अबू धाबी/नई दिल्ली: संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भारतीय घरेलू सहायिका शहजादी खान को चार महीने के शिशु की हत्या के आरोप में फांसी दे दी गई। यह मामला अब भारत और यूएई के बीच चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि परिवार का दावा है कि शहजादी को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया और उन्हें मुकदमे के दौरान उचित कानूनी सहायता नहीं मिली।
शहजादी की फांसी के बाद भारत में सरकार की भूमिका और प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। परिवार ने आरोप लगाया है कि भारत सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जबकि यूएई सरकार ने उन्हें फांसी की सजा सुनाने में जल्दबाजी दिखाई।
कौन थीं शहजादी खान?
शहजादी खान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की रहने वाली थीं। उनके पिता शब्बीर खान पेशे से एक दिहाड़ी मजदूर हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। बेहतर जीवन और परिवार की मदद के लिए शहजादी ने 2021 में यूएई जाने का फैसला किया।
शहजादी को अबू धाबी में एक भारतीय दंपति के यहां घरेलू सहायिका की नौकरी मिली। वह एक चार महीने के बच्चे की देखभाल कर रही थीं। परिवार के मुताबिक, शहजादी अपने काम को बहुत ईमानदारी से करती थीं और कभी किसी विवाद में नहीं रहीं।
क्या हुआ था 7 दिसंबर 2022 को?
7 दिसंबर 2022 को शहजादी खान के नियोक्ता के चार महीने के शिशु की अचानक मृत्यु हो गई।
मामले की शुरुआत
शिशु के माता-पिता का दावा:
माता-पिता का कहना था कि बच्चे की मौत गला दबाने से हुई थी, और शहजादी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया।
शहजादी का बचाव:
शहजादी और उनके परिवार का दावा है कि बच्चे की मौत गलत टीकाकरण के कारण हुई थी।
पुलिस की कार्रवाई:
अबू धाबी पुलिस ने शहजादी को गिरफ्तार कर लिया और एक दिन बाद ही उन पर हत्या का मामला दर्ज कर दिया गया।
परिवार का आरोप है कि शहजादी पर पुलिस ने जबरन अपराध कबूल करने का दबाव डाला।
मुकदमा और फांसी की सजा
अबू धाबी कोर्ट में सुनवाई
1. फरवरी 2023: अबू धाबी पुलिस ने शहजादी खान के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया।
2. मार्च 2023: कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, लेकिन परिवार का कहना है कि शहजादी को अपनी सफाई का पूरा मौका नहीं मिला।
3. जुलाई 2023: कोर्ट ने शहजादी को फांसी की सजा सुना दी।
4. सितंबर 2023: परिवार ने भारत सरकार से हस्तक्षेप की मांग की, लेकिन कोई ठोस मदद नहीं मिली।
5. फरवरी 2024: यूएई की सर्वोच्च अदालत ने सजा को बरकरार रखा।
6. 15 फरवरी 2025: अबू धाबी में शहजादी को फांसी दे दी गई।
परिवार का आरोप: साजिश या न्याय में चूक?
शहजादी के पिता शब्बीर खान ने दावा किया कि उनकी बेटी निर्दोष थी। उन्होंने कहा:
“बच्चे की मौत गलत टीकाकरण से हुई थी, लेकिन पुलिस ने मेरी बेटी को जबरदस्ती अपराध कबूल करवाया। उसे वकील तक नहीं दिया गया।”
परिवार के मुख्य आरोप:
1. शहजादी को अदालत में अपनी सफाई का पूरा मौका नहीं दिया गया।
2. उन्हें उचित कानूनी सहायता नहीं मिली।
3. भारत सरकार ने मामले में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई।
4. यूएई सरकार ने जल्दबाजी में सजा दी।
परिवार का कहना है कि उन्होंने कई बार भारत सरकार और विदेश मंत्रालय से मदद की अपील की, लेकिन उन्हें कोई ठोस जवाब नहीं मिला।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में यूएई सरकार से दया याचिका भेजी थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। मंत्रालय का कहना है कि शहजादी को कानूनी सहायता उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन परिवार इससे संतुष्ट नहीं है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा:
“हमने मामले में पूरी संवेदनशीलता से कदम उठाए, लेकिन यूएई की अदालत ने सजा को बरकरार रखा। हम प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
हालांकि, कई मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि भारत सरकार को इस मामले में और कड़े कदम उठाने चाहिए थे।
यूएई के कड़े कानून और मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया
यूएई में हत्या के मामलों में बेहद सख्त कानून हैं।
अगर कोई दोषी पाया जाता है, तो उसे फांसी या उम्रकैद की सजा मिल सकती है।
मृतक के परिवार की सहमति से कुछ मामलों में दया याचिका स्वीकार की जाती है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।
मानवाधिकार संगठनों की चिंता
इस मामले पर कुछ मानवाधिकार संगठनों ने सवाल उठाए हैं।
उनका कहना है:
1. शिशु की मौत की स्वतंत्र जांच नहीं हुई।
2. शहजादी को कानूनी सहायता नहीं मिली।
3. भारत सरकार को इस मामले में और सक्रिय होना चाहिए था।
मानवाधिकार संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र और भारतीय सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की पुन: जांच की मांग की है।
अब आगे क्या?
परिवार शहजादी का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहा है।
परिवार भारत सरकार से अपील कर रहा है कि अन्य भारतीय श्रमिकों को उचित कानूनी सहायता मिले।
मानवाधिकार संगठन इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की योजना बना रहे हैं।
यूएई में काम करने वाले भारतीय प्रवासी अब अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
शहजादी खान की फांसी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
1. क्या उन्हें न्याय मिला?
2. क्या भारत सरकार प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठा रही है?
3. क्या यह मामला एक बड़ी न्यायिक चूक का उदाहरण है?
यह मामला यूएई में भारतीय श्रमिकों की सुरक्षा पर बहस छेड़ चुका है। परिवार को अब भी उम्मीद है कि इस घटना से सबक लेते हुए भारत सरकार प्रवासी श्रमिकों की मदद के लिए बेहतर नीतियां बनाएगी।