही कारण था कि 2014 के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई

BJP-RSS को कांग्रेस के कमजोर होने से क्या फायदा हुआ?

RSS और BJP कांग्रेस को खत्म करने के लिए 70 साल से कोशिश कर रहे थे।
लेकिन उन्हें सबसे बड़ा मौका तब मिला जब कांग्रेस खुद कमजोर होने लगी।

  1. BJP ने कॉर्पोरेट का साथ लिया – बड़े बिजनेस हाउसों को फायदा पहुंचाया।
  2. मीडिया को अपने पक्ष में किया – NDTV, News18, Zee News सभी BJP के एजेंडे पर आ गए।
  3. विपक्ष को आपस में लड़वाया – हर राज्य में कांग्रेस के खिलाफ कोई तीसरा फ्रंट खड़ा किया।

दिल्ली में AAP को बढ़ावा देना, महाराष्ट्र में शिवसेना को बांटना, बिहार में विपक्ष को तोड़ना—यह सब इसी रणनीति का हिस्सा था।

 

अब सवाल था, किसे खड़ा किया जाए?

AAP का जन्म – कांग्रेस को खत्म करने की पहली चाल

2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ रामलीला मैदान में जन आंदोलन हुआ।

  • लाखों लोग सड़कों पर उतर आए।
  • सरकार के खिलाफ माहौल बन गया।
  • कांग्रेस की छवि पूरी तरह धूमिल हो गई।

यहीं से अरविंद केजरीवाल एक नेता के रूप में उभरे।
उन्होंने अन्ना आंदोलन से खुद को अलग किया और 2012 में आम आदमी पार्टी (AAP) बना ली।

जब 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए, खूब प्रचार किया लोगो ने खूब समर्थन दिया लेकिन RSS के खिलाफ़ कभी नही बोला तो नतीजे चौंकाने वाले थे—

  • कांग्रेस को 15 साल सत्ता में रहने के बाद मात्र 8 सीटें मिलीं।
  • AAP को 28 सीटें मिलीं।
  • BJP को 31 सीटें मिलीं, लेकिन बहुमत नहीं था।

AAP ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली, लेकिन 49 दिन में इस्तीफा दे दिया।

यही BJP का असली गेम था—पहले कांग्रेस को हटाओ, फिर AAP को कमजोर करो।

AAP को मजबूत करने की BJP की रणनीति

2014 के लोकसभा चुनावों में BJP को जबरदस्त जीत मिली और कांग्रेस सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई। लेकिन BJP जानती थी कि कांग्रेस को पूरी तरह खत्म करने के लिए दिल्ली में AAP को और मजबूत करना होगा।

यही कारण था कि 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में BJP ने जानबूझकर AAP को खुला मैदान दिया।

  • AAP को 67 सीटें मिलीं।
  • कांग्रेस 0 सीट पर आ गई।
  • BJP को महज 3 सीटें मिलीं।

इसका सीधा फायदा BJP को हुआ—कांग्रेस पूरी तरह खत्म हो गई।

लेकिन BJP ने यह चाल इसलिए चली थी क्योंकि जब कांग्रेस पूरी तरह गायब हो जाएगी, तब AAP को हराना आसान हो जाएगा।

बीजेपी का “कांग्रेस मुक्त भारत” प्लान

जब 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी सत्ता में आई, तो उसका एक बड़ा नारा था—“कांग्रेस मुक्त भारत”। इसका मतलब यह था कि कांग्रेस को हर जगह से कमजोर करना और उसकी जगह बीजेपी को सबसे मजबूत विकल्प बनाना। लेकिन कुछ सालों में बीजेपी को एहसास हुआ कि कांग्रेस पूरी तरह खत्म नहीं हो सकती। इसलिए उन्होंने कांग्रेस के वोट बैंक को काटने के लिए एक नई रणनीति अपनाई—क्षेत्रीय दलों को बढ़ावा देना।

यहां एक बड़ा सवाल उठता है—क्या BJP ने जानबूझकर AAP को मजबूत होने दिया ताकि कांग्रेस खत्म हो जाए?

