गोरखपुर AIIMS निदेशक पर फर्जी OBC प्रमाण पत्र से बेटे-बेटी का दाखिला कराने का आरोप : मामला सामने आने पर आनन फानन में एडमिशन रद्द ,स्वास्थ्य मंत्रालय तक पहुंचा मामला,FIR दर्ज करने की मांग

Zulfam Tomar
20 Min Read
Oplus_131072

गोरखपुर और पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण पाल पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जो हाल के दिनों में चर्चा का मुख्य केंद्र बन गए हैं। आरोप है कि उन्होंने फर्जी OBC (नॉन-क्रीमी लेयर) प्रमाण पत्र बनवाकर अपने बेटे और बेटी को गोरखपुर और पटना के AIIMS में प्रवेश दिलवाया। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब उनके खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग उठी। तो चलिए इसे सरल तरीके से शुरू करते हैं और हर पहलू पर विस्तार से बात करते हैं।

  • मुख्य बिंदु:
  • – गोरखपुर और पटना AIIMS निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण पाल पर अपने बेटे और बेटी के लिए फर्जी OBC (नॉन-क्रीमी लेयर) प्रमाण पत्र बनवाने का आरोप।
  • – आरोप है कि पाल ने सामान्य वर्ग होते हुए, अपनी सालाना आय 80 लाख रुपये की बजाय 8 लाख रुपये दिखाकर अपने बच्चों को आरक्षित श्रेणी में दाखिला दिलवाया।
  • – इस मामले को गोरखपुर AIIMS के सर्जरी विभाग प्रमुख डॉ. गौरव गुप्ता ने उजागर किया।
  • – विवाद बढ़ने के बाद मामले की जांच और FIR दर्ज करने की मांग उठी।
  • – इससे पहले भी गोरखपुर AIIMS में निदेशकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।

पूरा मामला क्या है?

डॉ. गोपाल कृष्ण पाल ,गोरखपुर AIIMS निदेशक ,फर्जी OBC प्रमाण पत्र
डॉ. गोपाल कृष्ण पाल गोरखपुर AIIMS निदेशक फाइल फोटो

गोरखपुर और पटना के AIIMS (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) के निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण पाल पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने अपने बेटे और बेटी के लिए फर्जी OBC (नॉन-क्रीमी लेयर) प्रमाण पत्र बनवाकर दोनों को AIIMS में दाखिला दिलवाया। गोरखपुर AIIMS के सर्जरी विभाग के प्रमुख/HOD, डॉ. गौरव गुप्ता ने यह आरोप लगाया है कि निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण पाल, जो सामान्य वर्ग (राजपूत/ठाकुर जाति) से आते हैं, ने अपने बेटे और बेटी के लिए फर्जी OBC प्रमाण पत्र बनवाए हैं। इसके तहत उनकी सालाना आय को 80 लाख रुपये की बजाय 8 लाख रुपये दिखाया गया है, जिससे वह OBC नॉन-क्रीमी लेयर के तहत अपने बच्चों को एडमिशन दिला सके। डॉ. गुप्ता ने आरोप लगाया है कि यह फर्जीवाड़ा न केवल निदेशक ने किया, बल्कि उनकी पत्नी प्रभाती पाल और बेटे ओरो प्रकाश पाल भी इसमें शामिल हैं।यह आरोप काफी गंभीर हैं, क्योंकि यह सीधे-सीधे कानून और नियमों का उल्लंघन है। इस मामले में FIR दर्ज करने की मांग भी उठ रही है।

फर्जी OBC प्रमाण पत्र से क्या हुआ?