क्योंकि 2015 के चुनाव में जो हुआ, उसने इस संभावना को और मजबूत किया।

BJP को इससे दो फायदे हुए—

  1. कांग्रेस खत्म हो गई, जो BJP के लिए सबसे बड़ा खतरा थी।

      2. AAP को बीजेपी ने बाद में खत्म करने के लिए खुला छोड़ दिया।

जब बीजेपी सत्ता में आई, तो उसने कांग्रेस के वोट बैंक को तोड़ने के लिए आम आदमी पार्टी के उभार को अप्रत्यक्ष रूप से मदद दी। AAP ने पहले दिल्ली और फिर पंजाब में कांग्रेस को पीछे धकेला, लेकिन जब बीजेपी ने महसूस किया कि AAP का प्रभाव बढ़ सकता है, तो उसने AAP को भी कमजोर करने का प्रयास किया। इसका नतीजा दिल्ली MCD चुनाव और फिर हाल ही में पंजाब और अन्य राज्यों में AAP की घटती ताकत के रूप में दिखा।

AAP को खत्म करने की दूसरी चाल – जब BJP को लगा कि अब वक्त आ गया है

2015 से 2025 तक AAP दिल्ली में मजबूत होती गई, लेकिन BJP जानती थी कि जब कांग्रेस का सफाया हो जाएगा, तो अब AAP को भी हटाने का वक्त आएगा।

1. भ्रष्टाचार के आरोप और मीडिया ट्रायल

  • AAP सरकार पर शराब घोटाले, स्कूल घोटाले जैसे आरोप लगाए गए।
  • अरविंद केजरीवाल के मंत्रियों को जेल भेजा गया।
  • मीडिया में AAP की छवि खराब करने का अभियान शुरू हुआ।

2. नेताओं की खरीद-फरोख्त और पार्टी में बगावत

  • कई बड़े AAP नेता या तो BJP में चले गए या उन्हें कमजोर कर दिया गया।
  • पंजाब में AAP की सरकार बनने के बावजूद वहां अशांति बनी रही।

3. राष्ट्रविरोधी छवि बनाने की कोशिश

  • सोशल मीडिया पर AAP को पाकिस्तान समर्थक बताने का अभियान चला।
  • कुछ बयानों को तोड़-मरोड़कर जनता के बीच गलत संदेश दिया गया।

इस सबका नतीजा यह हुआ कि AAP कमजोर होने लगी।


2025 का दिल्ली चुनाव – BJP की रणनीति का आखिरी चरण

जब BJP को यकीन हो गया कि AAP अब कमजोर हो चुकी है और कांग्रेस पहले ही खत्म हो चुकी है, तो उन्होंने 2025 में पूरी ताकत झोंक दी।

  • 48 सीटें BJP के खाते में चली गईं।
  • AAP को करारी हार मिली।
  • कांग्रेस कहीं नहीं दिखी।

यानी जिस कांग्रेस को हटाने के लिए AAP को आगे बढ़ाया गया था, उसी AAP को BJP ने बाद में हरा दिया।

बिहार में PK (प्रशांत किशोर) की भूमिका:

दिल्ली के बाद अगला नंबर बिहार का है क्योकि बिहार में इसी साल चुनाव है , बिहार में प्रशांत किशोर (PK) एक नई पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। यदि PK एक बड़ा जनाधार खड़ा कर लेते हैं, तो इसका सीधा असर नीतीश कुमार की पार्टी JDU और कांग्रेस पर पड़ेगा। बिहार में कांग्रेस पहले से ही कमजोर है, और PK के आने से  (RJD, JDU, कांग्रेस) का वोट शेयर और अधिक बंट सकता है, जिससे बीजेपी को सीधा फायदा होगा।