OBC (नॉन-क्रीमी लेयर) का मतलब होता है वह वर्ग, जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम होती है और जो आरक्षण के हकदार होते हैं। लेकिन डॉ. गोपाल कृष्ण पाल पर आरोप है कि उन्होंने अपने बेटे और बेटी के लिए गलत तरीके से सामान्य वर्ग का होते हुवे OBC नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र बनवाया। उनकी असल सालाना आय 80 लाख से 90 लाख रुपये तक बताई जा रही है, लेकिन उन्होंने इसे गलत तरीके से 8 लाख रुपये से कम दिखाया।

इससे उनके बेटे और बेटी को AIIMS जैसी प्रतिष्ठित संस्था में आसानी से दाखिला मिल गया, जो असल में उन छात्रों के लिए होता है, जो वाकई आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यह बात सामने आने पर बवाल मच गया। यह भी आरोप लगाया गया है कि निदेशक ने अपने बेटे के लिए फर्जी ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर का प्रमाण पत्र पटना एम्स के निदेशक आवास के पते पर बनवाया, जबकि उनका स्थाई निवास ओडिशा में है। इसके अलावा, वह जिपमर पुडुचेरी में तैनात हैं। नियमों के अनुसार, उनके बेटे का डोमिसाइल या तो ओडिशा या फिर जिपमर पुडुचेरी से बनना चाहिए था। इस गलत प्रमाण पत्र के आधार पर उनके बेटे ने माइक्रोबायोलॉजी में ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर के तहत एक आरक्षित सीट हासिल कर ली, जिसके चलते एक योग्य छात्र का अवसर छिन गया।

आरोप किसने लगाए?

ये गंभीर आरोप गोरखपुर AIIMS के सर्जरी विभाग के प्रमुख, डॉ. गौरव गुप्ता ने लगाए। उन्होंने दावा किया है कि डॉ. गोपाल कृष्ण पाल, जो ठाकुर जाति से आते हैं (जो सामान्य वर्ग में आता है), ने OBC का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया और अपने बच्चों को इसका फायदा दिलाया। डॉ. गुप्ता ने सीधा आरोप लगाया है कि निदेशक ने अपने पद का गलत इस्तेमाल किया और अपने बेटे और बेटी को गोरखपुर और पटना AIIMS में दाखिला दिलवाया।

मामला कब और कैसे उजागर हुआ?

डॉ. गौरव गुप्ता ने जब यह देखा कि निदेशक के बेटे को गोरखपुर AIIMS में दाखिला मिला है, तो उन्हें शक हुआ। उन्होंने जांच की और पता चला कि बेटे का दाखिला OBC नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र के आधार पर हुआ था। लेकिन जब और गहराई से देखा गया, तो यह साफ हो गया कि निदेशक की सालाना आय 8 लाख रुपये से कहीं ज्यादा है।

उन्होंने यह मामला सामने लाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय और सीएम पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई। इस मामले को लेकर गोरखपुर एम्स थाने में भी तहरीर दी है इसके बाद यह मामला तेजी से फैलने लगा और मीडिया में भी सुर्खियां बटोरने लगा।

डॉ. गोपाल कृष्ण पाल, गोरखपुर AIIMS निदेशक, फर्जी OBC प्रमाण पत्र
Dr Gupta ने police को तहरीर दी (फोटो सोर्स दैनिक भास्कर)

कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?

अब बात आती है कि यह फर्जीवाड़ा कैसे किया गया। गोरखपुर AIIMS में निदेशक/डारेक्टर के बेटे ओरो प्रकाश पाल ने अप्रैल 2024 में का MD-PG (माइक्रोबायोलॉजी विभाग) में एडमिशन हुआ था। उन्होंने अपने दाखिले के लिए बिहार के दानापुर से OBC नॉन-क्रीमी लेयर का प्रमाण पत्र जमा किया, जिसमें उनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम दिखाई गई थी।

डॉ. गोपाल कृष्ण पाल

लेकिन असल में, निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण पाल और उनकी पत्नी प्रभाती पाल की सालाना आय 80 लाख रुपये से ज्यादा थी। प्रभाती पाल भी एक प्रतिष्ठित पद पर हैं, वह पुदुचेरी में प्रोफेसर के रूप में काम करती हैं। इस तरह से, उन्होंने नॉन-क्रीमी लेयर का फायदा उठाकर अपने बच्चों को दाखिला दिलवाया।

जैसे ही यह मामला सबके सामने आया, ओरो पाल के एडमिशन को तुरंत रद्द कर दिया गया और इसके पीछे ‘निजी कारणों’ का हवाला दिया गया। AIIMS के मीडिया प्रभारी अरूप मोहंती ने ओरो पाल की नियुक्ति से जुड़े विवाद को पूरी तरह से बेबुनियाद बताया और इसे खत्म करने की कोशिश की। लेकिन मामला धीरे-धीरे बढ़ता गया और लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया।

अब AIIMS प्रशासन इस मामले पर कानूनी कार्रवाई करने की प्रक्रिया में जुट गया है। इस विवाद के बाद से AIIMS के निदेशक डॉ. जीके पाल ने सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है। बताया जा रहा है कि उन्हें मंगलवार को गोरखपुर आना था, लेकिन फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद से उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी और अब तक गोरखपुर नहीं पहुंचे हैं।

बेटी का मामला भी ऐसा ही निकला

डॉ. गोपाल कृष्ण पाल गोरखपुर AIIMS निदेशक फर्जी OBC प्रमाण पत्र
डॉ. गोपाल कृष्ण पाल की बेटी का फाइल फोटो

यहां तक कि उनकी बेटी का भी मामला सामने आया। आरोप है कि प्रो. डॉ. जी.के. पाल, जब एम्स पटना के निदेशक थे, उन्होंने अपनी बेटी के लिए फर्जी ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र का उपयोग किया और उसे फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग में सीनियर रेजिडेंट के पद पर नियुक्त कराया। इस मामले को लेकर काफी विवाद हुआ है, और जांच की मांग उठाई जा रही है ताकि इस प्रकार की अनियमितताओं पर कार्रवाई की जा सके।

गोरखपुर AIIMS निदेशक, डॉ. गोपाल कृष्ण पाल

बेटी को पटना AIIMS में सीनियर रेजिडेंट के तौर पर फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग में नौकरी मिली थी। इसके लिए भी OBC नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र का इस्तेमाल हुआ था।

डॉ. गोपाल कृष्ण पाल की सफाई

जब यह मामला सामने आया तो डॉ. गोपाल कृष्ण पाल ने अपनी सफाई में कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह से गलत हैं। उनका कहना था कि उनके बेटे ने AIIMS में एडमिशन तो लिया था, लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि प्रमोशन न मिलने के कारण डॉ. गौरव गुप्ता और उनकी पत्नी  उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं।

उन्होंने यह भी दावा किया कि वह स्वास्थ्य मंत्रालय को पहले ही अपने बेटे और बेटी की नियुक्तियों के बारे में सूचित कर चुके थे, और इसमें कोई गलत काम नहीं हुआ।

विवाद और गहराया

हालांकि, डॉ. गोपाल कृष्ण पाल की सफाई के बाद भी विवाद थमा नहीं। डॉ. गौरव गुप्ता लगातार अपने आरोपों पर अड़े रहे और उन्होंने मांग की कि इस मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए।

डॉ. गुप्ता का कहना था कि देश की सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान में इस तरह का फर्जीवाड़ा कैसे हो सकता है? उन्होंने यह भी कहा कि OBC नॉन-क्रीमी लेयर के लिए रिजर्व की गई सीटों पर ऐसे लोगों को जगह दी जा रही है, जो इस श्रेणी में नहीं आते।

स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच

इस मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने जांच के आदेश का आश्वासन दिए। अब यह मामला पूरी तरह से जांच के घेरे में है

गोरखपुर AIIMS का विवादित इतिहास

गोरखपुर AIIMS पहले भी विवादों में रहा है। इससे पहले भी यहां के निदेशकों पर फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। गोरखपुर AIIMS की पहली निदेशक सुरेखा किशोर को भी उनके बेटों की नियुक्ति में फर्जीवाड़ा करने के आरोप लगे थे, जिसके चलते उन्हें पद छोड़ना पड़ा था।

यह इतिहास दिखाता है कि AIIMS जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं में भी भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं, और यह चिंता का विषय है।