BJP की रणनीति:

  • अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों को बढ़ावा देकर कांग्रेस के वोट बैंक को कमजोर करना।
  • जब कोई क्षेत्रीय दल ज्यादा मजबूत हो जाए, तो उसे भी कमजोर करने की रणनीति अपनाना (जैसे AAP के साथ हुआ)।
  • विपक्षी दलों के वोटों को विभाजित करने के लिए नए नेताओं (जैसे PK) के उभार को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देना।
  • जब समय सही लगे, तब बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंककर सभी विरोधी दलों को कमजोर कर दे।

क्या बिहार में भी वही रणनीति चलेगी?

अगर PK की पार्टी चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती है और विपक्षी वोटों को काटती है, तो यह बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है। हाल ही में नीतीश कुमार की लोकप्रियता घटी है, और PK की एंट्री JDU और RJD के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकती है। इस स्थिति में बीजेपी को बिहार में 2025 के चुनाव में मजबूत बढ़त मिल सकती है।अब सवाल यह है—क्या कांग्रेस विपक्ष इस खेल को समझकर नया रास्ता निकाल पाएगा?
या फिर BJP और RSS भारत को “एक पार्टी शासन” की ओर ले जाएंगे?

क्यों BJP और RSS कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं?

हमारे देश में मोटे तौर पर तीन तरह की राजनीतिक विचारधाराएँ हैं – BJP-RSS की विचारधारा, वामपंथी (कम्युनिस्ट) विचारधारा, और कांग्रेस की केंद्रीय (सेंटर) विचारधारा।

अब अगर हम देखें, तो कम्युनिस्ट विचारधारा भारत में पहले ही बहुत कमजोर हो चुकी है। कभी वामपंथी दलों की मजबूत पकड़ थी, खासकर बंगाल और केरल में, लेकिन अब उनका प्रभाव लगभग खत्म हो गया है। इसलिए BJP के लिए असली टक्कर कांग्रेस से ही है।

कांग्रेस को खत्म करने की रणनीति क्यों?

BJP और RSS को अच्छी तरह से पता है कि अगर कांग्रेस को खत्म करना है, तो सबसे पहले गांधी परिवार को कमजोर करना होगा, क्योंकि गांधी परिवार ही कांग्रेस की रीढ़ है।

  • कांग्रेस सिर्फ एक राजनीतिक दल नहीं है, बल्कि एक विचारधारा है।
  • अगर कांग्रेस खत्म होती है, तो बाकी क्षेत्रीय दल BJP के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं हैं।
  • क्षेत्रीय पार्टियों की कोई ठोस विचारधारा नहीं होती, वे सिर्फ अपने-अपने समुदाय और क्षेत्र के हितों पर ध्यान देती हैं।
  • इनमें से ज्यादातर दल कभी कांग्रेस के सहयोगी थे, लेकिन उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली।
  • इन दलों को BJP आसानी से मैनेज कर सकती है, लेकिन कांग्रेस को नहीं।

यह सिर्फ एक चुनावी हार-जीत की बात नहीं है, यह भारत के लोकतंत्र के भविष्य की लड़ाई है।

5635

ABTNews24.com पर पढ़े खबरों को एक अलग ही अंदाज में जो आपको सोचने के लिए एक नजरिया देगा ताज़ा लोकल से राष्ट्रीय समाचार ( local to National News), लेटेस्ट हिंदी या अपनी पसंदीदा भाषा में समाचार (News in Hindi or your preferred language), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट ,राजनीतिक, धर्म और शिक्षा और भी बहुत कुछ से जुड़ी हुई हर खबर समय पर अपडेट ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए एबीटी न्यूज़ की ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं और हमारा सपोर्ट करें ताकि हम सच को आप तक पहुंचा सके।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Home
राज्य चुने
Video
Short Videos
Menu
error: Content is protected !!