इसी बात से हैरान मत होएये अभी रुकिए

देश में फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के माध्यम से आरक्षित वर्गों (OBC, SC, ST, EWS) के लाभ लेने का मामला कोई नया नहीं है। कई बार ऐसे बड़े-बड़े मामले सामने आते हैं, जिनमें लोगों ने फर्जी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल करके या तो नौकरी हासिल की होती है, या फिर शिक्षा संस्थानों में दाखिला लिया होता है। यह चलन न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि उन गरीब और पिछड़े वर्गों के अधिकारों का हनन भी है, जिनके लिए यह आरक्षण बनाया गया था।

पूजा खेडकर का मामला

अभी हाल ही में पूजा खेडकर का नाम तो अपने सुना ही होगा ,IAS अधिकारी पूजा खेडकर हाल ही में विवादों में घिरी हुई हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने UPSC परीक्षा के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था, जिसमें नाम, माता-पिता के नाम, पते, और पहचान को बदलकर ओबीसी और विकलांगता कोटे के तहत अतिरिक्त अवसर प्राप्त किए। UPSC ने उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी है और भविष्य में उन्हें परीक्षा देने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। उनके खिलाफ फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी के आरोपों में एक आपराधिक मामला भी दर्ज किया गया है।

खेडकर ने दिल्ली हाईकोर्ट में UPSC के इस निर्णय को चुनौती दी थी, जहां उन्हें अस्थायी गिरफ्तारी से सुरक्षा दी गई है। मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही है हाल ही में केंद्र सरकार ने उन्हें तत्काल प्रभाव से IAS सेवा से बर्खास्त कर दिया है

अन्य मामले

पूजा  का मामला अकेला नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें बड़े-बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों ने फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए न केवल अपनी नौकरी हासिल की, बल्कि कई बार इस प्रकार के फर्जीवाड़े के चलते जरूरतमंदों को उनके अधिकारों से वंचित भी कर दिया। कुछ महत्वपूर्ण मामले इस प्रकार हैं:

1. फर्जी OBC प्रमाण पत्र से इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला : देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए कई बार छात्रों ने फर्जी OBC या EWS प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया। इससे वंचित वर्गों के योग्य छात्र दाखिला लेने से रह गए, जो असल में आरक्षण के हकदार थे।

2. फर्जी SC/ST प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी : कई सरकारी नौकरियों में SC/ST का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर नौकरी हासिल की गई। इसके बाद असल में अनुसूचित जाति और जनजाति के उम्मीदवारों के हक पर डाका डाला गया।

3. IAS/IPS की परीक्षाओं में फर्जी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल : UPSC जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं में भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें उम्मीदवारों ने OBC या SC/ST का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर परीक्षा पास की और ऊंचे पदों पर बैठ गए।

कानूनी प्रावधान और कार्रवाई

भारतीय कानून के अनुसार, फर्जी प्रमाण पत्र बनवाना और उसका इस्तेमाल करना गंभीर अपराध है। इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है, जिसमें जेल भी हो सकती है। लेकिन इसके बावजूद फर्जी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है।

हालांकि, सरकारें और प्रशासन इन मामलों पर सख्त कार्रवाई का आश्वासन देती हैं, लेकिन असलियत में ऐसे मामलों की जांच और कार्रवाई अक्सर लंबी खिंच जाती है। इसका फायदा उठाकर कई लोग सालों तक ऊंचे पदों पर बैठे रहते हैं और सरकारी लाभ उठाते रहते हैं।

इस समस्या का हल क्या है?

इस समस्या को खत्म करने के लिए कड़ी निगरानी और सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

1. सभी जाति प्रमाण पत्रों की जांच : सरकार को एक केंद्रीयकृत डेटाबेस बनाना चाहिए, जिसमें सभी जाति प्रमाण पत्रों की सटीकता की जांच की जा सके। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जो भी जाति प्रमाण पत्र जारी हो रहा है, वह पूरी तरह से वैध और प्रमाणिक हो।

2. नियमित ऑडिट : सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में दाखिले के बाद समय-समय पर आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के जाति प्रमाण पत्रों का ऑडिट होना चाहिए, ताकि फर्जीवाड़े को रोका जा सके।

3. सख्त सजा : जो भी व्यक्ति फर्जी प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करता है, उसे तुरंत नौकरी से बर्खास्त किया जाना चाहिए और कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकने के लिए एक कड़ा संदेश दिया जा सके।

आम आदमी की चिंता

यहां सवाल यह उठता है कि जब इतनी बड़ी संस्थाओं में इस तरह के फर्जीवाड़े होते हैं, तो आम आदमी क्या उम्मीद करे? OBC नॉन-क्रीमी लेयर का मतलब होता है उन लोगों को फायदा पहुंचाना, जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। लेकिन जब बड़े अधिकारी और अमीर लोग इसका फायदा उठाते हैं, तो वाकई में जरूरतमंद लोगों के लिए जगह कहां बचती है?

देश में लाखों ऐसे छात्र हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और उन्हें उच्च शिक्षा के लिए आरक्षण का सहारा चाहिए। लेकिन जब बड़े लोग इस तरह से फर्जीवाड़ा करके उनकी सीटें हथिया लेते हैं, तो इन छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। इस पूरे मामले में FIR दर्ज करने की मांग उठ रही है। डॉ. गौरव गुप्ता चाहते हैं कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और जो भी दोषी हो, उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई हो।

यह भी पढ़ें –सरकार की नीतियों से निराश युवाओं पर UAPA का आरोप: संसद सुरक्षा उल्लंघन मामले की सुनवाई में क्या हुआ?

निष्कर्ष

AIIMS जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं में इस तरह के मामलों का सामने आना न केवल सिस्टम की विफलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि उच्च पदों पर बैठे लोग भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं।

फर्जी OBC, SC, ST, EWS प्रमाण पत्रों का इस्तेमाल करके नौकरी और शिक्षा में आरक्षण का फायदा उठाना न केवल सामाजिक अन्याय है, बल्कि यह अपराध भी है। ऐसे फर्जीवाड़े से असल में जरूरतमंद लोग अपने अधिकारों से वंचित हो जाते हैं। यह जरूरी है कि सरकार और समाज मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें और सुनिश्चित करें कि आरक्षण का लाभ केवल उन्हीं लोगों को मिले, जो इसके असल हकदार हैं।

पूजा / ओरो प्रकाश जैसे मामलों को सख्ती से निपटाना जरूरी है, ताकि ऐसे उदाहरणों से यह स्पष्ट हो सके कि फर्जीवाड़ा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इससे जरूरतमंद वर्गों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे और समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा मिलेगा।

आम आदमी की मांग है कि ऐसे मामलों में सख्ती से कार्रवाई हो और दोषियों को सजा मिले। तभी जाकर सिस्टम में पारदर्शिता और न्याय की उम्मीद की जा सकती है। अब देखना यह होगा कि सरकार इसको कितनी गंभीरता से लेती हैं और इसकी जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कोई कारवाई होती हैं कि नहीं।

इससे जुड़ी  हुई सभी अपडेट हम आप तक पहुंचाते रहेंगे आप हमारी वेबसाइट विजिट करते रहें और  आप हमारे सोशल मीडिया हैंडल्स को भी फॉलो कर सकते हैं

2

ABTNews24.com पर पढ़े खबरों को एक अलग ही अंदाज में जो आपको सोचने के लिए एक नजरिया देगा ताज़ा लोकल से राष्ट्रीय समाचार ( local to National News), लेटेस्ट हिंदी या अपनी पसंदीदा भाषा में समाचार (News in Hindi or your preferred language), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट ,राजनीतिक, धर्म और शिक्षा और भी बहुत कुछ से जुड़ी हुई हर खबर समय पर अपडेट ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए एबीटी न्यूज़ की ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं और हमारा सपोर्ट करें ताकि हम सच को आप तक पहुंचा सके।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Home
राज्य चुने
Video
Short Videos
Menu
error: Content is protected !!